मुख्य समाचारः

सम्पर्कःeduployment@gmail.com

28 जून 2011

डीयूःकमाई का बड़ा जरिया है कॉलेजों में दाखिले का धंधा

दिल्ली विश्वविद्यालय में कमाई के "पार्ट टाइम धंधे" अब खूब फल फूल रहे हैं। चाहे वह दाखिले का मौसम हो या परीक्षा का, बिचौलिए इसका जमकर फायदा उठाते हैं। आलम यह कि दो माह की कमाई पूरे साल घर बैठे खाने का इंतजाम करा देता है। इन्हें रोकने लिए विश्वविद्यालय के पास कोई ब़ड़ा तंत्र नहीं है। प्रशासन अगर एक रास्ता बंद करने की कोशिश करता है तो दूसरा खुल जाता है। यह सिलसिला वर्षों से जारी है।

दाखिले में पहले स्पोर्ट्स और ईसीए कोटा तो अब ओबीसी व एससी, एसटी कोटा के जरिए दाखिले कराने के लिए दलाल आगे आए हैं। कॉलेजों में पिछले दो साल से इस काम में तेजी आई है। स्पोर्ट्स में पिछले साल सेंट्रलाइज दाखिला प्रक्रिया अपनाए जाने के कारण दलालों की दाल नहीं गली। कुछ ने ईसीए कोटा का सहारा लिया था। हिन्दू कॉलेज में इसको लेकर खासा विवाद भी ख़ड़ा हो गया था। प्राचार्य ने बीच बचाव करके मामले को सुलझा लिया। स्पोर्ट्स कोटा में सर्टिफिकेट बनवाकर या ट्रायल मैनेज करके दाखिला दिलाने के धंधे पर लगाई गई लगाम से यह रास्ता अब काफी जोखिम भरा हो गया है। इस बार ७५ फीसदी अंक राष्ट्रीय व जोनल खेलों के सर्टिफिकेट के लिए रख दिए गये हैं। २५ फीसदी अंक सिर्फ ट्रायल के हैं। ईसीए के जरिए दाखिले का खेल अब भी कॉलेज शिक्षक व बिचौलिये की सांठगांठ से चल रहा है।

दाखिला दिलाने के कई हैं रास्ते

कॉलेजों में पैसा खिलाकर दाखिला पाने के कई रास्ते हैं। इनमें स्पोर्ट्स व ईसीए कोटा प्रमुख हैं। इनमें स्पोर्ट्स पर थो़ड़ी सख्ती हो गई है पर ईसीए का अब भी खुला है। दूसरा सबसे ब़ड़ा रास्ता अब आरक्षित सीटों पर दाखिले का है। इनमें एससी, एसटी व ओबीसी सर्टिफिकेट बनवाकर दाखिला दिलवाने का है। एससी, एसटी का सेंट्रलाइज दाखिला होने के बावजूद दलाल सर्टिफिकेट के आधार पर दाखिला दिला देते हैं। सर्टिफिकेट बनवाकर दाखिला दिलाने के एवज में दो से पांच लाख ヒपये तक लिए जा रहे हैं। कॉलेजों में ओबीसी की २७ फीसदी सीटें ब़ढ़ने से यह काम और तेज हो गया है। पिछले दो साल में ओबीसी की काफी सीटें खाली रह गई थीं।

शहीद भगत सिंह कॉलेज में पिछले सत्र में फर्जी सर्टिफिकेट से १२ दाखिले हुए थे। प्रशासन इस पर देर से जागा और दाखिले रद्द करके अपनी इतिश्री कर ली। जो लोग शामिल थे उनकी धरपक़ड़ अबतक नहीं हुई। विश्वविद्यालय में इस तरह कई और कॉलेजों में भी मामला सामने आए हैं पर कार्रवाई का कोई ऐसा उदाहरण नहीं पेश किया गया है जिसके कारण दलालों के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं।

क्या कहते हैं प्राचार्य


हंसराज कॉलेज के प्राचार्य वीके क्वात्रा पिछले दिनों हुई धरपक़ड़ के बाद कहते हैं, ओबीसी कैटेगरी के छात्रों से अब माता पिता की जाति प्रमाणपत्र भी ली जाएगी। जिनके पास यह नहीं है उन्हें कुछ दिन का वक्त दिया जाएगा। मसलन स्थानीय ओबीसी छात्र को तीन दिन का और दूसरे राज्यों के छात्रों को सात दिन का। इस मोहलत के बाद भी छात्र प्रमाणपत्र नहीं लाते तो उनका दाखिला रद्द कर दिया जाएगा। हिन्दू कॉलेज के प्राचार्य वीके श्रीवास्तव कहते हैं, आरक्षित सीटों पर छात्रों को दाखिला प्रोविजन दिया जाता है। जब सर्टिफिकेट की जांच जारी करने वाले अधिकारी से विश्वविद्यालय द्वारा करा ली जाती है तो छात्र के दाखिले की पुष्टि होती है। ओबीसी में भी यही प्रक्रिया अपनाई जा रही है। इस काम में चार से छह माह लग जाते हैं। इसे जल्द निपटाने के लिए प्रशासन को दाखिला से पहले विज्ञापन जारी कर छात्रों को यह सूचित किया जाना चाहिए कि अप्रैल व मई में प्रमाणपत्र बनवाने का काम कर लें। डा श्रीवास्तव के मुताबिक इस तरह का प्रस्ताव विश्वविद्यालय प्रशासन के समक्ष रखा जाएगा। एसआरसीसी कॉलेज के प्राचार्य पीसी जैन ने बताया कि पिछले दिनों दलालों की धरपक़ड़ के बाद अब दूसरे छात्र यह हिम्मत नहीं कर पाएंगे। प्रशासन भी नजर रखेगा। उधर विश्वविद्यालय में एससी, एसटी सेल के प्रभारी रामदत्त कहते हैं, सर्टिफिकेट जारी करने वाले अधिकारी से प्रशाासन जांच कराता है। वक्त जरूर लगता है लेकिन फर्जीवा़ड़ा पक़ड़ा जाता है। यह पूछने पर कि ऐसे कितने मामले आए हैं ? उन्होंने बताया कि एकाध मामले आ जाते हैं।

परीक्षा पास कराओ

कॉपी जांचने व नम्बर ब़ढ़वाने के काम के लिए दलाल सक्रिय हैं। वे गुपचुप तरीके से इस काम को अंजाम देते हैं। इसके एवज में उन्हें अच्छा खासा पैसा भी मिलता है। इस काम में ऐसे शिक्षकों की भी मिलीभगत होती है जो कायदे कानून ताक पर रखकर थोक के भाव में कॉपी जांचने का काम करते हैं। विश्वविद्यालय ऐसे लोगों का एक संगठित गिरोह है जो प्रशासन से रोके नहीं रुक पा रहा है।

सेंटर पर नकल कराने का भी धंधा है चोखा

विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग का परीक्षा केन्द्र लेकर गर्मी में लाखों की कमाई जाती है। यह सब होता है नकल कराकर। स्कूलों में परीक्षा विभाग के कर्मचारियों के साथ मिलीभगत करके सेंटर वाले और दलाल छात्रों से नकल करवाते हैं। छात्रों कमरे में नकल की छूट देने के एवज में प्रति पेपर २ हजार से ५ ヒपये तक देना होता है। पिछले दिनों पहा़ड़गंज के सर्वोदय बाल विद्यालय में ऐसा ही रैकेट पक़ड़ा गया था। इससे पहले भी कई मामले सामने आए हैं। लेकिन खास बात यह कि विश्वविद्यालय प्रशासन या परीक्षा विभाग इसे रोकने के लिए अबतक सख्त कदम नहीं उठा पाया है(अनुपम कुमार,नई दुनिया,दिल्ली,28.6.11)

1 टिप्पणी:

  1. सही फरमाया
    सभी तो परेशान है
    दाखिले के लिये
    किसी को मिला
    किसी को नही
    पर किसे है शिकवा
    कुछ परेशान हैं
    कुछ हैरान है
    पर.......

    जवाब देंहटाएं

टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।