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17 जून 2011

कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में किसान की बेटियों ने किया कमाल

कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी ने एमए राजनीति विज्ञान के प्रथम सेमेस्टर व तृतीय सेमेस्टर के नतीजे घोषित किए जिसमें अम्बाला कैंट के आर्य गल्र्स कालेज की पांच छात्राओं ने यूनिवर्सिटी मेरिट में जगह बनाई।

उल्लेखनीय बात यह है कि तीन छात्राएं ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं और किसान की बेटियां हैं। तृतीय सेमेस्टर में डॉली ने यूनिवर्सिटी में दूसरा और रजनी ने दसवां स्थान प्राप्त किया जबकि प्रथम सेमेस्टर में कुमारी नेहा ने यूनिवर्सिटी में सातवां, नेहा चौहान ने 16वां व जसविंद्र ने 17वां स्थान प्राप्त किया है।

कालेज की प्रिंसिपल डा.नीना बेदी, विभागाध्यक्ष डा.स्वर्ण लता शर्मा, डा. अनुपमा आर्य व गुरमीत ने छात्राओं व उनके माता-पिता को बधाई दी।

रोजाना 4 घंटे की पढ़ाई

संभालखा की नेहा चौहान लेक्चरर बनना चाहती है। नेहा रोजाना चार घंटे पढ़ाई करती है। नेहा की उपलब्धि इसलिए भी खास क्योंकि उसके पिता राजपाल सिंह किसान हैं। उसे कालेज आने के लिए रोजाना 16 किलोमीटर का सफर बस में तय करना पड़ता है।

अकसर बस उनके स्टॉपेज पर रुकती ही नहीं थी या रुकती भी तो बस चालक पास होल्डर्स को चढ़ने नहीं देते थे। कई बार उसे ऑटो से आना पड़ता था या पिता उसे कालेज में छोड़कर जाते थे। नेहा कहती है कि मेरे परिवार के सहयोग की वजह से वो अपना सपना पूरा करने की तरफ बढ़ रही है।


12 किलोमीटर का सफर

गांव कलरेहड़ी की जसविंद्र कौर के पिता गुरमीत सिंह भी किसान हैं। मगर जसविंद्र शिक्षिका बनना चाहती है। अपने इस सपने का पूरा करने के लिए जसविंद्र को रोजाना साइकिल पर 12 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। बारिश व गरमी में उसकी दिक्कत और बढ़ जाती है क्योंकि रास्ता भी खराब है। 

जसविंद्र के मां-बाप कम पढ़े लिखे हैं मगर बेटी को पढ़ाने के लिए हर सहयोग कर रहे हैं। पिता का सपना है कि बेटी पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो। कई बार तो पिता खुद मुझे कालेज छोड़ने आते हैं ताकि बेटी की पढ़ाई में बाधा न पड़े। 

बहनों से ली प्रेरणा

बोह गांव की डॉली का अरमान समाज सेविका बनने का है। उसके पिता अशोक कुमार भी किसान हैं। पिता मैट्रिक तक पढ़े हैं मगर अपनी तीनों बेटियों को पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। उन्होंने बेटियों को कह रखा है कि जितना चाहो उतना पढ़ो। 

डॉली की एक बहन आशु एम कॉम कर चुकी है जबकि दूसरी निशा ने एमए की है। अब डॉली भी उन्हीं की राह पर चल रही है। डॉली को भी घर से छह किलोमीटर का सफर तय करने में ऑटो रिक्शा या साइकिल का सहारा लेना पड़ता है। कुछ दिन मेहनत करने से आप सफलता नहीं पा सकते(दैनिक भास्कर,अम्बाला,17.6.11)।

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