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12 जुलाई 2011

अब अपनी भाषाओं में दे सकेंगे आईएएस का इंटरव्यू

संघ लोक सेवा आयोग [यूपीएससी] ने फैसला किया है कि जो उम्मीदवार सिविल सेवा की लिखित परीक्षा के लिए माध्यम के रूप में हिन्दी के अलावा किसी अन्य भारतीय भाषा का चुनाव करते हैं, वे अब उसी भारतीय भाषा तथा अंग्रेजी या हिन्दी में साक्षात्कार भी दे सकेंगे।

यूपीएससी ने बम्बई उच्च न्यायालय में दाखिल अपने हलफनामे में कहा है कि एक विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के अनुरूप मुख्य परीक्षा अंग्रेजी में देने वाले उम्मीदवार भी अंग्रेजी, हिन्दी या उसी भारतीय भाषा में साक्षात्कार दे सकेंगे जो उन्होंने परीक्षा के लिखित भाग में आवश्यक भारतीय भाषा के पेपर के लिए चुनी होगी।
यह हलफनामा आईएएस की परीक्षा देने वाले चितरंजन कुमार द्वारा दायर जनहित याचिका के जवाब में दाखिल किया गया। उन्होंने इस मौजूदा नियम को चुनौती दी थी कि यदि किसी उम्मीदवार ने मुख्य परीक्षा अंग्रेजी में दी है तो वह साक्षात्कार भी उसी भाषा में देगा। वर्ष 2008 की सिविल सेवा परीक्षा के लिखित भाग के लिए अंग्रेजी चुनने वाले कुमार साक्षात्कार हिन्दी में देना चाहते थे।

हलफनामे में कहा गया कि मुद्दे पर विचार के लिए खास तौर पर गठित विशेष समिति ने ये सिफारिशें की हैं। अदालत को बताया गया कि सिफारिशों को यूपीएससी ने स्वीकार कर लिया और इन्हें इस आग्रह के साथ सरकार को भेज दिया गया कि इन पर टिप्पणी और राय भेजी जाए। सरकार का मत जानने के बाद यूपीएससी आवश्यक परिवर्तन करेगा और उन्हें कार्यान्वित करेगा।

वर्तमान नीति के अनुसार जिन उम्मीदवारों को आवश्यक भारतीय भाषा के पेपर से छूट मिलती है वे केवल अंग्रेजी या हिन्दी में ही साक्षात्कार दे सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश मोहित शाह और न्यायमूर्ति जीएस गोडबोले ने याचिका का निपटारा कर दिया। इससे पूर्व बम्बई उच्च न्यायालय ने यूपीएससी द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति को नियम की समीक्षा करने और 23 जून तक रिपोर्ट पेश करने की मंजूरी दी थी।


जनहित याचिका में तर्क दिया गया कि यदि मौजूदा नियम को बदल दिया जाता है तो सिविल सेवा परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के समय अपनी भाषा में बोलने का मौका मिल जाएगा जिसमें वे खुद को सहज महसूस करते हैं। इस तरह वे मौखिक परीक्षा में अधिक अंक अर्जित कर पाएंगे। याचिका में कहा गया कि इस तरह जमीन से जुड़े विद्यार्थी उच्च रैंक हासिल कर अधिक सीटें ले पाएंगे और सिविल सेवा में संभ्रांत वर्ग के विद्यार्थियों के जाने की परंपरा को तोड़ेंगे।


जनहित याचिका में कहा गया कि जिस नियम पर सवाल उठ रहे हैं वे अमीर समर्थक और गरीब विरोधी है। इसमें तर्क दिया गया कि साक्षात्कार लेने वालों को चाहिए कि वे किसी उम्मीदवार को उसके व्यक्तित्व के आधार पर परखें, न कि इस आधार पर कि वह अंग्रेजी बोल सकता है या नहीं। याचिका में कहा गया कि मौजूदा नियम संविधान के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और साथ ही यह राष्ट्र की जन नीति के खिलाफ भी है(लाईवहिंदुस्तान डॉटकॉम,12.7.11)।

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