राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के दसवीं के रिजल्ट ने सत्रांक व्यवस्था पर विवाद खड़ा कर दिया है। बोर्ड का प्रभावी नियंत्रण नहीं होने से प्रदेश में ज्यादातर स्कूलों ने अपना रिजल्ट बेहतर रखने के लिए जमकर सत्रांक लुटाए हैं।
ऐसे बच्चों के काबिलियत की असली पोल बोर्ड ने अपनी ही लिखित परीक्षा में खोल दी। बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे हैं जो सौ फीसदी सत्रांक हासिल करने के बावजूद फेल हो गए। स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि परीक्षा में एक पेपर में कोई बच्च 1 अंक हासिल कर सका है जबकि सत्रांक के कॉलम में 20 मेंसे 20 अंक दर्ज है।
शिक्षाविदों ने बोर्ड की सत्रांक व्यवस्था को ही बंद करने की वकालात कर दी है। स्कूली बच्चों की तैयारी को रिजल्ट में भी भागीदार बनाने के उद्देश्य से सत्रांक व्यवस्था लागू की थी। इसमें हर प्रश्न-पत्र में 20 अंकों के सत्रांक का प्रावधान है जो स्कूलों की ओर से बोर्ड को भेजे जाते हैं।
स्कूलों की ओर से बिना वास्तविक मूल्यांकन के अंक लुटाना गलत है। हालांकि इससे ज्यादा फर्क इसलिए नहीं पड़ता कि आखिरकार बच्चे को प्रतियोगी परीक्षा के दौर से गुजरकर अपनी योग्यता साबित करनी है। - डॉ. सुभाष गर्ग, चेयरमैन, राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड
बच्चों का वास्तविक मूल्यांकन छूटा: लिखित परीक्षा में 1-2 अंक और सत्रांक में सौ फीसदी, तो परिणाम संदेह के घेरे में है ही। निजी स्कूल इस व्यवस्था का गलत उपयोग कर रहे हैं। बच्चे का वास्तविक मूल्यांकन नहीं हो पा रहा है। बोर्ड व्यवस्था का पुन: आंकलन करे या परीक्षा को विश्वसनीय बनाए रखने के लिए इसे खत्म कर दे। - एस.एल. बोहरा, पूर्व सचिव, राजस्थान बोर्ड(मदन कलाल,दैनिक भास्कर,जयपुर,20.21.2011)
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