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22 जून 2011

छत्तीसगढ़ःआयुर्वेद की प्री-पीजी परीक्षा में भी घोटाला

पीएमटी के बाद व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) एक और घोटाले में फंसता दिख रहा है। आयुर्वेद में प्री पीजी की पढ़ाई के लिए कुल 17 सीटों में से सिर्फ एक सीट दूसरे राज्य के लिए आरक्षित होने के बावजूद उसने दो विद्यार्थियों को पात्रता दे दी।

खास बात यह भी है कि ये दोनों भाई-बहन हैं और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के काय चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. एसके तिवारी के पुत्र और पुत्री हैं। परीक्षा के बाद जारी मेरिट लिस्ट में वे क्रमश: पहले और दूसरे स्थान पर हैं। लिखित पेपर में भी उन्हें लगभग शत प्रतिशत अंक मिले हैं।

यह भी आरोप है कि प्री पीजी के पर्चे बनारस के सेंटर ने ही तैयार किए थे। व्यापमं के फैसले से आयुर्वेद कॉलेज के प्राचार्य डॉ. डीके तिवारी भी हैरान हैं। उनका कहना है कि व्यापमं से सूची मिलने के बाद ही वह कुछ कर पाएंगे।

व्यापमं ने गत रविवार को एमडी और एमएस की सीटों के लिए आयोजित प्री पीजी परीक्षा के नतीजे घोषित किए थे। पीएमटी का पर्चा फूटने के बाद मचे हंगामे के बीच किसी का ध्यान इस नतीजे पर नहीं गया। व्यापमं ने जब नेट पर नतीजे जारी किए, तो आयुर्वेद कॉलेज में हंगामा मच गया।

रिटन टेस्ट में मेरिट में पहले नंबर पर आए कामताप्रसाद तिवारी को लगभग शतप्रतिशत अंक मिले हैं, वहीं उनकी छोटी बहन बीना तिवारी को 94 फीसदी से ज्यादा अंक मिले। कुछ छात्रों ने नतीजों की प्रति के साथ प्राचार्य डॉ. तिवारी और व्यापमं के कुछ अधिकारियों से शिकायत की है।


प्री पीजी प्रवेश परीक्षा के दो हिस्से होते हैं, जिसमें सैद्धांतिक परीक्षा के लिए 80 अंक और बीएसएमएस की परीक्षा में मिले अंकों के आधार पर अधिकतम 20 अंकों का निर्धारण किया जाता है। इस हिसाब से मेरिट लिस्ट बनती है।

स्थायी निवासी प्रमाणपत्र पर भी शक

प्री पीजी की मेरिट लिस्ट में शामिल तीन अन्य डॉक्टरों के स्थायी निवासी प्रमाणपत्र की प्रामाणिकता पर भी शक है। ये तीनों मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के रहने वाले हैं, लेकिन उन्होंने कोरबा और बिलासपुर का स्थायी निवासी होने का प्रमाणपत्र हासिल किया है। इन तीनों के बारे में भी प्री पीजी में शामिल हुए छात्र गुरुवार को लिखित शिकायत करने वाले हैं। 

इनमें से दो डॉक्टरों के पूरे दस्तावेज भास्कर के पास हैं। स्थायी निवासी प्रमाणपत्र जारी करने के लिए राज्य शासन ने छह शर्ते तय की हैं, इसमें से एक भी छात्र पूरी नहीं करते। 

पहले भी हो चुका है ऐसा: 

फर्जी स्थायी निवासी प्रमाणपत्र के आधार पर पीजी सीटों पर कब्जा करने का यह पहला मौका नहीं है। वर्ष 2008 में ऐसे दो मामले पकड़े गए थे। मध्यप्रदेश में पूरी पढ़ाई करने वाले दो डॉक्टरों अमरनाथ शुक्ला और सतीश चौरसिया ने छत्तीसगढ़ का स्थायी निवासी प्रमाणपत्र बनाकर प्रवेश ले लिया था। 

शिकायत के बाद हुई जांच में कवर्धा कलेक्टर ने पाया कि प्रमाणपत्र ही फर्जी है। सतीश के पास मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों प्रदेशों का स्थायी निवासी प्रमाणपत्र था। इन दोनों के प्रवेश को निरस्त कर दिया था। मामला हाईकोर्ट गया। तकनीकी आधार पर अदालत से दोनों को राहत मिली थी।

मिली है शिकायतें

"व्यापमं से अभी प्री पीजी की सूची नहीं मिली है। वाराणसी के भाई-बहनों को सबसे ज्यादा अंक मिलने की मौखिक शिकायत कुछ छात्रों ने की है। कॉलेज में दूसरे प्रदेश के छात्र के लिए एक सीट है। भाई-बहनों को किस आधार पर चुना, यह साफ नहीं है। "

डॉ. डीके तिवारी, प्राचार्य आयुर्वेद कॉलेज(राजेश जोशी,दैनिक भास्कर,रायपुर,22.6.11)

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