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17 जून 2011

मैथिली व संस्कृत दोनों का विकास जरूरी

मिथिला और संस्कृत दोनों का विकास आवश्यक है। आज की मिथिला पं0 गंगेश उपाध्यायकालीन मिथिला तो नहीं है, लेकिन मिथिला और संस्कृत दोनों को पुनर्जीवित किया जा सकता है। इसके विकास मं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सहयोग भी सराहनीय है।उक्त बातें मिथिला संस्कृत स्तानकोतर अध्ययन एवं शोध संस्थान दरभंगा की 61वीं जयन्ती समारोह का उद्घाटन करने के बाद अपने सम्बोधन में बिहार विधान परिशद् के सभापति पं0 ताराकान्त झा ने कही। 16 जून 1951 में देश के प्रथम राश्ट्रपति द्वारा स्थापित इस पुराने संस्था के समुचित विकास नहीं होने पर चिन्ता प्रकट करते हुए पं0 झा ने कहा कि मिथिला ने बिहार को कई मुख्यमंत्री दिया, लेकिन किसी ने इसके विकास की ओर ध्यान नहीं दिया। मिथिला आपकी भूमि है तो संस्कृत आपकी भाशा। इस संस्थान के विकास के लिए यहां के विद्वानों के द्वारा लेखों, विचारों एवं चिन्तनों को जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है। इस अवसर पर पं0 गंगेश उपाध्याय लिखित एवं सुरेर झा द्वारा अनुवादित पुस्तक ’’मिथिला में नव्य न्याय का इतिहास’’ डॉ0 शशिनाथ द्वारा सम्पादित ’’कामेरप्रतापपोद्यम’’ तथा ’’अमरकोश’’ और डॉ0 त्रिलोकनाथ द्वारा संकलित एवं संपादित पुस्तक ’’रसिक जीवनम्’’ सहित संस्थान के निदेशक डॉ0 देवनारायण यादव द्वारा लिखित वाल्मीकि रामायण में गृहस्थ जीवन पुस्तकों को लोकार्पण किया गया। जिलाधिकारी आर लक्ष्मणन ने कहा कि संस्कृत के उत्थान के लिए हमलोगों का कर्तव्य बनता है कि इस संस्थान के उत्थान के लिए आगे आये और यहां शोध एवं अध्ययन का माहौल बनाया जाय। अपने सम्बोधन में कासिदसंवि के कुलपति डॉ0 उमेश शर्मा ने कहा कि संस्थान को जनोपयोगी बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने संस्थान में शेश बचे पाण्डुलिपियों को संरक्षण एवं संवर्धन देने की आवश्यकता पर बल दिया। इस अवसर पर उपस्थित दरभंगा प्रक्षेत्र के आईजी आर के मिश्रा ने संस्कृति के विकास के लिए नागरिकों की जागरूकता पर बल देते हुए इस संस्थान को शहर के मध्य में स्थापित करने की बात कही। इस अवसर पर विधान पार्शद् डॉ0 बिनोद चौधरी ने संस्थान के विकास में हर तरह के सहयोग का आासन दिया। शोध संस्थान के वरीय पीडीएफ डॉ0 राम प्रवेश पासवान ने भारतीय दर्शन में मिथिला के योगदान पर विस्तार से चर्चा की(राष्ट्रीय सहारा,पटना,17.6.11)।

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