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24 जून 2011

शिव के तांडव नृत्य पर विदेशी शोध

हिंदुओं के आराध्य महादेव यानी भगवान शिव पर विदेशों में शोध किया जा रहा है। शिव का तांडव नृत्य विदेशियों के लिए शोध का विषय बन गया है।

इस विषय पर रिसर्च कर रहे यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर यदेश जेसन इन दिनों ऋषि मुनियों के समय से चली आ रही भगवान शिव पर आधारित मान्यताओं और उपासना पद्धति पर सामग्री जुटा रहे हैं। इसके लिए वे जोधपुर स्थित राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में भगवान शिव के तांडव नृत्य से संबंधित प्राचीन ग्रंथों को टटोल रहे हैं। विभिन्न पूजा पद्धतियों तथा भक्ति की वैज्ञानिक और आध्यात्मिक अवधारणाओं से परिचित होने के बाद अब वे भक्ति पर पुस्तक लिख रहे है।

सीख रहे हैं तंत्र विद्या: राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से मिले एक प्रोजेक्ट के तहत शोध कर रहे प्रो.यदेश ने प्रतिष्ठान में मौजूद विक्रम संवत 1840 शिव तांडव तंत्र यंत्र प्रकरण के साथ विक्रम संवत 1949 का तंत्र ग्रंथ, जननी स्तुति, ललितार्चन, कौमुदी, सिद्धयोग, कौलसूक्त, त्रिपुर विद्या, शंखोद्धार निधि सहित 12 वीं से 20 वीं सदी के 19 ग्रंथों से संदर्भ सामग्री जुटाई है। इस विषय पर शोध करने के लिए उन्होंने सबसे पहले संस्कृत व हिंदी भाषा सीखी। जोधपुर का काम पूरा हो जाने के बाद वे राज्य अभिलेखागार चेन्नई, पुड्डूचेरी व केरल जाएंगे।


प्रो.यदेश ने बताया कि अब तक वे वाराणसी, उज्जैन, ओंकारेश्वर, नासिक, कोल्हापुर, तिरूअनंतपुरम ग्रंथालयों से सामग्री संकलन करके लाए हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका में हिंदुओं के साथ ही भगवान शिव की स्तुति अन्य धर्म के लोग भी करते हैं। शिव की तपस्या और तांडव नृत्य तो काफी प्रचलित हैं। सामग्री संकलन के बाद वे अपने देश जाकर किताब प्रकाशित करेंगे। उन्होंने आशा जताई कि यह विषय यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले छात्रों के लिए अनछुआ एवं रुचिपूर्ण साबित होगा। यदेश ने ग्रंथों की सचित्र फोटो कॉपी लेने के साथ आर्ट गैलरी में संरक्षित ऐतिहासिक पुरा सामग्री का भी अवलोकन किया। 

भक्ति नामक पुस्तक का प्रकाशन करेंगे: यदेश शिव तांडव नृत्य पर शोध कर रहे है। पिछले दो दिनों से ग्रंथों की छंटनी करने के बाद संबंधित ग्रंथों की सचित्र फोटो कॉपी उपलब्ध करा दी गई है। वे भक्ति नामक पुस्तक की एक प्रति प्रतिष्ठान को भी भेजेंगे। - डॉ. श्याम सिंह राजपुरोहित, निदेशक राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान(दैनिक भास्कर,जोधपुर,24.6.11)

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