राज्य के स्कूलों में दो साल से बंद पड़ी कंप्यूटर शिक्षा इस शैक्षणिक सत्र से फिर शुरू होगी। 1900 स्कूलों के तीन लाख से ज्यादा विद्यार्थी कंप्यूटर का ज्ञान प्राप्त करेंगे। सरकार इस पर 170 करोड़ खर्च करेगी। हालांकि ट्रेनिंग देने वाली संस्था या सरकार विद्यार्थियों को प्रशिक्षण संबंधी प्रमाण पत्र नहीं देगी।
दो साल बाद कंप्यूटर शिक्षा की प्रक्रिया नए सिरे से शुरू करने के बावजूद इसकी खामियों को दूर करने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। पिछली बार की तरह इस बार भी कंप्यूटर शिक्षा पाने वाले विद्यार्थियों को केवल प्रारंभिक ज्ञान ही दिया जाएगा।
नवंबर से शुरू होगा प्रशिक्षण
शिक्षा विभाग ने इसी सत्र से कंप्यूटर शिक्षा देने की तैयारी शुरू कर दी है। चार कंपनियों को चार जोन में बांटकर स्कूल सौंपे गए हैं। स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जाएगा।
इस वजह से तत्काल शिक्षा शुरू होने के आसार नहीं है। ऐसे संकेत हैं कि अक्टूबर-नवंबर में यानी शिक्षा सत्र के मध्य में ही राज्यभर के स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा शुरू हो सकेगी। गौरतलब है कि राज्य में कंप्यूटर शिक्षा का शटर पिछले दो साल से बंद है।
2008-09 में राज्य के चार जिलों रायपुर, बिलासपुर, कवर्धा और दुर्ग जिले में कंप्यूटर शिक्षा दी जा रही थी। उस दौरान कंप्यूटर शिक्षा में 60 करोड़ खर्च किए गए थे। इस साल स्कूलों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ सुविधाएं बढ़ाई गई हैं।
600 स्कूल छूटे
राज्य में तकरीबन 2500 हाई व हायर सेकेंडरी स्कूल हैं। इनमें से 1900 स्कूलों में यह शिक्षा शुरू की जा रही है। 600 ऐसे स्कूल छोड़े गए हैं, जहां स्कूल भवन शिक्षा विभाग का नहीं है। कुछ ऐसे भी स्थानों के स्कूल हैं, जिनमें बिजली की व्यवस्था संभव नहीं है।
करोड़ों का खर्च
पिछली बार कंप्यूटर का प्रशिक्षण देने के लिए अलग तरह की शर्तें थीं। प्रत्येक स्कूल को दो-दो कंप्यूटर शिक्षा विभाग ने मुहैया कराए थे। निजी कंपनी को केवल शिक्षक उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। यहां तक कि सॉफ्टवेयर तक शिक्षा विभाग ने तैयार करवाया था। इसमें बड़ा गोलमाल हुआ था।
जिन स्कूलों में बिजली नहीं थी वहां कंप्यूटर पैकिंग से नहीं निकाले गए। एक स्कूल में दो कंप्यूटर थे, इस बार इसकी संख्या दस है। योजना में बदलाव तो किया गया लेकिन सर्टिफिकेट के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई।
"हमारा उद्देश्य केवल बच्चों को कंप्यूटर का ज्ञान देना है। उन्हें प्रशिक्षित करने की कोई योजना नहीं है। गांव के बच्चे कंप्यूटर को देख भी नहीं पाते। उनके लिए यह योजना है।"
- केआर पिस्दा, शिक्षा संचालक(मोहम्मद निजाम,दैनिक भास्कर,रायपुर,9.7.11)
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