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12 जुलाई 2011

यूपीःकिताब के साथ कॉपियां खरीदने को मज़बूर कर रहे दुकानदार

यूपी बोर्ड से नौवीं और दसवीं की पढ़ाई कर रहे अभिषेक और अक्षय जैसे सैकड़ों छात्र किताबों के लिए भटक रहे हैं। साथ ही उनके अभिभावक भी सत्र शुरू होने के दस दिन बाद भी किताबें नहीं मिलने से परेशान है। बताया जा रहा है राजधानी के बाजारों में मांग के अनुरूप किताबें उपलब्ध नहीं है। हालांकि हकीकत इससे ठीक उलट है। सच तो यह है कि बाजार में किताबें तो हैं लेकिन कमीशन के चक्कर में बेचा नहीं जा रहा है। ऐसे में कुछ दुकानदारों ने किताबों के साथ स्टेशनरी खरीदने की अनिवार्यता तय कर रखी है, तो कई ने बिना रजिस्टर के किताबें बेचना ही बंद कर दिया। कुल मिलाकर बाजार में किताबें उपलब्ध होने के बावजूद बच्चे किताबें नहीं खरीद पा रहे हैं, क्योंकि 200 रुपये तक की किताबों का मूल्य स्टेशनरी सहित 600 से 700 रुपये जा पहुंचता है। सूत्रों का कहना है कि शासन ने यूपी बोर्ड की सभी किताबों का मूल्य निर्धारित कर रखा है। इनपर दुकानदारों का एक से दो प्रतिशत कमीशन तय है। पर और कमीशन के चक्कर में विक्रेता बच्चों को किताबों के साथ स्टेशनरी व दूसरी चीजों खरीदने पर दबाव डाल रहे हैं। यूपी बोर्ड नौवीं और दसवीं की सरकारी किताबों को छापने की जिम्मेदारी निजी पब्लिकेशन हाऊस को सौंपी हुई है। इलाहाबाद का राजीव प्रकाशन विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और गणित की किताबें छाप रहा है। मेरठ का नगीन पब्लिकेशन विज्ञान की। रवि ऑपरेट प्रकाशन और मुद्रण महल गणित, विवेक बुक डिपो और पुष्पराज प्रिंटिंग प्रेस हिन्दी, पाइनियर प्रिंर्ट्स प्रेस हिंदी और जनरल ऑफसेट प्रिंटिंग प्रेस संस्कृत की किताबें छाप रहे हैं। इन सबकी किताबों का मूल्य शासन द्वारा किया जाता है। कक्षा नौवीं की पांचों किताबें खरीदने में बच्चों को 185 से 200 रुपये तक का खर्च आता है। नौवीं और दसवीं कक्षा की किताबों का खर्च लगभग समान ही है। लेकिन पुस्तक विक्रेताओं के मनमाने रवैया के चलते यह खर्च 600 से 700 रुपये का आंकड़ा पार कर रहा है। नौवीं और दसवीं की एक-दो किताबें फुटकर बाजार में नहीं मिल रही है। इंदिरा नगर निवासी नौवीं कक्षा के छात्र आलोक कुमार बताते हैं कि भुतनाथ इलाके में एक-दो दुकानदारों को छोड़कर कोई भी एक-दो विषयों की किताबें नहीं दे पा रहा। वो बताते हैं कि गणित और विज्ञान की किताब खरीदने शहादतगंज स्थित एक बुक शॉप पर गए थे। दो किताबें देने से विक्रेता ने साफ इनकार कर दिया। उसने सभी किताबें खरीदने की शर्त रखी। एमडी शुक्ला इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य एचएन उपाध्याय कहते हैं कि किताबें मिल ही नहीं पा रही हैं। ऐसे में सत्र शुरू होने के बावजूद अभी तक पढ़ाई की शुरुआत नहीं हो पाई है। 

उधर,अमीनाबाद के छोटे व्यापारियों ने यूपी बोर्ड की किताबें बेचने से किनार कस लिया है। जानकार इसे किताबों पर कम लाभ प्रतिशत को जिम्मेदार मानते हैं। अमीनाबाद के ही एक कारोबारी कमल राजपूत बताते हैं कि बीते साल यूपी बोर्ड की किताबों की बिक्री पर नुकसान हुआ था। लाभ कमाना तो दूर लोगों के लिए लागत भी निकल पाना मुश्किल हो गया था। वहीं, एक और पुस्तक विक्रेता रवि त्रिपाठी ने बताया कि सरकारी किताबों पर कुल लाभ एक से दो प्रतिशत ही मिलता है, जिससे किताबों को लाने-ले जाने का खर्च ही पूरा कर पाना मुश्किल है। इसके चलते छोटे कारोबारियों ने यूपी बोर्ड की किताबों से तौबा कर ली है। वहीं, जो बेच रहे हैं उन्होंने किताबों पर छूट देना बंद कर दिया है(अमर उजाला,लखनऊ,12.7.11)।

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