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05 जुलाई 2011

उत्तराखंडःब्रांडिंग पर करोड़ों खर्च कर रहे हैं निजी शिक्षण संस्थान

देश में कौन सा निजी स्कूल या शिक्षण संस्थान होगा जो दून स्कूल, सेंट स्टीफंस कॉलेज, शेरवुड स्कूल जैसा नाम और साख न पैदा करना चाहे। इसी फेर में नए खुल रहे शिक्षण संस्थान अपनी ब्रांडिंग के लिए जमकर खर्च करने लगे हैं। आलम यह है कि विज्ञापन बाजार में मौजूदा वक्त में शिक्षा क्षेत्र का हिस्सा लगभग एक तिहाई है और 2012 तक शिक्षा क्षेत्र का हिस्सा साढ़े सात सौ से एक हजार करोड़ रुपये तक तक पहुंचने वाला है। संस्था ड्राफ्टएफसीबी प्लस उल्का के एक सव्रेक्षण में यह बात सामने आई है कि निजी शिक्षण संस्थान अपने विज्ञापनों पर अब जमकर खर्च करने लगे हैं। इस संस्थानों में स्कूल, कॉलेज, कोचिंग संस्थान, निजी विवि, करियर काउंसिंलिंग संस्थान आदि शामिल हैं। सर्वेक्षण के मुताबिक शिक्षण संस्थानों का हब बन रहे उत्तराखंड में तो विज्ञापन बाजार में शिक्षण संस्थानों का हिस्सा काफी बड़ा है। यहां तक कि कई संस्थान तो अपने बजट का 60 फीसद तक ब्रांडिंग पर खर्च के लिए रख रहे हैं। रोचक बात यह है कि नए निजी संस्थान इस दौड़ में काफी आगे हैं और वे प्रिंट मीडिया से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इंटरनेट के जरिए अपनी ब्रांडिंग करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे। खास बात यह है कि वे इसके लिए अंग्रेजी, हिंदी सभी भाषाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। यही नहीं प्रिंट मीडिया के टॉप थ्री विज्ञापन दाताओं में शिक्षण संस्थान ही हैं। वैसे यह बात भी है कि इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) और इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी) जैसे सरकारी संस्थान तभी विज्ञापन देते हैं जब वे कोई नया कोर्स शुरू कर रहे हों या प्रवेश परीक्षा आदि होने वाली हो, लेकिन निजी संस्थान अपनी ब्रांडिंग के लिए नित नए प्रयोग कर रहे हैं। इसके लिए वे सेमिनार, वर्कशॉप, गोष्ठियां या अन्य कार्यक्रमों का सहारा भी ले रहे हैं ताकि समाज में उनका साख बने। सर्वेक्षण में किए गए विश्लेषण के मुताबिक ब्रांडिंग की इस होड़ का नुकसान विद्यार्थिायों को भी उठाना पड़ता है क्योंकि तरह-तरह की फीस के रूप में उन्हें मोटी रकम अदा करनी होती है। हालांकि ब्रांडिंग अभियानों से जनता में विविध विषयों और करियर के विषय में जागरुकता भी फैलती है। सव्रेक्षण के मुताबिक इसके पीछे दरअसल पुरानी साख वाले संस्थानों से नए संस्थानों की प्रतियोगिता भी है। यही नहीं शिक्षा भी अब केवल सेवा नहीं रह गई बल्कि शिक्षण संस्थान खोलना एक लाभदायक व्यवसाय बन गया है। संस्थान तभी चल सकते हैं जब उनकी समाज में साख हो इसलिए शिक्षण संस्थानों की ब्रांडिंग पर खर्च लगातार बढ़ते जाने की ही उम्मीद है,यह संस्थानों की व्यावसायिक मजबूरी भी है(राष्ट्रीय सहारा,देहरादून,5.7.11)।

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