' अगर कट ऑफ के इस सिस्टम को बदलना है तो फिर नैशनल लेवल पर टेस्ट कंडक्ट होना चाहिए और इंटरडिसिपिलनरी सब्जेक्ट का कॉन्सेप्ट लागू ह-'डॉ. पी. सी. जैन,प्रिंसिपल, एसआरसीसी
100 पर्सेंट कट ऑफ का क्या आधार है ?
एसआरसीसी में पिछले 20 सालों से कट ऑफ तैयार करने का फॉर्म्युला है और उसी को इस साल फॉलो किया गया है। जिन स्टूडेंट्स ने 12वीं में अकाउंट्स, बिजनेस स्टडीज, मैथ्स व इकनॉमिक्स पढ़ी होगी, उनको 96 पर्सेट पंर एडमिशन मिलेगा और जिन्होंने इनमें से किसी भी सब्जेक्ट को नहीं पढ़ा होगा, उन्हें 100 पर्सेंट पर एडमिशन मिलेगा। पिछले साल बीकॉम ऑनर्स की पहली लिस्ट 95.25 से 98.75 थी। कॉलेज में सीटों की संख्या निश्चित होती है और उसी हिसाब से कट ऑफ तय होती है।
कट ऑफ बढ़ने की वजह क्या है?
सीबीएसई के रिजल्ट में टॉपर्स बढ़े हैं तो कॉलेज की कट ऑफ भी बढ़ानी पड़ी है। एजुकेशन सिस्टम में स्पेशलाइजेशन का कॉन्सेप्ट है। 11वीं क्लास में ही स्टूडेंट्स साइंस, कॉमर्स या आर्ट स्ट्रीम में से कोई एक चुन लेता है और यह स्पेशलाइजेशन पीजी लेवल, पीएचडी तक जारी रहती है। कॉमर्स का स्टूडेंट इंजीनियरिंग या मेडिकल की फील्ड में नहीं जा सकता और अगर उसे कॉमर्स कोसेर्ज में भी वेटेज नहीं दी जाएगी, तो वह कहां जाएगा।
इसी को ध्यान में रखते हुए कॉमर्स स्टूडेंट्स को बीकॉम ऑनर्स में 96 पर्सेंट पर एडमिशन देने का फैसला किया गया है। अगर कट ऑफ के इस सिस्टम को बदलना है तो फिर नैशनल लेवल पर टेस्ट कंडक्ट होना चाहिए और इंटरडिसिपिलनरी सब्जेक्ट का कॉन्सेप्ट लागू हो, ताकि स्टूडेंट्स जिस सब्जेक्ट को पढ़ना चाहे, वह पढ़ ले।
मौजूदा सिस्टम में इस तरह की समस्याएं सामने आती रहेंगी। अगर किसी कोर्स में स्टूडेंट्स को अकाउंट पढ़ना है तो कॉलेज में एडमिशन के समय यह देखा जाता है कि अकाउंट सब्जेक्ट के साथ 12वीं करने वाले स्टूडेंट को एडमिशन में वेटेज दी जाए।
अगली कट ऑफ से क्या उम्मीद रखें?
स्टूडेंट्स को निराश नहीं होना चाहिए। जहां तक एसआरसीसी कॉलेज की बात है तो सेकंड कट ऑफ लिस्ट अगर आती है तो निश्चित तौर पर कट ऑफ डाउन होगी। र्फस्ट कट ऑफ लिस्ट के एडमिशन पर काफी कुछ निर्भर करेगा। अगर एडमिशन कम होते हैं तो कट ऑफ भी उसी हिसाब से कम होगी।
अगले साल क्या होगा?
केंद सरकार एजुकेशन की फील्ड में सुधारों पर जोर दे रही है और हो सकता है कि अगले साल एडमिशन का सिस्टम ही बदल जाए। एजुकेशन सिस्टम में बड़े बदलावों की जरूरत है। जब तक ये बदलाव नहीं होंगे तब तक कट ऑफ की समस्या आती रहेगी(नवभारत टाइम्स,दिल्ली,16.6.11)।
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