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01 जुलाई 2011

दिल्ली विश्वविद्यालय में तमाम नियम ताक पर!

दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला प्रक्रिया हो या फिर कर्मचारियों का हक, इन सभी मोर्चो पर नियमों की अनदेखी जारी है। कहीं सालों से लागू नियमों की अनदेखी कर एमफिल मे ऐसे छात्रों को दाखिला दिया जा रहा है, जो इसके योग्य ही नहीं हैं तो कहीं कर्मचारियों की भविष्य निधि पर मिलने वाले ब्याज का पूरा हिस्सा कर्मचारियों को उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है।

छात्र व कर्मचारी हित से जुड़े इन दोनों ही मुद्दों को लेकर शुक्रवार को होने जा रही एग्जीक्यूटिव काउंसिल (ईसी) की बैठक में हंगामा होने जा रहा है। एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य डॉ. शिबा सी पांडा ने बताया कि फैकल्टी ऑफ सोशल साइंसेस के तहत आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ अफ्रीकन स्टडीज में विभाग प्रमुख को दरकिनार कर नए सत्र के लिए एमफिल में चार ऐसे दाखिले अंजाम दिए गए हैं, जो नियमों के तहत सहीं नहीं हैं।

उन्होंने बताया कि इन दाखिलों में बीते दो सत्रों से इंटरव्यू के लिए लागू प्रवेश परीक्षा में 55 प्रतिशत अंक की अनिवार्यता को दरकिनार कर न सिर्फ तीन छात्रों को 38, 38 व 49 अंक पाने के बावजूद इंटरव्यू के लिए बुलाया गया, बल्कि उन्हें दाखिला भी दे दिया गया।


डॉ. पांडा ने बताया कि चौथा मामला ऐसे छात्र का है जो डबल डिग्री मामले में पकड़ा गया है और उस पर आवश्यक कार्रवाई के बजाए प्रशासन ने उसे एमफिल में दाखिला दे दिया। डॉ. पांडा ने बताया कि मामला गम्भीर है और वह शून्यकाल के दौरान इस मुद्दे पर जरूरी कुलपति से जवाब तलब करेंगे। 

काउंसिल के अन्य सदस्य डॉ. राजीब रे भी शुक्रवार को होने जा रही बैठक में भविष्य निधि के मुद्दे पर डीयू प्रशासन को घेरने की तैयारी में जुटे हैं। उन्होंने बताया कि विभागों व स्कूल ऑफ ओपन लर्निग साहित डीयू के करीब 4 हजार 240 शिक्षकों को उनके पैसे पर उपयुक्त ब्याज मुहैया नहीं कराया जा रहा है। 

हर साल इनमें कई शिक्षक सेवानिवृत्त हो रहे हैं और लगातार यह खजाना बढ़ता जा रहा है। उन्होंने बताया कि मार्च 2008 में यह फंड छह करोड़ 85 लाख था जो मार्च 2010 में बढ़कर 12 करोड़ 40 लाख हो गया है। डॉ. रे की मांग है कि शिक्षकों व कर्मचारियों के हक का पैसा उन्हें समय रहते मिलना चाहिए, ताकि वे अपनी बेहतरी के लिए उसका इस्तेमाल कर सकें(दैनिक भास्कर,दिल्ली,1.7.11)।

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