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25 मई 2010

छत्तीसगढ़ी में रिपोर्ट को नहीं मिल रहा सपोर्ट

छत्तीसगढ़ के थानों में छत्तीसगढ़ी में एफआईआर दर्ज करने का श्रीगणोश नहीं हो सका है। डीजीपी के आदेश को चार माह बीत गए, लेकिन महकमा चार महीने बाद भी एक भी रिपोर्ट छत्तीसगढ़ी में दर्ज करने में नाकाम रहा है। कम्युनिटी पुलिसिंग के जरिए इसका पर्याप्त प्रचार प्रसार तक नहीं किया जा सका।

राजभाषा का दर्जा मिलने के बाद छत्तीसगढ़ी को सरकारी कामकाज में शुमार करने के लिए शुरू की गई कवायद नाकाम नजर आ रही है। कुछ माह पहले पुलिस मुख्यालय से निर्देश जारी हुए थे कि प्रदेश के सभी थानों में छत्तीसगढ़ी में एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है। इसके लिए अब तक न तो किसी फरियादी ने पहल की और न पुलिस ने।

मुख्यालय का निर्देश फाइलों में दब गया। जानकारों का कहना है कि पीड़ित जानकारी के अभाव में या फिर पुलिस के भय से थाने के स्टाफ के सामने भाषा का विकल्प नहीं चुन पाते। थानों के स्टाफ को बहुभाषी बनाए जाने पर जोर देने के बावजूद थानों का कामकाज अब भी पुराने र्ढे पर ही चल रहा है।

छत्तीसगढ़ी में रिपोर्ट लिखने के मामले में थाना प्रभारियों के अलग-अलग तर्क हैं। उनका कहना है कि किसी भी फरियादी ने छत्तीसगढ़ी में शिकायत दर्ज नहीं कराई। अफसरों का यह भी दावा है कि तकरीबन सभी थानों में छत्तीसगढ़ी जानने वाले विवेचक मौजूद हैं। कोई छत्तीसगढ़ी में रिपोर्ट लिखवाने की पहल करे तो निश्चित रूप से लिखी जाएगी।

कम्युनिटी पुलिसिंग के लिए जो भी अभियान चलाए जाते हैं, उनमें भी लोगों को इस बारे में बताया जाए।शुरू नहीं हो सकी कंप्यूटर से एफआईआर: पुलिस थानों के आधुनिकीकरण के तहत जिले के थानों में कंप्यूटर सिस्टम लगाने का प्लान है। थानों में इस पर कामकाज शुरू नहीं हो पाया है। सालों से थाने आनलाइन होने की प्रतीक्षा में है।

‘प्रचार-प्रचार जरूरी’

छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के अध्यक्ष पं. श्यामलाल चतुर्वेदी का कहना है कि छत्तीसगढ़ी को तेजी से सरकारी कामकाज की भाषा बनाया जाना चाहिए। एफआईआर दर्ज करने का निर्देश इस दिशा में महत्वपूर्ण कड़ी साबित होगा। पुलिस विभाग को एफआईआर में भाषा के विकल्प के बारे में पर्याप्त प्रचार-प्रसार करना चाहिए। अभी यह जानकारी किसी को नहीं है कि थाने में छत्तीसगढ़ी में भी रिपोर्ट दर्ज कराई जा सकती है।

छत्तीसगढ़ी को राजभाषा तो बना दिया गया, लेकिन नेता और नौकरशाह इसे अमल में लाने में रुचि नहीं ले रहे हैं। यह प्रदेश के लिए बड़े दुर्भाग्य की बात है। छत्तीसगढ़ी के प्रति इनके मन में किसी प्रकार का स्नेह और आस्था नहीं है। यही वजह है कि हर आदेश की तरह थानों के लिए जारी आदेश पर भी अमल नहीं किया जा रहा है।

नंदकिशोर शुक्ल, संयोजक छत्तीसगढ़ी राजभाषा मंच

थानों में कोई भी फरियादी जिस भाषा में रिपोर्ट लिखाना चाहे, लिखी जाती है। छत्तीसगढ़ी में शिकायत दर्ज कराने पर उसी भाषा में एफआईआर दर्ज की जाएगी। लोगों को इसकी जानकारी देने के लिए प्रचार भी किया जाएगा।

विवेकानंद सिन्हा, एसपी
थानों की डिक्शनरी भी कठिन

थानों में आज भी अंग्रेजों के जमाने के कठिन शब्द प्रचलन में हैं। कागजी कार्रवाई में इस्तेमाल किए जाने वाले अधिकांश शब्द उर्दू के हैं, जिनका अर्थ आम लोगों के समझ में नहीं आता। उसे अनुवाद कर वकील को समझाना पड़ता है।

पुलिस डिक्शनरी में जरायम, मशरूका, नफरी नक्शा, तहरीर, मौजा, मुख्तसर, रोजनामचा, सान्हा क्रमांक, थाना सदर, अफसरान, मुलाजिम, जाफ्ता, फौजदारी, मर्ग जैसे दर्जनों शब्द ऐसे हैं, जिन्हें समझ पाना मुश्किल होता है।
(दैनिक भास्कर,छत्तीसगढ़ संस्करण,25.5.2010 में बिलासपुर से चंद्रकुमार दुबे की रिपोर्ट)

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