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28 जुलाई 2011

केंद्रीय विवि में ओबीसी कोटा पर भ्रम बरकरार

उच्च शिक्षा के केंद्रीय शिक्षण संस्थाओं में दाखिले के लिए ओबीसी आरक्षण का पैमाना क्या हो, इस पर भ्रम बरकरार है। ओबीसी आरक्षण पर फैसला देने वाली संविधान पीठ के सदस्य जजों को शामिल करने के आग्रह पर मौजूदा बेंच ने इस मामले को चीफ जस्टिस के पास भेज दिया। चीफ जस्टिस द्वारा नई बेंच के गठन के बाद ही अब इस मामले की सुनवाई हो सकेगी। जस्टिस आरवी रवीन्द्रन और एके पटनायक की बेंच काफी समय से आरक्षण के मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी, लेकिन बुधवार को सुनवाई के दौरान आरक्षण विरोधी पक्ष के वकील पीपी राव ने कहा कि 10 अप्रैल, 2008 को पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को जायज ठहराया था। उस पीठ के दो सदस्य अभी भी कार्यरत हैं। जस्टिस रवीन्द्रन के अलावा जस्टिस भंडारी को भी इस बेंच में होना चाहिए। वकील का कहना था कि जस्टिस भंडारी ने तीन साल पहले दिए फैसले में कट ऑफ का जिक्र किया था। इसलिए उन्हें बेंच में शामिल किया जाना चाहिए। वकील के इस कथन पर बेंच ने मामला चीफ जस्टिस को भेज दिया। गौरतलब है कि संविधान पीठ के तीन जज जस्टिस केजी बालाकृष्णन, जस्टिस अरिजित पसायत और सीके ठक्कर रिटार्यड हो चुके हैं। बुधवार को सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि सामान्य श्रेणी के छात्रों को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि उच्च शिक्षण संस्थाओं में दाखिले और सरकारी नौकरियों में आरक्षण एक वास्तविकता है। सामान्य श्रेणी के छात्रों का रोष बहुत स्वाभाविक है। जब वह यह देखते हैं कि उनसे कम अंक हासिल करने वाला छात्र दाखिला पाने में सफल हो जाता है, लेकिन समाज में असमानता के कारण यह सुविधा दी गई है। असमान छात्रों को समानता के आधार पर दाखिले से वंचित नहीं किया जा सकता। कट ऑफ अंक को लेकर अलग अलग विविद्यालयों द्वारा अपनाई जा रही प्रक्रिया पर अदालत को स्थिति स्पष्ट करनी थी(राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,28.7.11)।

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