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27 जून 2011

छत्तीसगढ़ में शिक्षा का अधिकार कानून ध्वस्त, नियमों की उड़ीं धज्जियां

शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) राजधानी में ही ध्वस्त हो गया। पूरी ताकत झोंकने के बावजूद शिक्षा विभाग छोटे-मोटे स्कूलों में ही गरीब बच्चों का दाखिला करवा सका। बड़े प्राइवेट स्कूलों ने कानून की धज्जियां उड़ाते हुए प्रवेश देना तो दूर खाली सीटों की जानकारी तक नहीं दी। सरकारी नोटिस को कूड़ेदान में फेंक दिया। अब कलेक्टर ने कानूनी कार्रवाई करने के लिए नोटिस जारी की है।

नोटिस के माध्यम से निजी स्कूलों से इस बारे जवाब मांगा गया है। अफसरों ने कानून का पालन न करने वाले स्कूलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के संकेत दिए हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि छोटे-बड़े सारे स्कूलों को तीन मर्तबा नोटिस जारी किया गया था। इसमें उनसे कक्षा पहली में खाली सीटों का ब्यौरा मांगा गया था।

नोटिस के बाद केवल छोटे और मंझोले स्कूलों ने ही प्रवेश दिया। प्रतिष्ठित स्कूलों ने रुचि नहीं ली। न तो गरीब वर्ग के बच्चों को प्रवेश दिया और न ही सीटों के बारे में जानकारी दी। शिक्षा का अधिकार कानून के तहत प्रवेश दिलाने की अंतिम तारीख 24 जून तय की गई थी। इस वजह से प्रशासनिक अधिकारी अब तक चुप्पी साधकर बैठे रहे। हालांकि 23 जून को प्रवेश की मियाद खत्म होने के एक दिन पहले कलेक्टर ने नोटिस जारी किया।

परेशान थे कई निजी स्कूल

-25 फीसदी सीटों को आरक्षित करने से निजी स्कूलों को डोनेशन से लेकर अन्य मदों में मिलने वाली मोटी रकम से हाथ धोना पड़ता।

-हर महीने की फीस के रूप में भी सालभर घाटा होता क्योंकि राज्य सरकार मूल फीस की रकम तो देने से रही।


जिले के निजी स्कूलों को कितना घाटा

-औसत फीस प्रति छात्र- 600 रुपए/महीना

- औसत एडमिशन फीस प्रति छात्र- 2 हजार/महीना

- डोनेशन के रूप में करीब 7.50 करोड़ रुपए

- फीस के रूप में 1.60 करोड़ रुपए।

मंत्री के पीए को एक घंटा गेट पर खड़ा रखा

होलीक्रॉस स्कूल प्रबंधन ने पिछले दिनों एक घंटे तक शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के पीए रघुवेंद्र सिंह को गेट के बाहर खड़ा कर दिया। आधा घंटा खड़े रहने के बाद उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी सहित आधा दर्जन अफसरों व कोतवाली पुलिस बल को बुलवा लिया। इसके बावजूद आधा घंटे बाद गेट खोला गया। अफसरों ने प्राचार्य की जमकर क्लास ली। 

दरअसल श्री सिंह आधा दर्जन बच्चों को प्रवेश देने की सिफारिश लेकर गए थे। उसी स्कूल से 10वीं पास करने के बावजूद स्कूल प्रबंधन ने उन बच्चों को कक्षा 11वीं में प्रवेश देने से इनकार कर दिया था। प्राइवेट स्कूल जब अपने ही स्टूडेंट को दाखिला देने में आना कानी कर रहे हैं, ऐसे हालात में यह अनुमान ही लगाया जा सकता है कि वे शिक्षा का अधिकार कानून के तहत गरीब बच्चों को कैसे प्रवेश देंगे?

अधिकारी का काम

राज्य शासन ने सरकारी स्कूल के प्राचार्यो को अपने इलाके का नोडल अधिकारी बनाया था। उनका काम था-

- बस्तियों में प्रचार कर पालकों को प्रोत्साहित करना और बताना कि फीस शासन अदा करेगा।

- योजना के प्रचार के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों की मदद लेना। 

- घर के पास की निजी शाला में प्रवेश के लिए पालकों से आवेदन लेना।

- निजी स्कूलों से बातचीत कर प्रवेश सुनिश्चित करना। 

मैदानी हालात यह रही

नोडल अधिकारी गरीब बस्तियों में गए ही नहीं।

प्रचार-प्रसार के लिए राज्य शासन से एक धेला नोडल अधिकारी को नहीं मिला। पूरा प्रचार स्कूल के शिक्षकों के भरोसे किसी तरह चला। 

तारीख नहीं बढ़ाई गई तो हजारों बच्चे अपना हक पाने से वंचित रह जाएंगे। 

"स्कूलों में प्रवेश का समय 30 जून तक बढ़ाया जाएगा। बड़े स्कूलों को कानूनी नियमों का पालन करते हुए हर हाल में प्रवेश देना होगा, बशर्ते कि उन स्कूलों के सीमाक्षेत्र में निर्धारित मापदंड के अनुसार बच्चे मिलें।" 

डॉ. आर बाम्बरा, जिला शिक्षा अधिकारी(सुधीर उपाध्याय,दैनिक भास्कर,रायपुर,27.6.11)

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