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20 जुलाई 2011

यूपी में शिक्षकों का दुरुपयोग

नया शिक्षा सत्र शुरू होते ही जिस तरह यह तथ्य सामने आया कि माध्यमिक शिक्षकों को अध्यापन से इतर भी कार्य निपटाने होंगे उससे यही पता चला रहा है कि उत्तर प्रदेश का शासन एवं प्रशासन शिक्षा में सुधार संबंधी अपने प्रयासों को लेकर गंभीर नहीं। यह विचित्र है कि एक ओर तो यह कहा जा रहा है कि शैक्षिक पंचांग को सही तरह से लागू किया जाएगा और छात्रों के सतत विकास के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएंगे, लेकिन दूसरी ओर हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट विद्यालयों के शिक्षक एवं शिक्षिकाओं की पठन-पाठन से इतर कार्यो में ड्यूटी लगाने की तैयारी भी शुरू हो गई है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में जिला प्रशासन के निर्देशों के तहत शिक्षकों को मतदाता सूची तैयार करने, उनमें संशोधन-परिव‌र्द्धन करने और घर-घर जाकर फोटो पहचानपत्र बनवाने की जिम्मेदारी संभालनी पड़ेगी। ऐसा तब होगा जब शैक्षिक पंचांग के अनुरूप शिक्षकों को प्रवेश कार्य एवं मासिक परीक्षा संपन्न कराने के साथ ही विभिन्न समितियों का गठन करना है और उनमें शामिल भी होना है। इसके अतिरिक्त उन्हें सामान्य एवं कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए उपचारात्मक शिक्षा का प्रबंध भी करना है। आखिर एक साथ इतने दायित्वों का निर्वहन कैसे संभव है? जब शिक्षकों के पास पठन-पाठन संबंधी कार्यो की ही एक लंबी सूची है तब फिर उन्हें अन्य कार्यो में क्यों शामिल किया जा रहा है? यह समझना कठिन है कि शासन में बैठे लोगों को सदैव शिक्षक ही क्यों फुर्सत में दिखाई पड़ते हैं? शिक्षकों को पठन-पाठन के अतिरिक्त अन्य कार्यो में शामिल करने का अर्थ है कि उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अन्य बोर्डो सरीखी गुणवत्ता हासिल करने के प्रति गंभीर नहीं। यह सुनिश्चित किया जाना तो समझ में आता है कि शिक्षक पठन-पाठन संबंधी अपने दायित्वों की अनदेखी न करने पाएं, लेकिन उन्हें अन्य कार्यो में शामिल करना अनुचित है। इन स्थितियों में गुणवत्तापरक शिक्षा का नारा सार्थक होने वाला नहीं है। बेहतर हो कि उत्तर प्रदेश सरकार शिक्षकों को गैर-शिक्षणेत्तर कार्यो में खपाने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करे। इस संदर्भ में उसे प्राइमरी विद्यालयों के शिक्षकों की ओर भी ध्यान देना होगा, क्योंकि वे भी गैर शिक्षणेत्तर कार्य करने के लिए विवश होते हैं(संपादकीय,दैनिक जागरण,लखनऊ,20.7.11)।

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