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21 जुलाई 2011

उ.प्र. आवास एवं विकास परिषद में फर्जी प्रमाणपत्रों के सहारे नौकरी करने का खुलासा

उ.प्र. आवास एवं विकास परिषद में फर्जी जाति और शैक्षिक प्रमाणपत्रों के सहारे महत्वपूर्ण पद पर नौकरी करने का खुलासा हुआ है। जालसाजी कर 13 वर्षों से नौकरी पर बने सहायक वास्तुविद नियोजक संजीव कश्यप को आवास आयुक्त एमवीएस रामीरेड्डी ने निलंबित कर जांच प्रक्रिया तक चीफ इंजीनियर के साथ अटैच कर दिया गया है। खास बात यह है कि शासन ने मार्च, 2011 में ही नियुक्ति को अवैध बताकर आवास आयुक्त को कार्रवाई के आदेश दिए गए थे। लेकिन अधिकारियों ने फाइल दबाए रखी थी। मामले को लेकर परिषद के वास्तुविद गोपाल गर्ग ने शासन और सरकार में शिकायत की थी कि संजीव कश्यप को फर्जी तरीके से सहायक वास्तुविद नियोजक के पद पर भर्ती किया गया है। न तो उनकी शैक्षिक योग्यता पद के लिए मान्य है और न ही दिल्ली से जारी जाति प्रमाणपत्र उत्तर प्रदेश में मान्य है। इस पर विशेष सचिव मंजू चंद्र ने जांच की तो फर्जीवाड़ा सामने आया।रिपोर्ट में विशेष सचिव मंजू चंद्र ने कहा है कि परिषद में सहायक वास्तुविद नियोजक के पद पर 1998-99 में चयन हुआ। दिल्ली प्रशासन द्वारा संजीव कश्यप का अनुसूचित जाति (मल्लाह) प्रमाणपत्र जारी किया गया। जबकि उ.प्र. में मल्लाह जाति पिछड़ी जाति में शामिल हैं। वहीं, प्रवर्जन के संबंध में भारत सरकार के शासनादेश से स्पष्ट है कि कोई अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति शिक्षा या रोजगार इत्यादि के लिए मूल राज्य से दूसरे प्रदेश में प्रवर्तित होता है तो वह मूल राज्य में ही अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लाभ का पात्र होगा। इसलिए उत्तर प्रदेश में संजीव कश्यप को अनुसूचित जाति का लाभ नहीं दिया जा सकता। यही नहीं संजीव कश्यप के पास शैक्षिक योग्यता बैचरल ऑफ प्लानिंग की है, जबकि सहायक वास्तुविद नियोजक के पदों पर भर्ती के लिए शैक्षिक अर्हता बैचलर ऑफ आर्किटेक्चर और समकक्ष डिग्री होनी चाहिए थी। चयन समिति ने भी इसका संज्ञान नहीं लिया। संजीव कश्यप के प्रमाणपत्रों की जांच करने की जरूरत ही नहीं समझी गई। ऐसे में संजीव कश्यप का सहायक वास्तुविद नियोजक के पद पर लिया गया चयन अवैध है(अमर उजाला,कानपुर,21.7.11)।

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