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09 जुलाई 2011

उत्तराखंडःसरकारी दफ्तरों में ‘नो वर्क नो पे’ का सिद्धांत लागू

सरकारी कार्यालयों में हाजिरी लगाकर मौज करने वाले कार्मिकों की खैर नहीं। ऐसे कार्मिक बिना काम के वेतन नहीं पा सकेंगे। विभागाध्यक्ष और आहरण वितरण अधिकारी की ओर से कर्मचारी की उपस्थिति व कार्य किए जाने की पुष्टि के बाद ही कोषागार उसका वेतन जारी करेगा। गलत सूचना पर विभागाध्यक्ष व आहरण वितरण अधिकारी जिम्मेदार होंगे। हड़ताली कर्मचारियों पर सरकार ने शिंकजा कसना शुरू कर दिया है। एक दिन पूर्व अवैध हड़ताल करने वालों को नौकरी से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए नियमानुसार कार्रवाई किए जाने के निर्देश के बाद अब बिना काम के वेतन न देने के निर्देश दिए गए हैं। हालांकि इसमें हड़ताली कर्मचारियों के विषय में कुछ नहीं कहा गया है लेकिन माना जा रहा है कि हड़ताली कर्मचारियों की वजह से ही यह निर्देश जारी करने पड़े। इस संबंध में मुख्य सचिव सुभाष कुमार की ओर से वित्त विभाग को निर्देश जारी कर कहा गया कि नियमानुसार विभागों द्वारा कर्मचारियों की अनुपस्थिति की सूचना कोषागारों को नहीं भेजी जा रही है। साथ ही नियंत्रक अधिकारी व विभागाध्यक्ष के स्तर पर इसका प्रभावी अनुश्रवण नहीं किया जा रहा है। विभागाध्यक्ष व विभागीय आहरण वितरण अधिकारी की ओर से प्रतिमाह वेतन अथवा भत्ते में होने वाले परिवर्तन व उपस्थिति आदि की सूचना नियमित रूप से कोषागारों को इन अधिकारियों की ओर से दिए जाने की व्यवस्था है। सूचना में कोई परिवर्तन न हो तब भी शून्य सूचना समय से कोषागारों को भेजनी जरूरी है। यदि दो माह तक आहरण वितरण अधिकारी व कार्यालयाध्यक्ष की ओर से कोई सूचना नहीं भेजी जाती है, तो उस स्थिति में कोषागार सूचना आने तक भुगतान रोक देंगे, लेकिन इस व्यवस्था का पालन नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि सिद्धांत: किसी भी कर्मचारी को वेतन तभी दिया जाता है जब उसके द्वारा राजकीय कार्य सम्पादित किया गया हो। सभी राजकीय कार्मिकों पर ‘ नो वर्क नो पे सिद्धांत’ लागू होता है। इस सिद्धांत का पालन कड़ाई से सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने विभागाध्यक्ष व आहरण वितरण अधिकारी की जिम्मेदारी निश्चित कर दी कि वह कोषागारों को उपस्थिति भेजने से पहले यह सुनिश्चित करेंगे कि कार्मिक वास्तव में कार्यालय में उपस्थित थे(राष्ट्रीय सहारा,देहरादून,9.7.11)।

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