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24 जून 2011

दिल्लीःऐतिहासिक स्थलों में गुरुकुल की तालीम

दिन में पुरानी यादों से रूबरू कराते दिल्ली के ऐतिहासिक स्थल रात होते ही गुरुकुल में तब्दील हो जाते हैं। पेट की आग बुझाने के लिए पूरे दिन मेहनत करने वाले हर उम्र के मजदूर इन ऐतिहासिक परिसरों में शिक्षित समाज में शामिल होने की कोशिश करते नजर आते हैं। दिन भर फावड़ा कुल्हाड़ी थामने वाले हाथों में रात होते ही स्लेट व किताबें नजर आने लगती हैं।
तुगलकाबाद, आदिलावाद जैसे ऐतिहासिक स्थलों का नजारा ऐसा है कि खुले मैदानों में बने शामियानों के नीचे पेट्रोमेक्स की रोशनी के बीच बच्चे, महिलाएं एवं बुजुर्ग किताबों में अक्षर तलाशते दिखते हैं। इस कोशिश का ही असर है कि अब ये अनपढ़ मजदूर कई महीनों की मेहनत के बाद अब वे न सिर्फ चिट्ठी लिखना सीख चुके है, बल्कि अब हर शाम मिलने वाली मजदूरी की गिनती भी खुद कर सकते हैं।

दरअसल, यह प्रयास भारतीय पुरातत्व विभाग के कुछ अधिकारियों के व्यक्तिगत प्रयास से संभव हो सका है। एएसआई अधीक्षक एवं इस प्रयास के संयोजक मोहम्मद केके बताते हैं कि इन मजदूरों में ज्यादातर मजदूर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पिछड़े इलाकों से हैं, जहां जीवन यापन का महज एक ही जरिया मजदूरी है।
हालत यह है कि मजदूर यहां मेहनत कर एक जून की रोटी कमाते हैं तो उनके छोटे बच्चे भीख मांग कर अपने परिवार को आर्थिक सहारा देने की कोशिश करते हैं। आज यह गुरुकुल न सिर्फ इन बच्चों को पढ़ा रहा है, बल्कि निरक्षर परिजनों को भी पढ़ाई के लिए मानसिक रूप से तैयार कर रहा है।
उन्होंने बताया कि शुरुआत में आर्थिक तंगी और थकान को आधार बताकर ये मजदूर यहां आने से कतराते थे, लेकिन जब से यहां रात के खाने की व्यवस्था की गई है, तब से पढ़ाई के लिए पहुंचने वाले मजदूरों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है(दैनिक भास्कर,दिल्ली,24.6.11)।

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