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29 जुलाई 2011

चंडीगढ़ः240 कर्मचारियों का अता-पता नहीं,7 साल तक पगार खाते रहे अफसर

15 साल दो महीने बीतने के बाद भी प्रशासन नगर निगम को न तो 240 डेलीवेजेज कर्मचारी भेज सका, न ही उनकी डिटेल रिपोर्ट। यह कर्मचारी प्रशासन की ओर से 1996 में नगर निगम को ट्रांसफर किए गए थे।

प्रशासन के लिए इन कर्मचारियों को भेजना और रिपोर्ट देना नामुमकिन है, क्योंकि ये 240 कर्मचारी सिर्फ कागजों में थे, हकीकत में नहीं। करीब सात- साल तक प्रशासन के ही अधिकारी-कर्मचारी इन कर्मचारियों के नाम पर रोजाना की पगार अपनी जेब में भरते रहे। एक मोटे अनुमान के मुताबिक सात साल में यह रकम 7.05 करोड़ रुपये बनती है।

1209 किए थे ट्रांसफर, 240 का पता नहीं

प्रशासन ने पहली जून 1996 को 1209 डेलीवेजेज कर्मचारियों की अधिसूचना जारी करके नगर निगम में ट्रांसफर किया था। इनमें से 960 कर्मचारियों (रोड, हॉर्टिकल्चर, इलेक्ट्रिकल और पब्लिक हेल्थ विंग) ने ट्रांसफर ऑर्डर मिलने के एक—दो दिन में निगम में जॉइन कर लिया। बाकी कर्मचारी कागजों में ही ट्रांसफर दिखाए जाते रहे।

एक साल बाद निगम ने प्रशासन को लेटर लिखकर 249 कर्मचारियों के जॉइन न करने की वजह पूछी। प्रशासन ने कोई जवाब नहीं दिया। निगम के चीफ इंजीनियर पूरन जीत सिंह ने 1998 में प्रशासन को लेटर लिखकर 249 कर्मचारियों को भेजने का मामला उठाया। इसके बाद भी न तो कर्मचारी आए, न ही प्रशासन की ओर से कोई जवाब।


निगम के चीफ इंजीनियर वीके भारद्वाज ने 2002 में प्रशासन को लेटर लिखकर फिर मामला उठाया। इस पर प्रशासन के सुपरिंटेंडिंग इंजीनियर पब्लिक हेल्थ ने जवाब दिया कि 249 में से 9 कर्मचारियों की तो ट्रांसफर ऑर्डर से पहले ही मौत हो गई थी, बाकी 240 का कोई हिसाब नहीं है। इनमें से एक भी कर्मचारी प्रशासन के किसी भी विभाग में तैनात नहीं है। इसके बाद नगर निगम ने भी इस मसले पर चुप्पी साध ली।
प्रशासन में जेई ही करता था कर्मचारियों की भर्ती 

प्रशासन के रोड, हॉर्टिकल्चर, इलेक्ट्रिकल और पब्लिक हेल्थ विंग में वर्कलोड के हिसाब से डेलीवेज कर्मचारियों की भर्ती जेई करता था। उनके नाम मस्टररोल पर चढ़ाकर हाजिरी लगती थी। इसके आधार पर ही महीने की तनख्वाह बनती थी। कर्मचारियों की संख्या बढ़ते देख प्रशासन ने दिसंबर 1991 में डेलीवेज भर्ती पर रोक लगा दी थी। 

ऐसे हुआ खुलासा

पिछले दिनों प्रशासन के इंजीनियरिंग विभाग का ऑडिट करने वाली टीम को 240 डेलीवेज कर्मचारियों का रिकॉर्ड हाथ लगा। इन कर्मचारियों ने न तो निगम में जॉइन किया था, न ही प्रशासन में तैनात हैं। टीम ने निगम में 1209 कर्मचारियों को ट्रांसफर करने की अधिसूचना पब्लिक हेल्थ विभाग से मांगी है। निगम की ओर से प्रशासन को भेजे गए लेटर भी मिले हैं।

किसकी जेब में गए 7.05 करोड़

एक अनुमान के मुताबिक 1996 के दौरान एक डेलीवेज कर्मचारी को महीने में करीब 3500 रुपये तनख्वाह मिलती थी। ऐसे में 240 कर्मचारियों की एक महीने की तनख्वाह 8.40 लाख बनती है। सात साल तक प्रशासन में इन कर्मचारियों को काम करते दिखाया गया है। सात साल में इनकी तनख्वाह 7 करोड़ 5 लाख 60 हजार रुपये बनती है।

प्रशासन को देना होगा जवाब


नगर निगम में ट्रांसफर हुए 240 डेलीवेज कर्मचारी जब हकीकत में थे ही नहीं, तो ट्रांसफर से पहले सात साल तक उनकी तनख्वाह किसके खाते में जाती रही? 
कौन से जेई ने इन्हें भर्ती किया? कौन से एसडीओ और एक्सईएन की भूमिका रही है?

कार्रवाई न करने की वजह

इस घोटाले का पूरा रिकॉर्ड तो प्रशासन के पास है, लेकिन वह उन जेई के खिलाफ कार्रवाई नहीं करना चाहता, जिनमें से ज्यादातर प्रमोट होकर एसडीओ, एक्सईएन बन गए हैं या रिटायर हो गए हैं। 

निगम में ट्रांसफर होने वाले 240 डेलीवेज कर्मचारी अलग- अलग विभाग के रहे हैं। उनके अस्तित्व में ही न होने और संबंधित अफसरों पर कार्रवाई के बारे में कुछ कहना मुश्किल है। 

एससी शर्मा, सुपरिंटेंडिंग इंजीनियर, पब्लिक हेल्थ, प्रशासन(दैनिक भास्कर,चंडीगढ़,29.7.11)

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