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16 जुलाई 2011

स्कूल दाखिलों में नहीं बढ़ेगा सांसदों का कोटा

स्कूलों में दाखिलों की दिक्कत से जूझ रहे माता-पिता को उनके सांसद भी ज्यादा राहत नहीं दिला पाएंगे। कानून मंत्रालय ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उस प्रस्ताव को हरी झंडी देने से इंकार कर दिया है जिसमें केंद्रीय विद्यालयों के दाखिलों में सांसदों का कोटा दो से बढ़ाकर पांच करने की बात कही गई थी। सूत्रों के मुताबिक मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल की पहल पर उनके मंत्रालय ने केंद्रीय विद्यालयों के दाखिले में सांसदों के कोटे को बढ़ाने का प्रस्ताव दिया था। मंत्रालय ने कानूनी बाध्यताओं के तहत प्रस्ताव पर कानून मंत्रालय की मंजूरी मांगी थी। बताते हैं कि कानून मंत्रालय ने सुप्रीमकोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए विवेकाधीन कोटे के मामले को जन नीति के दायरे में आने की बात कही है। साथ ही विवेकाधीन कोटे के मनमाने उपयोग की गुंजाइश से बचने की भी पैरवी की। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने कोटे को बढ़ाने के पीछे केंद्रीय विद्यालयों की संख्या 871 से बढ़कर 1085 हो जाने का तर्क दिया था। कानून मंत्रालय ने उसे यह कहकर खारिज कर दिया है कि जिस लिहाज से सांसदों के कोटे की सीटें बढ़ाने की मांग की गई है, उस हिसाब से केंद्रीय विद्यालयों की संख्या नहीं बढ़ी है। वैसे भी यह मामला कानूनी नहीं, बल्कि प्रशासनिक प्रकृति का है। लिहाजा मंत्रालय को इस बारे में अपने स्तर पर ही फैसला लेना चाहिए। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का कहना था कि मानव संसाधन विकास मंत्री के कोटे की हर साल 1200 सीटों पर दाखिले का प्रावधान 2010 से ही खत्म किया जा चुका है। सांसदों के कोटे को दो से पांच करने पर हर शैक्षिक सत्र में सिर्फ 2400 अतिरिक्त दाखिले ही करने होंगे। सांसद अपने कोटे के हर साल पांच दाखिलों में से तीन को अपने संसदीय क्षेत्र में और दो को अपने क्षेत्र के ही लोगों के बच्चों के लिए दिल्ली में उपयोग कर सकेंगे। राज्यसभा सांसद अपने प्रदेश व दिल्ली में अपने कोटे का इस्तेमाल कर सकते थे। दूसरी बात यह कि इससे शिक्षा का अधिकार कानून के तहत वर्ग विशेष के लिए 25 प्रतिशत आरक्षित सीटों पर भी कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा। जिन सांसदों के क्षेत्र में केंद्रीय विद्यालय नहीं हैं, वे अपने बगल के संसदीय क्षेत्र में कोटे का इस्तेमाल कर सकते थे(दैनिक जागरण,दिल्ली,16.7.11)।

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