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12 जुलाई 2011

बिलासपुर सेंट्रल यूनिवर्सिटीःकोर्स की मंजूरी लिए बिना ही ले ली परीक्षा

सेंट्रल यूनिवर्सिटी की लापरवाही करीब 70 स्टूडेंट्स के करियर पर भारी पड़ रही है। यूनिवर्सिटी ने एलएलबी के पांच वर्षीय इंटीग्रेटेड कोर्स के लिए प्रवेश परीक्षा तो ले ली, पर अब तक रिजल्ट घोषित नहीं किया। हफ्तेभर से चक्कर लगा रहे स्टूडेंट्स का प्रेशर बढ़ा, तो पता चला कि यह कोर्स शुरू करने के लिए अब तक मंजूरी ही नहीं मिली है। बार कौंसिल के निरीक्षण के बाद ही कोर्स शुरू किया जा सकता है, इसलिए इस साल इंटीग्रेटेड कोर्स के लिए एडमिशन नहीं हो सकेगा।

स्टूडेंट्स को नए कोर्सेस और बेहतर सुविधाएं देने के लिए गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट की गलती की वजह से करीब 70 स्टूडेंट्स अधर में लटक गए हैं। यूनिवर्सिटी ने नए सेशन से यूटीडी में बीए, बीएससी और बीकॉम एलएलबी का पांच वर्षीय इंटीग्रेटेड कोर्स शुरू करने का ऐलान किया था। अब तक यह कोर्स सिर्फ रायपुर में ही था, इसलिए इसे अच्छा रिस्पांस भी मिला। यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट ने इसे काफी प्रचारित किया।


15 जून को इसके लिए प्रवेश परीक्षा भी ले ली गई। 70 लगभग स्टूडेंट्स ने इस कोर्स के लिए फार्म जमा किया था। 62 स्टूडेंट परीक्षा में शामिल हुए। रिजल्ट के बाद मेरिट के आधार पर स्टूडेंट्स का एडमिशन इस कोर्स के लिए होना था। स्टूडेंट बेसब्री से रिजल्ट का इंतजार करने लगे। 5 जुलाई को यूनिवर्सिटी ने बाकी सभी विषयों के लिए ली गई प्रवेश परीक्षा का रिजल्ट घोषित कर दिया। एलएलबी के इंटीग्रेटेड कोर्स का रिजल्ट नहीं निकाला गया।
हफ्तेभर तक देते रहे धोखा

5 जुलाई को जब बाकी सभी विषयों का रिजल्ट घोषित हो गया, तब एलएलबी के इंटीग्रेटेड कोर्स की परीक्षा दिलाने वाले भी यूनिवर्सिटी पहुंचे। उन्हें बताया गया कि कॉपी चेक नहीं हो पाई है, इसलिए अभी रिजल्ट घोषित नहीं किया गया है। इसके बाद हफ्तेभर तक उन्हें रिजल्ट आज-कल में घोषित होने की बात कहते हुए चक्कर कटवाया गया। इस वजह से स्टूडेंट शहर से यूनिवर्सिटी का चक्कर लगाते-लगाते ही परेशान रहे।

सीट खाली होगी तभी देंगे एडमिशन

सेंट्रल यूनिवर्सिटी की लापरवाही ने करीब छह दर्जन स्टूडेंट्स के सामने मुसीबत खड़ी कर दी है। इसके बावजूद यूनिवर्सिटी प्रबंधन को उनके करियर की जरा भी फिक्र नहीं है। ज्यादातर कॉलेजों में एडमिशन की प्रक्रिया आखिरी चरण में है। कई कॉलेजों में सीट फुल भी हो गई है। जो स्टूडेंट इंटीग्रेटेड एलएलबी में एडमिशन के इंतजार में बैठे थे, उनका क्या होगा, इसका कोई जवाब यूनिवर्सिटी के पास नहीं है। 

यूनिवर्सिटी का कहना है कि अगर बाकी कोर्स में सीट खाली होगी, तो स्टूडेंट एचओडी से संपर्क कर उनमें एडमिशन ले सकते हैं। यानी प्रभावित हुए स्टूडेंट्स को राहत देने के लिए कोई विशेष छूट नहीं दी जा रही है।

अब पता चला कि कौंसिल की टीम नहीं आई?

जब स्टूडेंट्स का प्रेशर काफी बढ़ गया, तब सोमवार को यूनिवर्सिटी ने इस साल इंटीग्रेटेड कोर्स से हाथ खड़े कर दिए। यूनिवर्सिटी का कहना है कि 6 अगस्त 2010 को बार कौंसिल के निरीक्षण के लिए निर्धारित फीस एक लाख रुपए जमा कर दिए गए थे। अब तक कौंसिल ने निरीक्षण नहीं किया है। 

इस वजह से इस साल कोर्स शुरू कर पाना मुमकिन नहीं है। इस सत्र में वे लॉ के इंटीग्रेटेड कोर्स शुरू नहीं कर पाएंगे। सवाल यह उठता है कि कौंसिल के निरीक्षण नहीं करने की बात यूनिवर्सिटी को पहले ही पता थी, फिर प्रवेश परीक्षा लेकर स्टूडेंट्स के साथ धोखाधड़ी किस वजह से की गई। यूनिवर्सिटी के अफसर इस मसले पर कुछ भी कहने से बच रहे हैं।

यह था फायदा

एलएलबी का इंटीग्रेटेड कोर्स पांच साल का होता है। इसमें बीए, बीएससी या बीकॉम के नार्मल कोर्स के साथ लॉ की पढ़ाई भी जुड़ जाती है। आमतौर पर ग्रेजुएशन के बाद लॉ की डिग्री हासिल करने में कुल छह साल लग जाते हैं। इंटीग्रेटेड कोर्स के जरिए ग्रेजुएशन और लॉ दोनों की ही डिग्री पांच साल में मिल जाती है। इससे स्टूडेंट्स का एक साल बच जाता है। इस वजह से इस कोर्स को अच्छा रिस्पांस मिल रहा था(दैनिक भास्कर,बिलासपुर,12.7.11)।

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