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30 जून 2011

जयपुर का पोद्दार मूक-बधिर उच्च माध्यमिक विद्यालयःबच्चे ‘विशेष’ तो पढ़ाई सामान्य क्यों?

राजकीय सेठ आनंदीलाल पोद्दार मूक-बधिर उच्च माध्यमिक विद्यालय में अध्ययनरत 529 बच्चे सवा साल से स्पीच थैरेपिस्ट और डैफ ट्रेनर की सुविधाओं से वंचित हैं। स्कूल में स्पीच थैरेपी के लिए 10 लाख रुपए की लागत से साउंड प्रूफ रूम तैयार है।

सवा साल पहले इसके लोकार्पण समारोह पर शिक्षामंत्री मास्टर भंवरलाल ने अतिरिक्त स्पीच थैरेपिस्ट और डैफ ट्रेनर लगाने की घोषणा की थी। नए प्रशिक्षक तो नहीं लगाए गए, बल्कि राजस्थान प्रारंभिक शिक्षा परिषद ने पुराने ट्रेनर्स को और हटा दिया। बहरहाल स्कूली मूक-बधिर छात्रों को विशेषज्ञ ट्रेनर के अभाव में साउंड प्रूफ रूम की जिम्मेदारी एक सामान्य अध्यापक को सौप रखी है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री कोटे से ३५ लाख रुपए खर्च कर स्कूल के छह बच्चों का कोलियरी इंप्लांट करा दिया।


इन बच्चों को स्पीच थैरेपी के लिए अलग से दो लाख रुपए खर्च कर ट्रेनिंग ठेके पर दिलाई जा रही है, जबकि स्कूल में ही प्रशिक्षक लगा दिए जाते तो शेष 529 बच्चों को भी इसका फायदा होता। पूरे मामले पर परिषद के अतिरिक्त कमिश्नर वी.के. जैन का तर्क है कि विद्यालय माध्यमिक शिक्षा विभाग के तहत आता है, जो सर्व शिक्षा के कार्यक्षेत्र से बाहर है। साथ ही अभियान में राजकीय सामान्य विद्यालयों के लिए कार्यक्रम चलाए जाते हैं, जबकि पोद्दार विशेष शिक्षा विद्यालय है।
ऐसे में अभियान के तहत प्रशिक्षकों की नियुक्ति नहीं की जा सकती। इस तर्क के ठीक उलट विद्यालय में लगे 32 अध्यापकों के वेतन का भुगतान सर्व शिक्षा के बजट से किया जा रहा है। एक ओर परिषद ने पल्ला झाड़ लिया, वहीं दूसरी ओर माध्यमिक शिक्षा विभाग ने भी प्रशिक्षक लगाने की जहमत नहीं उठाई। अब माध्यमिक शिक्षा के अधिकारी इस सत्र में स्पीच थैरेपिस्ट लगने का दावा कर रहें है, लेकिन डैफ ट्रेनर लगाने के किसी प्रस्ताव से इनकार कर रहे हैं।

बिना प्रशिक्षक सब बेकार: स्पीच थैरेपिस्ट और डैफ ट्रेनर के बिना बोलने-सुनने में असमर्थ बच्चों का विकास सही तरीके से नहीं हो पाता। चाहे उन्हें किसी विशेष स्कूल में भी भर्ती क्यों न करा दिया जाए। एसएमएस कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मनीष ग्रोवर कहते हैं कि ऑडेट्री ट्रेनिंग, स्पीच थैरेपी, वाणी और भाषा विकास का काम स्पीच थैरेपिस्ट ही कर सकता है। इसी तरह डैफ ट्रेनर बच्चों को सामान्य आदमी की बात समझने और उनकी बाद सामान्य व्यक्तिको समझाने का काम करता है। साथ ही अध्यापकों को कम्युनिकेशन प्रशिक्षण देता है। इसके अलावा जब भी अध्यापकों और बच्चों को एक-दूसरे की बात समझने में दिक्कत होती है तो वह मदद करता है।

स्पीच थैरेपिस्ट और डैफ ट्रेनर विशेष रूप से प्रशिक्षित होते हैं। मेरे पास उस स्तर का प्रशिक्षण नहीं है। मुझे जितना आता है, सिखा देता हूं। - योगेश कुमार तंवर, प्रभारी, साउंड प्रूफ रूम

इस सत्र में लगाएंगे - भास्कर ए. सावंत, निदेशक, माध्यमिक शिक्षा विभाग से सवाल

पोद्दार में साउंड प्रूफ रूम बनवाया, लेकिन स्पीच थैरेपिस्ट नहीं लगाया?
सर्व शिक्षा अभियान के तहत वहां एक स्पीच थैरेपिस्ट था।

उसे तो एक साल पहले सर्व शिक्षा वालों ने हटा लिया। मंत्रीजी की घोषणा के बावजूद विभाग ने अब तक क्यों नहीं लगाए?
मैंने तो तत्काल कार्रवाई शुरू कर दी थी। शिक्षा विभाग में अकाउंट्स वालों के स्तर पर अटक गया था। अब कोई दिक्कत नहीं है इस सत्र में स्पीच थैरेपिस्ट लग जाएगा।

डैफ ट्रेनर क्यों नहीं लगाया?
केवल स्पीच थैरेपिस्ट का ही प्रपोजल आया था। डैफ ट्रेनर की जरूरत के बारे में तो कोई प्रस्ताव ही नहीं है।

ये सवाल तो सुलझाना पड़ेगा - विमल कुमार जैन, एडिशनल कमिश्नर, राप्राशिप से सवाल

पोद्दार स्कूल से स्पेशल ट्रेनर क्यों हटाए गए?
स्कूल उच्च माध्यमिक स्तर का होने से हमारे कार्यक्षेत्र से बाहर है।

तो फिर वहां 32 स्पेशल टीचर कैसे लगा दिए?
दरअसल उन्हें लगाया तो शिक्षा विभाग ने है, हम तो केवल उनके वेतन का बजट दे रहे हैं। अभियान केवल प्राथमिक शिक्षा के लिए काम करता है।

तो माध्यमिक स्कूल के अध्यापकों का बजट आप कैसे वहन कर रहे हैं, दो साल पहले प्रशिक्षक कैसे लगाए थे?
सवाल तो ठीक है, मैं दिखवाता हूं क्या बेहतर हो सकता है(योगेश शर्मा,दैनिक भास्कर,जयपुर,30.6.11)।

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