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04 जुलाई 2011

उत्तराखंडःपीटीए शिक्षकों को नहीं मिल रहा मानदेय

अशासकीय कालेजों में कार्यरत पीटीए अध्यापकों को मानदेय दिए जाने की मुख्यमंत्री की घोषणा का क्रियान्वयन छह माह बाद भी नही हो पाया है। वहीं, शिक्षा विभाग ने इन शिक्षकों को मनमाने ढंग से मानदेय दिए जाने की बात कहकर राज्य के 398 शिक्षकों के भविष्य पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है। राज्य में अशासकीय कालेजों में लंबे समय से अध्यापकों की नियुक्ति न हो पाने से पहले ही पढ़ाई रामभरोसे चल रही है। पठन-पाठन का महत्वपूर्ण दायित्व पीटीए अध्यापकों के जिम्मे है। परंतु कठोर परिश्रम के एवज में इन्हें महज 1500 से 2000 रुपये ही दिए जाते हैं जो महंगाई के दौर में एक आम मजदूर की मजदूरी से भी कम है। इनके पास जहां पूर्ण शैक्षिक अहर्ताएं हैं, वहीं रिक्त पड़े पदों के सापेक्ष वर्षो से कार्यरत हैं। मामले में संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने 18 दिसम्बर 2010 को टिहरी जनपद के विस क्षेत्र नरेंद्रनगर में मानदेय से वंचित पीटीए अध्यापकों को मानदेय की श्रेणी में सम्मिलित करने की घोषणा की थी जो मुख्यमंत्री कार्यालय अनुभाग 4, घोषणा अनुभाग की 209वीं घोषणा है। छह माह की अवधि बीत जाने के बाद भी ये शिक्षक मानदेय के लिए शासनादेश की बाट जोह रहे हैं। वहीं, प्रशासनिक अधिकारियों ने इस मामले में नया अड़ंगा लगा रखा है। सूचना अधिकार के तहत शिक्षा सचिव से मांगी गई जानकारी से वास्तुस्थिति का पता चला कि अनुसचिव कवींद्र सिंह के हस्ताक्षरयुक्त आरटीआई जानकारी बिंदु-तीन में इन पीटीए अध्यापकों को प्रबंध तंत्र द्वारा मनमाने ढंग से मानदेय लगाये जाने का हवाला दिया गया है। ऐसे में जब शिक्षा विभाग इन अध्यापकों की व्याख्या संशयपूर्ण तरीके से कर रहा है तो मुख्यमंत्री की घोषणा का क्रियान्वयन खटाई में जाता दिखाई पड़ रहा है। अधिकारियों द्वारा मुख्यमंत्री की घोषणाओं को किस प्रकार तव्वजो दी जाती है। इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। बहरहाल, प्रदेश के 398 पीटीए शिक्षकों के भविष्य पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लग गया है जो कम मानदेय में ही काम करने के लिए विवश दिखाई पड़ रहे हैं(राष्ट्रीयसहारा,डोईवाला,4.7.11)।

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