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03 जुलाई 2011

सस्ती, बेहतर और मुक्त शिक्षा का विकल्प : इग्नू

भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले राष्ट्र में मात्र स्कूलों, कॉलेजों या विश्वविद्यालयों की स्थापना करके नियमित शिक्षा द्वारा समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षित नहीं किया जा सकता। इसी के परिणामस्वरूप दूरस्थ एवं मुक्त शिक्षा का उद्भव हुआ। दूरवर्ती शिक्षा का विकास उन विद्यार्थियों तथा व्यक्तियों के लिए किया गया है जो शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक तो हैं, किन्तु व्यवसायों में लगे होने या अन्य कारणों से शिक्षण संस्थान में उपस्थित नहीं हो पाते हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) की स्थापना की गई। भारत में इग्नू अपने 61 क्षेत्रीय केन्द्रों व 2800 अध्ययन केन्द्रों के जरिए लगभग 3500 विभिन्न रोजगारपरक एवं शैक्षिक कार्यक्रम संचालित कर रहा है। 34 विदेशी राष्ट्रों में भी इग्नू के 52 अध्ययन केन्द्र हैं।

इग्नू द्वारा संचालित कई कार्यक्रम हैं, जिनमें स्नातकोत्तर, स्नातक, पीजी डिप्लोमा, डिप्लोमा व सर्टिफिकेट कार्यक्रम शामिल हैं। विश्वविद्यालय द्वारा चलाये जा रहे सभी शैक्षिक कार्यक्रम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और देश की अन्य सभी संवैधानिक परिषदों, भारतीय विश्वविद्यालय संघ (एआईयू) तथा इसी प्रकार के अन्य अन्तरराष्ट्रीय निकायों से मान्यता प्राप्त हैं।


यह विश्वविद्यालय हमेशा से अपने कोर्सेज तथा अध्ययन के तरीकों के लिये प्रसिद्ध रहा है। दूर शिक्षा प्रणाली की शुरुआत और उसकी बढ़ती लोकप्रियता में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। आज इसी उद्देश्य से इग्नू का चैनल ज्ञान दर्शन पूरे भारत में ज्ञान फैलाने की कोशिश में लगा हुआ है। इग्नू एक मुक्त विश्वविद्यालय है। ऐसे में उसके जो छात्र क्लास में उपस्थित नहीं हो पाते, वे टीवी के माध्यम से अपने कोर्स से जुड़ी बातों को जान सकते हैं। ज्ञान दर्शन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों से हर कोई बिना किसी खर्चे के लाभ उठा सकता है। इसी तरह पूरे देश में इग्नू के एफएम ज्ञानवाणी चैनल चल रहे हैं।

इग्नू की ऑन डिमांड एग्जामिनेशन प्रणाली ने परम्परागत रूप से चली आ रही परीक्षा की नियमित प्रणाली को ही समाप्त कर दिया है। इसके तहत छात्र अपनी पसंद के अनुसार परीक्षा की तिथि निर्धारित कर सकते हैं। यहां होनेवाली ऑनलाइन एडमिशन के कारण छात्रों को अब घंटों लाइन में लगने की आवश्यकता भी नहीं होती। छात्र दुनिया में कहीं भी रहें, वे वहीं से बैठे-बैठे दाखिला ले सकते हैं(भानु प्रताप सिंह,अमर उजाला,29.6.11)।

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