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23 जुलाई 2011

यूपीःमदरसों को आरटीई से बाहर रखने के पक्ष में है पर्सनल लॉ बोर्ड

मदरसों को अनिवार्य शिक्षा अधिनियम (आरटीई) से मुक्त किये जाने की मांग को लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तेवर और तल्ख हो गए हैं। बोर्ड ने चेतावनी दी है कि यदि संसद के मानसून सत्र में इसे बारे में निर्णय न लिया गया तो रमजान के बाद देशव्यापी जनमत तैयार कर अभियान चलाया जाएगा। बोर्ड ने रविवार को लखनऊ के मुमताज कॉलेज में सभा बुलाई है, जिसमें अल्पसंख्यकों के नुमाइंदों को भी बुलाया गया है। पत्रकारों से बातचीत में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य जफरयाब जीलानी ने कहा कि अनिवार्य शिक्षा अधिनियम से मदरसे व कक्षा एक से आठ तक की अन्य अल्पसंख्यक संस्थाएं धार्मिक शिक्षा और मातृभाषा (उर्दू) की शिक्षा देने के अधिकार से वंचित हो सकती हैं। रविवार को बुलाई गई सभा में लोगों को अधिनियम से धार्मिक शिक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बताया जाएगा। इस बाबत केंद्र सरकार का क्या रवैया है, इसके बारे में भी जानकारी दी जाएगी। इसके अलावा डायरेक्ट टैक्स कोड बिल के माध्यम से धार्मिक एवं चैरिटेबिल संस्थाओं की आय पर टैक्स लगाने के प्रावधान का भी विरोध किया जाएगा। जीलानी ने कहा कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम में यह कहा गया है कि मदरसे, मकतब और स्कूल अगर तीन साल में नए कानून द्वारा बनाए गए नियमों को पूरा नहीं करते, तो उन्हें एक लाख रुपये जुर्माना देना होगा। इस कानून की धारा 21 के अंतर्गत केंद्र सरकार की एकेडेमिक अथॉरिटी अध्यापकों की शैक्षिक योग्यता का निर्धारण करेगी। अर्थात अल्पसंख्यकों से धार्मिक शिक्षा के लिए योग्यता निर्धारण का अधिकार भी छिन जाएगा। इस प्रकार धार्मिक शिक्षा देना लगभग असंभव हो जाएगा(दैनिक जागरण,लखनऊ,23.7.11)।

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