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25 जून 2011

कटिहार व किशनगंज के निजी मेडिकल कॉलेजों ने कहा,सरकारी कोटे से नामांकन को बाध्य नहीं

कटिहार व किशनगंज के निजी मेडिकल कॉलेजों ने पटना उच्च न्यायालय से कहा कि वे सरकारी कोटे से छात्रों का नामांकन करने के लिए वाध्य नहीं हैं। ये अल्पसंख्यक कोटे के शिक्षण संस्थान हैं और सरकार उन्हें कोई अनुदान भी नहीं देती है। न्यायालय ने राज्य सरकार से इस मुद्दे पर जवाब देने को कहा है। न्यायमूर्ति एके त्रिपाठी ने इस मामले की सुनवाई 27 जून के लिए स्थगित कर दी है। न्यायालय ने इससे पहले कटिहार मेडिकल कॉलेज व किशनगंज के माता गुजरी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज के प्रबंधन से कहा था कि वे फिलहाल याचिकाकर्ताओं को पीजी का क्लास करने दें। साथ ही मेडिकल कॉलेजों से जवाब तलब किया था। उसने पूछा था कि कौन-कौन से विषयों में प्रबंधन कोटे व सरकार के कोटे से कितनी सीटें भरी गयीं हैं। न्यायालय में याचिका दाखिल कर 20 छात्रों ने कहा है कि उन्हें बिहार स्टेट इंट्रेंस इग्जामिनेशन बोर्ड ने इन कालेजों में नामांकर करा लेने को कहा है लेकिन कॉलेज प्रबंधन उनका नामांकन नहीं कर रहा है। कॉलेज प्रबंधन ने अपने कोटे से छात्रों का नामांकन कर लिया है जबकि सरकारी कोटे से छात्रों को नामांकन अनिवार्य है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के वकील कुमार ब्रजनंदन ने कहा था कि कटिहार मेडिकल कॉलेज को पीजी के 38 सीटों पर नामांकन करने का अधिकार दिया गया था, लेकिन उसने 40 छात्रों को नामांकित कर लिया है। साथ ही उसने यह भी नहीं बताया है कि नामांकन किस कोटे से किया गया है। छात्रों का कहना है कि इंट्रेंस बोर्ड ने अपने विज्ञापन में छह सीटें खाली होने की बात कही है। जव वे लोग मेडिकल कॉलेज गये तो उन्हें आज-कल कर टाला जाता रहा। छात्रों के अनुसार, सरकारी कोटे से 50 फीसदी छात्रों का नामांकन अनिवार्य है। प्रधान सचिव से जवाब तलब पटना (एसएनबी)। चयन के बावजूद सिपाही के पद पर नियुक्ति नहीं करने के मामले में पटना उच्च न्यायालय ने गृह विभाग के प्रधान सचिव से जवाब तलब किया है। न्यायमूर्ति पीसी वर्मा व न्यायमूर्ति एके त्रिवेदी की पीठ ने उनसे इस मुद्दे पर जवाब देने को कहते हुए सुनवाई 27 जून के लिए स्थगित कर दी है। न्यायालय ने सरकार से यह भी कहा है कि वह याचिकाकर्ता के लिए पद आरक्षित रखे और चयन संबंधी रिकार्ड भी पेश करे। प्रिंस कुमार ने याचिका दाखिल कर कहा है कि सरकार ने उसे पत्र भेजकर सिपाही के पद पर चयन कर लेने की बात कही थी और सभी सार्टिफिकेट पेश करने को कहा था। उसने अपना सभी सार्टिफिकेट जमा कर दिया था। उसके बाद भी न तो उसका योगदान लिया गया और न ही सर्टिफिकेट लौटाया गया। जब भी उसने पूछताछ की तो उसे आजकल का झांसा दिया जाता रहा। आरोपित को जमानत नहीं पटना (एसएनबी)। फर्जी जाति प्रमाण पत्र पर नौकरी पाने के आरोपी भारतीय खाद्य निगम के सहायक महाप्रबंधक मनोज कुमार को अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया। वे 4 अप्रैल से न्यायिक हिरासत में हैं। पटना व्यवहार न्यायालय के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश बीके जैन ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी। मनोज कुमार ने सारण समाहरणालय से 10 अक्टूबर 1983 को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र लिया था। वे इस प्रमाण पत्र के आधार पर भारतीय खाद्य निगम में सहायक महाप्रबंधक के पद पर बहाल हुए थे। उनकी पदस्थापना पटना में हुई थी। वर्तमान में वे रांची में पदस्थापित थे। जांच के बाद उनका जाति प्रमाण पत्र फर्जी पाया गया था(राष्ट्रीय सहारा,पटना,25.6.11)।

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