मुख्य समाचारः

सम्पर्कःeduployment@gmail.com

25 जून 2011

डीयूःदाखिलों में दस्तावेज के नियम बने पहेली

डीयू में जारी दाखिले की दौड़ में कॉलेजों की ओर से जरूरी दस्तावेजों को लेकर अपनाए जा रहे नियम अपने आप में पहेली बने हुए हैं। किसी कॉलेज की स्थिति यह है कि यहां बिना माइग्रेशन सर्टिफिकेट के दाखिला सम्भव नहीं है तो कहीं दस्तावेज दिखाने भर से दाखिला सुनिश्चित हो जा रहा है।

आलम यह है कि दाखिले की दौड़ में जहां छात्र सीट सुरक्षित करने में जुटे हैं, वहीं इन कॉलेजों को आखिर तक पता नहीं होगा कि उनके यहां दाखिला लेने वाला छात्र रहेगा भी या फिर छोड़ जाएगा।

श्री अरविदो कॉलेज ऐसे कॉलेजों में शामिल है, जहां दाखिले के लिए पहुंच रहे छात्रों के दस्तावेजों की जांच कर उनकी स्वयं सत्यापित फोटोकॉपी जमा की जा रही है और मूल दस्तावेज लौटा दिए जा रहे हैं।

ऐसे में जब मूल दस्तावेज वापस लेकर लौट रहे छात्रों के कहीं ओर दाखिला लेने की सम्भावना के विषय में कॉलेज ग्रीवांस कमेटी की सदस्य डॉ. अपराजिता चौहान से पूछा गया तो उनका कहना था कि ऐसी सूरत में हमें पता नहीं चलेगा कि छात्र ने कॉलेज में नए सत्र में पढ़ेगा या नहीं।

उन्होंने कहा कि यदि मूल दस्तावेज जमा कर लेते हैं तो ऐसा करने पर जब भी छात्र कटऑफ में राहत मिलने पर किसी अन्य कॉलेज का रुख करेगा तो वह हमें सूचित करेगा कि वह दाखिला रद्द कराना चाहता है और इस तरह खाली होने वाली सीट को समय रहते भर पाना मुमकिन होगा।

कुछ ऐसा ही कहना सत्यवती कॉलेज की ग्रीवांस कमेटी के सदस्य राजेन्द्र राठौर का भी है, लेकिन जब उनसे पूछा गया कि दाखिला प्रक्रिया खत्म होने के बाद यदि पता चला कि उनके यहां से छात्रों ने कहीं ओर दाखिला लेने के चलते सीट खाली की है तो उनका जवाब था कि इस तरह की परेशानी से निपटने के लिए हम पहले ही हर पाठ्यक्रम मंे 10 से 15 दाखिले अतिरिक्त कर लेते हैं, ताकि एकाएक सीटें खाली होने पर निर्धारित कोटा पूरा करने में परेशानी न आए।


दस्तावेजों के मोर्च पर राहत देने वाले अन्य कॉलेजों में लक्ष्मीबाई कॉलेज का नाम भी शामिल है। हालांकि, यहां दाखिले के दौरान सभी दस्तावेजों की फोटोकॉपी नहीं ली जा रही है। कॉलेज ग्रीवांस कमेटी के सदस्य रविन्द्र कुमार से जब इस विषय में पूछा गया तो उनका कहना था कि कॉलेज को बिना बताए कहीं ओर दाखिला लेने वाले छात्राओं से निपटने के लिए ही हम प्रोविजनल व माइग्रेशन सर्टिफिकेट के मूल दस्तावेज जमा कर रहे हैं। 

यह दो ऐसे दस्तावेज हैं, जिनके बिना विश्वविद्यालय में कहीं दाखिला सम्भव नहीं है और ऐसे में जब छात्रा को कहीं ओर दाखिला चाहिए होगा तो उसे कॉलेज लौटकर बताना होगा। जबकि, सख्ती की बात करें तो डीयू के रामजस कॉलेज में माइग्रेशन सटिर्फिकेट को लेकर प्रशासन इस कदर सख्त है कि इसके न होने पर अंडरटेकिंग देने से भी काम नहीं चल रहा है। साफ है कि दास्तावेजों के मोर्च पर कॉलेजों की ओर से कहीं सहूलियत तो कही सख्ती जारी है। 

आला लोग कर रहे हैं सिफारिश! 

कटऑफ में जगह न होने के बावजूद अपने बच्चों, परिचितों व खास लोगों को दाखिला देने के लिए सिफारिश करने वालों से इन दिनों डीयू व अन्य कई कॉलेजों के प्रिंसिपल रोजाना रू बरू हो रहे हैं। कोई नियमों का हवाला देकर फोन पर सिफारिशों को टरका रहा है तो कोई कुलपति से कहलवाने की बात कर पल्ला झाड़ रहा है। 

बताया जाता है कि सिफारिशी लोगों में मंत्री से लेकर टॉप अधिकारी तक शामिल हैं। इस बाबत आईपी कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ.बाबली मोइत्रा से बात की गई तो उनका कहना था कि यह तो रूटीन प्रोसेस है। दाखिले के दौरान ऐसे फोन व ऐसे लोगों की कॉलेज में मौजूदगी को लेकर वह पहले से ही तैयार रहती हैं। क्योंकि नियमों से आगे वह किसी की कोई मदद नहीं कर सकती हैं। 

वह सिफारिश लगाने वालों से साफ कह देती हैं कि वह मामले में कुछ नहीं कर सकती हैं। दयाल सिंह कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ.आईएस बक्शी से जब इस बाबत पूछा गया तो उनका कहना था कि दाखिलों के दौरान हर साल इस तरह के फोन आते हैं। 

इस बार भी ऐसी कई महत्वपूर्ण कॉल आईं, लेकिन नियमों में साफ है कि कटऑफ हो या फिर दाखिले से जुड़ी अन्य अनिवार्यता, किसी भी छात्र को कॉलेज राहत नहीं दे सकता है। इसलिए हम भी सिफारिश करने वालों को विनम्रता से टरका देते हैं। डीन छात्र कल्याण भी इस तरह के फोन व लोगों की ऑफिस में मौजूदगी से अछूते नहीं हैं। 

डीन छात्र कल्याण प्रो. जेएम खुराना कहते हैं कि अक्सर उनके दफ्तर में ऐसे लोग पहुंचते हैं, जो खुद को राजनेता का करीबी बताकर राहत चाहते हैं, लेकिन हम साफ कह देते हैं कि इस तरह का दाखिला करना हमारे बस में नहीं है। आप नम्बर आने का इंतजार करें(दैनिक भास्कर,दिल्ली,25.6.11)।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।