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26 जून 2011

डीयूःफर्जीवाड़े के दोषी छात्रों पर होगी कानूनी कार्रवाई

डीयू के नामी कॉलेजों में फर्जी जाति प्रमाण पत्र से दाखिला कराने वाले गिरोह के भंडाफोड़ होने के साथ ही दाखिला पाने के लिए फर्जीवाड़े की मदद लेने वाले छात्र-छात्राएं तथा उनके अभिभावकों पर भी कानूनी तलवार लटक गई है।

दिल्ली पुलिस अब इस गिरोह के आरोपियों के अलावा उन छात्र-छात्राओं पर भी कानूनी शिकंजा कसने की तैयारी कर रही है, जिन्होंने इस फर्जीवाड़े से अपने मनचाहे कॉलेज में दाखिला ले लिया है या लेने जा रहे थे।

अपराध शाखा के एक अधिकारी का कहना है कि पुलिस को कुछ सबूत भी मिले हैं, जो इन उम्मीदवारों पर कानूनी कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त हैं। अधिकारी ने बताया कि आरोपियों से अब तक हुई पूछताछ में पता चला है कि जिस उम्मीदवार का दाखिला ये लोग फर्जी जाति प्रमाण पत्र से कराया करते थे, उसकी पूरी जानकारी उम्मीदवारों व उनके परिजनों को भी दिया करते थे।

इसके अलावा आरोपी उन उम्मीदवारों से आवेदन फार्म में जाति प्रमाण पत्र की जानकारी भरवाने के अलावा झूठा पता भी भरवाया करते थे, जिसके आधार पर फर्जी प्रमाण पत्र तैयार कराया जाता था।


ये दोनों ही बातें स्पष्ट करती हैं कि उम्मीदवार व उनके अभिभावकों ने जानबूझ कर गैर कानूनी काम में सहयोग किया है। पुलिस इन छात्र-छात्राओं व उनके अभिभावकों से पूछताछ करने की तैयारी कर रही है, इस संदर्भ में सभी को नोटिस भेजे जा रहे हैं। फिलहाल पुलिस ने गिरफ्तार तीनों आरोपियों को अदालत में पेश करने के बाद रिमांड पर ले लिया है।

अधिकतर बीकाम में फर्जी दाखिले

फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर दाखिला लेने वाले 12 छात्र-छात्राओं में श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के दो, किरोड़ीमल कॉलेज का एक, श्री वेंकटेश्वर कॉलेज का एक, कमला नेहरू कॉलेज का एक, शहीद भगत सिंह कॉलेज के चार, मोती लाल नेहरू कॉलेज का एक, कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज का एक, दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स का एक छात्र इसमें शामिल रहा है। 

इनमें चार छात्राएं तथा आठ छात्र हैं। इसमें ओबीसी का एक तथा एससी के 11 दाखिले फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर करवाए गए हैं। साथ ही इनमें अधिकतर दाखिले बीकाम में किए गए हैं।

बच नहीं पाएंगे फर्जीवाड़ा करने वाले छात्र

दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के शिकंजे में आए फर्जी जाति प्रमाणपत्र गिरोह के जरिए दाखिले की जुगत में जुटे 22 छात्रों का डीयू की जांच प्रक्रिया से भी बच पाना सम्भव नहीं था। विश्वविद्यालय में कोटे के दाखिलों के लिए अपनाई जाने वाली व्यवस्था के तहत दस्तावेजों की जांच का प्रावधान है, जिसके तहत फर्जीवाड़ा करने वालों का पकड़ा जाना तय है। 

हालांकि इतना जरूर है कि विश्वविद्यालय की यह प्रक्रिया बेहद धीमी है और इसमें कार्रवाई होते-होते साल भी गुजर जाए तो बड़ी बात नहीं है। डीयू की कार्रवाई में होने वाली देरी का उदाहरण है सत्र 2010-11 में दाखिल लेने वाले करीब पांच दर्जन ऐसे कोटे के छात्र जिनके दास्तावेज फर्जी पाए गए थे। 

इन छात्रों की पहचान जनवरी 2011 में हुई जिसके बाद कॉलेजों को इन छात्रों को कारण बताओ नोटिस जारी कर यह पूछने के लिए कहा गया कि क्यों न इनके दाखिले रद्द कर दिए जाएं और फर्जीवाड़े के आरोप में कानूनी कार्रवाई की जाए। 

इन छात्रों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित करने में जुटे एक आलाधिकारी ने बताया कि कॉलेजों को जब यह आदेश जारी हुआ तो पता चला कि कुछ आरोपी तो कार्रवाई से पहले ही रफूचक्कर हो लिए है तो कुछ ने पुराने सर्टिफिकेट के स्थान पर नया सर्टिफिकेट पेश करना शुरू कर दिया है। 

सूत्रों के अनुसार अभी भी बीते सत्र के फर्जी दास्तावेज मामले में आरोपियों के दाखिले रद्द नहीं हुए हैं। साफ है कि कार्रवाई जारी है लेकिन क छुआ चाल से। एससी-एसटी के दाखिलों की प्रक्रिया में दस्तावेजों के स्तर पर जांच की प्रक्रिया से जुड़े डिप्टी रजिस्ट्रार (एकेडमिक) रामदत्त ने बताया कि विश्वविद्यालय व्यवस्था के तहत हर सत्र में होने वाले कोटे के सभी दाखिलों में पेश किए जाने वाले दस्तावेजों की जांच, उन्हें जारी करने वाले संस्थान से कराई जाती है। 

अलग-अलग दास्तावेजों की सत्यता जांचने में चार-पांच माह समय लग जाता है। और ऐसे में फ र्जीवाड़ा करने वाले गिरोह बच निकलते हैं लेकिन उनकी छात्रों को ऐसे हथकड़ों को अपनाने से परहेज करना चाहिए(अभिषेक रावत,दैनिक भास्कर,दिल्ली,26.6.11)।

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