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17 जून 2011

100 प्रतिशत कट-ऑफःअव्यावहारिक है मानदंड

दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ कालेजों ने प्रवेश प्रक्रिया के पहले दौर में जिस तरह 12वीं की परीक्षा में केवल 99-100 प्रतिशत अंक पाने वाले छात्रों को ही दाखिले के योग्य माना उससे देश भर के लोगों का चकित होना स्वाभाविक है। इतनी ऊंची कट ऑफ लिस्ट के बाद यदि वे अभिभावक भी बेचैन हो उठे जो भविष्य में अपने बच्चों को दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाने का सपना देख रहे हैं तो इसके लिए उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता। इस पर आश्चर्य नहीं कि केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के साथ-साथ दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति दिनेश सिंह ने इतनी ऊंची कट ऑफ लिस्ट पर अफसोस जाहिर किया, लेकिन इस समस्या के लिए केवल दिल्ली विश्वविद्यालय के कालेजों को कठघरे में खड़ा कर कर्तव्य की इतिश्री नहीं की जानी चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि इतनी ऊंची कट ऑफ लिस्ट छात्रों और अभिभावकों को हताश करने वाली है, लेकिन इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि 12वीं की परीक्षा में ज्यादा से ज्यादा प्रतिशत अंक पाने वाले छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यह सही है कि सौ प्रतिशत अंक पाने वाले दो-चार छात्र ही होंगे, लेकिन नब्बे प्रतिशत से अधिक अंक पाने वाले छात्रों की गिनती करना मुश्किल है। एक तथ्य यह है कि जहां 90 प्रतिशत से अधिक अंक पाने वाले छात्रों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है वहीं कालेजों की सीटें सीमित बनी हुई हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न कालेजों में 54000 सीटें हैं, जबकि प्रवेश पाने वाले छात्रों की संख्या सवा लाख से अधिक होने का अनुमान है। इस स्थिति में कालेजों के लिए अपनी कट-ऑफ लिस्ट ऊंची रखना मजबूरी है। कालेज चाहकर भी सभी छात्रों को दाखिला नहीं दे सकते। इसमें संदेह नहीं कि प्रवेश के लिए 100 अथवा 99 प्रतिशत अंकों की अनिवार्यता अव्यावहारिक भी है और अनुचित भी, लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय की इस अव्यावहारिकता से एक लाभ यह हुआ कि उच्च शिक्षा की एक गंभीर समस्या सतह पर आ गई। इस समस्या का समाधान आश्चर्य अथवा अफसोस प्रकट कर नहीं किया जा सकता। यह सही समय है कि इस समस्या के मूल कारणों की पहचान कर उनका निवारण किया जाए। आज जैसी समस्या दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लेने वाले छात्रों के समक्ष है वैसी ही देश के अन्य हिस्सों के छात्रों के सामने भी है और इसका मूल कारण यह है कि गुणवत्ता प्रधान उच्च शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थान गिने-चुने हैं। देश में कुछ राज्य तो ऐसे हैं जहां दिल्ली विश्वविद्यालय के स्तर का एक भी विश्वविद्यालय नहीं। परिणाम यह है कि एक बड़ी संख्या में छात्र बेहतर उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली आने के लिए विवश होते हैं। हो सकता है कि केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लेने की चाह रखने वाले छात्रों को दिलासा देने में समर्थ हो जाएं, लेकिन उन्हें यह स्मरण रखना चाहिए कि दिल्ली ही देश नहीं है। इसमें संदेह है कि केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय अथवा राज्य सरकारें छात्रों को गुणवत्ता प्रधान उच्च शिक्षा दिलाने के प्रति गंभीर हैं। निश्चित रूप से यह उनकी गंभीरता का सूचक नहीं माना जा सकता कि निजी क्षेत्र उच्च शिक्षा संस्थानों का निर्माण करने में लगा हुआ है। उच्च शिक्षा में निजी क्षेत्र का सहयोग लिया ही जाना चाहिए, लेकिन यदि केंद्र अथवा राज्य सरकारें यह सोच रही हैं कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र के सहयोग मात्र से समस्या का समाधान हो जाएगा तो यह सही नहीं(संपादकीय,दैनिक जागरण,दिल्ली,17.6.11)।


नई दुनिया(16.6.11) का संपादकीय भी देखिएः
भिन्न कॉलेजों के कट-ऑफ मार्क्स देखकर इस वर्ष दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिले के लिए इच्छुक विद्यार्थियों के जहां होश गुम हैं, वहीं उनके माता-पिता और अभिभावकों की चिंता बढ़ गई है। यों तो दाखिले के इच्छुक विद्यार्थी प्रति वर्ष प्रतिस्पर्धा के बढ़ते जाने से दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों के भी कट-ऑफ मार्क्स उच्च होते जाने के अभ्यस्त हैं लेकिन इस साल तो कट-ऑफ मार्क्स इतने उच्च स्तर पर पहुंच गए हैं कि अधिकांश विद्यार्थियों को दाखिला मिलना असंभव ही लगता है। दिल्ली विश्वविद्यालय की पहली कट-ऑफ सूची विद्यार्थियों के लिए किसी भयानक दुःस्वप्न जैसी लगती है। इससे विद्यार्थियों में निराशा है क्योंकि उन्हें अपना सपना बिखरता नजर आ रहा है। श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स द्वारा जारी आर्ट्स और कॉमर्स के लिए कट-ऑफ मार्क्स १०० प्रतिशत है। इसी तरह इन्हीं विषयों के लिए हिंदू कॉलेज का कट-ऑफ मार्क्स ९९ प्रतिशत और लेडी श्रीराम कॉलेज का ९७ प्रतिशत है। पिछले साल की तुलना में इस साल के कट-ऑफ मार्क्स में ५-१० प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इन कट-ऑफ सूचियों को देखकर लोग अचंभित हैं और उन्हें इस पर सहसा विश्वास भी नहीं हो रहा है, यहां तक कि फेसबुक और ट्वीटर पर भी इस बारे में चिंता जताई जा रही है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान ऊर्जा मंत्री फारूक अब्दुल्ला ने अपने ट्वीटर पर लिखा है-"इस तरह के कट-ऑफ मार्क्स से तो मैं पत्राचार पाठ्यक्रम कर रहा होता क्योंकि तब मैं पासकोर्स में भी दाखिला नहीं पा सकता था।" केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल को भी यह नागवार गुजरा है और यही कारण है कि उन्होंने इस कट-ऑफ मार्क्स को अतार्किक बताया है और वाइस चांसलर से इस मामले में अपील करने के लिए कहा है। कहना न होगा कि कपिल सिब्बल की चिंता मूल रूप से आम विद्यार्थियों एवं उनके माता-पिता की चिंताओं के ही सापेक्ष है। इसमें कोई शक नहीं कि दूसरी, तीसरी और चौथी सूची में कट-ऑफ मार्क्स नीचे आएगा लेकिन इसने आम विद्यार्थियों के मन में तो दहशत भर ही दी है। यह कितनी हैरत की बात है कि एक तरफ सरकार विद्यार्थियों के दिमाग से परीक्षा का बोझ दूर करने के लिए दसवीं की बोर्ड परीक्षा को वैकल्पिक बना दिया है और दूसरी तरफ उसी की अधीनता में चल रहे कॉलेज कट-ऑफ मार्क्स बढ़ाते जा रहे हैं। बेहतर होगा कि इस विसंगति को दूर किया जाए, वरना सबके लिए शिक्षा का उद्देश्य ही पराजित हो जाएगा। मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल को इसके लिए विशेष प्रयत्न करना चाहिए।

3 टिप्‍पणियां:

  1. यह तो छात्रों में हताशा बढाने वाली खबर है.

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  2. SRCC is a commerce college
    they dont have science and humanities

    so for last 20 years

    they admit only students from commerce stream
    the cut off is higher as the number of commerce students who want to study in commerce college is higher and number of seats are less

    but is a student from science stream or humanities stream wants to study there then they have to have 100% in their stream to migrate to commerce


    media has hyped this 100% cutoff without really understanding

    since we have a long assocition of almost 45 years with delhi university we can understand what the cut off really means when they say 100%

    they dont want to use their commerce seats for other stream students who may latter go to some other college and SRCC may loose a better percentage commerce student

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