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20 जून 2011

निजी हाथों में जाएंगे सरकारी स्कूल

सरकार की योजना अगर फलीभूत हुई तो आने वाले समय में देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्कूलों की आधारभूत संरचना से लेकर इसका संचालन निजी क्षेत्रों के माध्यम से किया जा सकेगा। शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने और इसमें व्यापक विस्तार के लिए सर्वजनिक और निजी भागीदारी (पीपीपी) को आगे बढ़ाने के प्रयास के तहत ऐसा संभव हो पाएगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कुछ दिनों पहले हुई केंद्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद (केब) की बैठक में इस विषय पर राज्यों के शिक्षा मंत्रियों और अन्य पक्षों के साथ चर्चा की गई। उन्होंने कहा कि राज्यों के शिक्षा मंत्रियों ने स्कूली शिक्षा में निजी क्षेत्र के प्रवेश के सुझाव का स्वागत किया और कहा कि अगर ग्रामीण क्षेत्रों में निजी क्षेत्र स्कूली आधारभूत संरचना का विकास करने आगे आते हैं, तो अच्छा कदम होगा। योजना के तहत जिन मॉडलों पर विचार किया जा रहा है, उनमें से एक मॉडल में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के बीच वित्तीय एवं अन्य सहयोग का स्पष्ट ढांचा तैयार किया जाएगा। इस उद्देश्य के लिए एस्क्रो एकाउंट (सशर्त संयुक्त खाता) गठित करने का उल्लेख है, ताकि विवाद से बचा जा सके। निजी क्षेत्र को स्कूली इमारत की आधारभूत संरचना तैयार करने और इसके रखरखाव की जिम्मेदारी होगी, लेकिन शैक्षणिक सेवाओं में इनकी कोई भूमिका नहीं होगी। अर्थात ये पूर्णत: सरकारी स्कूली होंगे। हालांकि, स्कूलों की इमारतों का निर्माण न तो सरकरी एजेंसियों की ओर से किया जाएगा और न ही इन्हें बनाने में शुरू में सरकारी धन का उपयोग होगा। इस मॉडल के तहत स्कूलों की पुरानी इमारतों को नया स्वरूप भी प्रदान किया जा सकता है। इस संबंध में निविदा की शतरे का दस्तावेज में स्पष्ट उल्लेख किया जाएगा। पुरानी इमारतों को नया स्वरूप प्रदान करने वाली निजी कंपनी को सरकार को पूरी तरह से संतुष्ट करना होगा, तभी खर्च की गई रकम उन्हें वापस की जा सकेगी। निर्माण और रखरखाव का ठेका प्रारंभ में 10 वर्षो के लिए दिया जा सकता है। एक अन्य मॉडल में आधारभूत संचरना के निर्माण के साथ निजी क्षेत्र को शैक्षणिक सेवाओं का अनुबंध भी दिया जा सकता है। इस संबंध में निजी क्षेत्र को शिक्षकों की नियुक्ति का अधिकार होगा और प्रति छात्र फीस तकनीकी समीक्षा के जरिए बोली लगाकर तय की जाएगी। निजी क्षेत्रों के लिए इसमें प्रबंधन कोटे की व्यवस्था होगी, जबकि समाज के कमजोर वर्ग एवं अन्य मेधावी छात्रों के लिए सरकारी सीट का प्रावधान होगा। निजी क्षेत्र फीस एवं अन्य माध्यमों से एक निश्चित अवधि में अपना खर्च निकाल सकेंगे। यह अवधि 10 से 20 वर्ष हो सकती है। वर्ष 2008-09 के आंकड़ों के मुताबिक, देश में 29.82 प्रतिशत उच्चतर माध्यमिक स्कूल, 26.73 प्रतिशत उच्च माध्यमिक विद्यालय, 9.17 प्रतिशत माध्यमिक और 5.76 प्रतिशत प्राथमिक स्कूल निजी क्षेत्र की ओर से संचालित हैं(राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,20.6.11)।

2 टिप्‍पणियां:

  1. स्वागत योग्य कदम .
    कम से कम ग्रामीण क्षेत्रों को इसका फायदा अवश्य पहुंचेगा जहाँ सरकारी शिक्षक मोटी तन्खवाह लेकर किसी अन्य को अपनी ड्यूटी करने भेज देते हैं और छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करते हैं .

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  2. सब एक जैसे नहीं,सुधार की आवश्यकता है.

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