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13 मई 2010

उत्तराखंड के राज्य आंदोलनकर्मियों को नहीं मिलेगी नौकरी

नैनीताल उच्च न्यायालय ने राज्य आंदोलनकारियों को नौकरी देने संबंधी शासनादेश को संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 का उल्लंघन करार देते हुए उसे निरस्त कर दिया है। राज्य आंदोलनकारी करूणेश जोशी व नारायण सिंह राणा द्वारा हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं में उन्हें शासनादेश के अनुरूप नियुक्ति दिए जाने का आग्रह किया गया था। याचिका कर्ता करुणेश जोशी का कहना था कि सरकार द्वारा 11 अगस्त 04 को एक शासनादेश जारी किया गया था, जिसमें उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों को सेवा नियमों में शिथिलता बरतते हुए तृतीय श्रेणी की नौकरियों में नियुक्ति देने के निर्देश दिए थे। याचिका कर्ता का कहना था कि उक्त शासनादेश के तहत आंदोलन के दौरान घायल होने के नाते वह नौकरी पाने का अधिकारी है, परन्तु सरकार द्वारा उसे नौकरी देने से इंकार किया जा रहा है। दूसरे याची नारायण सिंह राणा का कहना था कि सरकार के अनुमोदन बावजूद ऊधमसिंह नगर के जिला शिक्षाधिकारी द्वारा उन्हें विभाग में नौकरी नहीं दी जा रही है। दोनों याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूर्व में ऊधमसिंह नगर के जिला शिक्षाधिकारी को तलब किया था, जिस पर जिला शिक्षाधिकारी द्वारा याचिका कर्ता नारायण सिंह राणा को कोर्ट में नियुक्ति पत्र दिया गया।इधर न्यायमूर्ति तरुण अग्रवाल की एकलपीठ ने दोनों याचिकाओं में एक साथ बहस सुनने के बाद पाया कि उक्त शासनादेश संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 का उल्लंघन है तथा राजकीय कर्मचारियों की सेवा नियमावली में संशोधन किए बिना जारी किया गया है। एकलपीठ का कहना था कि उक्त शासनादेश विभिन्न न्यायालयों के न्याय निर्णयों के भी विरुद्ध है। इस आधार पर हाईकोर्ट की एकलपीठ ने राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरियों में नियुक्ति देने संबंधी 11 अगस्त 04 के शासनादेश को निरस्त कर दिया।
(दैनिक जागरण,देहरादून संस्करण,13.5.2010)

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