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17 जुलाई 2011

इलाहाबाद विश्वविद्यालयःसमाजशास्त्र के पाठ्यक्रम को अब तक मंज़ूरी नहीं

बहुत समय पहले एक आर्ट फिल्म आई थी, वेटिंग फार द गोडो। तीन दोस्त रोज सुबह से शाम तक बैठकर गोडो का इंतजार करते थे और फिर निराश होकर यह कहते हुए चले जाते, कि गोडो आज भी नहीं आया। विश्वविद्यालय के एक विभाग की कहानी कमोबेश ऐसी ही है। जी हां हम बात कर रहे हैं समाजशास्त्र विभाग की। स्नातक की कक्षाएं यहां अब चलती नहीं और परास्नातक कोर्स को चलाने के लिए एकेडमिक काउंसिल की मंजूरी नहीं मिल पाई है। तीन लोगों की फैकल्टी ने सिलेबस तैयार कर लिया है। रीडिंग मैटीरियल तैयार करने का काम युद्ध स्तर पर जारी है। इस उम्मीद में कि हो सकता है एसी की बैठक हो, परास्नातक कोर्स को मंजूरी मिले तो कहीं छात्रों का अहित न हो जाए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग का इतिहास उतार चढ़ाव भरा रहा है। पूर्व कुलपति आरपी मिश्रा के समय में समाजशास्त्र कोर्स संचालित होता था। चार-पांच साल बाद इसे मानव विज्ञान के साथ जोड़कर सोशल एंथ्रोपोलॉजी की कक्षाएं संचालित होती रहीं। बाद में जब एंथ्रोपोलॉजी अलग विभाग हो गया तो समाजशास्त्र विभाग एक बार फिर अस्तित्व के संकट में फंस गया। जून 2010 में फैकल्टी गठित हुई। प्रो.ए.सत्यनारायणा विभागाध्यक्ष बने। उन्होंने जल्द कक्षाएं शुरू कराने का बहुत प्रयास किया पर असफल रहे। कोर्सको एकेडमिक काउंसिल की मंजूरी मिली नहीं और सत्र खाली चला गया। जनवरी में नए कुलपति प्रो. एके सिंह आए। विभागाध्यक्ष ने उन्हें भी वस्तु स्थिति से अवगत कराया। कुलपति ने यह कहते हुए आश्वस्त किया कि एकेडमिक काउंसिल की बैठक होगी तो फिर सम्यक माध्यम से कोर्स को मंजूरी दिलाकर परास्नातक कक्षाएं शुरू करा दी जाएंगी। सिलेबस तैयार करके बहुत पहले ही दिया जा चुका है कि जब भी बैठक हो, कोर्स को एपू्रवल मिल जाए। कारण जो भी हो पर बैठक हुई नहीं। अब तो पीजीएटी-2011 का परिणाम भी घोषित हो चुका है। जल्द ही एडमीशन भी शुरू हो जाएंगे पर समाजशास्त्र का क्या होगा यह किसी को नहीं मालूम। इस संबंध में विभागाध्यक्ष प्रो. ए. सत्यनारायणा कहते हैं कि इस अवधि में स्टडी मैटेरियल लगभग तैयार कर लिया गया है। इससे छात्रों का नुकसान नहीं होगा और अनुमति मिलते ही कोर्स शुरू कर दिया जाएगा(दैनिक जागरण,इलाहाबाद,17.7.11)।

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