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20 जून 2011

दिल्लीःनगरपालिका बंटवारे पर चुस्त, भर्ती पर सुस्त

दिल्ली का कायापलट कैसे संभव है जब बड़े स्तर पर अधिकारियों का कमी हो। दिल्ली सरकार ने भी एमसीडी को बांटने की प्रक्रिया तो शुरू कर दी है, लेकिन एमसीडी में खाली पड़े पदों को भरने के लिए फिलहाल कोई योजना नहीं बनायी गई है। इसकी वजह से दिल्ली को बेहतर बनाने का कार्य अधूरा पड़ा है।

आंकड़ों से ज्ञात होता है कि एमसीडी में फिलहाल 34 हजार पद रिक्त हैं, यानि एमसीडी के कुल एक लाख 33 हजार 433 स्वीकृत पदों का एक बड़ा हिस्सा खाली पड़ा हुआ है। जानकारी के अनुसार ग्रुप ए के स्वीकृत 2063 पदों में से 482 पद रिक्त पड़े हुए हैं।

इसके अलावा ग्रुप बी के कुल 30673 पदों में से 6123 पद रिक्त, ग्रुप सी के कुल स्वीकृत 11074 पदों में से 2913 पद रिक्त और ग्रुप डी के कुल 89623 पदों में से 24406 पद खाली पड़े हुए हैं। इस प्रकार, एमसीडी में कुल रिक्त पद 33924 हैं। निगम में वरिष्ठ पदों पर आमतौर पर प्रतिनियुक्ति के आधार पर आए अधिकारी ही नियुक्त हैं।


आंकड़ों के अनुसार निगम में उपायुक्त के कुल 16 पद हैं, जिनमें से केवल 12 पद भरे हुए हैं तथा 4 पद रिक्त हैं। अतिरिक्त आयुक्त के 21 पद हैं, जिनमें से 6 पद रिक्त हैं। इसी तरह, सहायक आयुक्त के 55 पद हैं, जिनमें से 23 पद खाली हैं। प्रशासनिक अधिकारी के 115 पदों में से 56 पद खाली हैं जो कि विभागीय अधिकारियों की पदोन्नति द्वारा भरे जाने हैं। 

एमसीडी का सबसे बड़ा कार्य दिल्ली को साफ-सुथरा और बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना होता है, लेकिन जब एक चौथाई कर्मचारियों के पद खाली पड़े हैं तो राजधानी का विकास कैसे हो पाएगा। इसके अलावा, संपत्ति कर की वसूली का जिम्मा भी एमसीडी का है, लेकिन एमसीडी में क्लर्कों की कमी होने के कारण कागजी कार्य ही पूरे नहीं हो पाते हैं। 

एमसीडी में फिलहाल क्लर्कों के लगभग 500 पद रिक्त हैं। इसके अलावा, एमसीडी द्वारा राजधानी में लगभग 1732 विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं। इन विद्यालयों में लगभग 10 लाख बच्चे अध्ययनरत हैं, लेकिन यहां भी फिलहाल लगभग सात हजार शिक्षकों के पद रिक्त हैं। ऐसे में इन बच्चों के भविष्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है। निगम में वरिष्ठ अधिकारियों की बड़े पैमाने पर कमी है। 

विपक्ष के नेता जयकिशन शर्मा का कहना है कि विभागीय अधिकारियों के सेवानिवृत्त होने और विभागीय अधिकारियों की पदोन्नति न करने की वजह से बुनियादी सुविधाओं के विकास पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है(बलिराम सिंह,दैनिक भास्कर,दिल्ली,20.6.11)।

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