अमेरिका के प्रेजिडेंशियल हाउस की ओर से मारवाड़ी को अंतरराष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने को पद्मश्री डॉ चंद्र प्रकाश देवल ने ‘दुनिया भर में आठ करोड़ लोगों की भाषा को मान्यता’ बताया है।
भास्कर से इस संबंध में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका जैसा देश ज्ञान के सारे मार्ग अपनी ओर खोल लेना चाहता है। मीरां जैसी महान कवयित्री के ज्ञान का मार्ग राजस्थानी भी उनमें से एक है। दुनिया भर में आठ करोड़ से अधिक लोगों की भाषा राजस्थानी के माध्यम से वह हजार साल से अधिक पुरानी एक समृद्ध परंपरा से खुद को जोड़ना चाहता है।
दूसरी ओर ठीक उलट हमारे देश में ज्ञान के ऐसे सारे मार्ग बंद किए जा रहे हैं। रामचरित मानस की भाषा अवधि, सूरदास की भाषा ब्रज के अलावा भोजपुरी जैसी भाषाओं के साथ न्याय नहीं किया जा रहा। इन भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल न कर हमारी उन्नति के मार्ग में अवरोध पैदा किए जा रहे हैं।
इस विषय पर शहर के साहित्यकारों और राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति ने भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
हमारी सरकार है असंवेदनशील
अमेरिकी राष्ट्रपति भवन में मारवाड़ी को अंतरराष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिलना एक सुखद घटना है। उन्हें हमारी समृद्ध परंपराओं का अहसास है, तभी यह महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हमारी सरकार की है जो मामले में अभी भी असंवेदनशील है। इस कारण राजस्थान की युवा पीढ़ी बड़ा नुकसान उठा रही है। जनप्रतिनिधियों को आगे आना चाहिए।
डॉ विनोद सोमानी, साहित्यकार
कंप्यूटर की भाषा बनाना होगा
भाषा की मान्यता के लिए हम सरकार या राजनीतिज्ञों की ओर देखें ही क्यों? सवाल यह है कि हम दुनिया भर में फैले आठ करोड़ राजस्थानी लोग अपनी लोक भाषा का कंप्यूटर युग में तालमेल बिठाने के लिए क्या कर रहे हैं। इसे आपसी संप्रेषण का माध्यम बनाते हुए हमें इसे आज की तकनीक की भाषा बनाना होगा। एक व्यावहारिक पहल करनी होगी। - बख्शीश सिंह, साहित्यकार
यह व्हाइट हाउस की जरूरत
दुनिया की सबसे बड़ी ताकत ने बाजारवाद के चलते व्यावहारिक सत्ता को सामने रख कर एक बड़ा कदम उठाया है। यह व्हाइट हाउस की जरूरत है। मारवाड़ी को उसने उपयोगिता के आधार पर परखा है। वह हमारी ताकत का उपयोग करेगा। हमारी राजनीतिक सत्ता यह नहीं समझेगी। नई पीढ़ी सोशल नेटवर्किग साइट जैसे साधनों से राजस्थानी को आगे बढ़ाए।
रासबिहारी गौड़, हास्य कवि(दैनिक भास्कर,अजमेर,25.6.11)
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