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11 जुलाई 2011

यूपी में बीएड फीसःछात्रों की जगह स्टाफ काटेगा "मलाई"

उत्तर प्रदेश के बीएड कालेजों की फीस पहले से कम और एक समान होने की उम्मीद नहीं रह गई है । फिलहाल अंतरिम व्यवस्था के तहत इस वर्ष के कुछ महीने तक वार्षिक फीस ५० हजार रुपए से कम ही रहेगी लेकिन तीन-चार महीने बाद जब अंतिम रूप से फीस का निर्धारण हो जाएगा तो यह राशि ६० हजार रुपए से ऊपर हो जाएगी । एक तरह से इस फीस निर्धारण प्रक्रिया से फौरी तौर पर तो छात्रों को कोई राहत मिलती नहीं दिखती है ।


हकीकत यही है कि सरकार बीएड के ब़ड़े कालेजों के सामने माथा टेकने पर मजबूर ही हुई है। लाभ हुआ है तो कालेज स्टाफ का। अब तक मूंगफली खाकर गुजारा करने वाले स्टाफ के हिस्से में आने वाली है "मोटी मलाई"! ज्ञातव्य है कि पिछले तीन महीने से ९१६ कालेजों में बीएड के छात्रों के लिए सही फीस निर्धारण की प्रक्रिया चल रही है ताकि बीएड कालेजों के प्रबंधक छात्रों का शोषण न कर सकें। सरकार ने पहले के वर्षों में लगभग ३५ हजार रुपए की फीस निर्धरित की थी लेकिन शिकायत मिली थी कि तमाम कालेज एक लाख रुपए तक फीस के रूप में वसूल रहे हैं। १४ जुलाई से बीएड की काउंसिलिंग शुरू हो जाएगी और उसी के साथ फीस भी जमा करनी होगी लेकिन लंबी प्रक्रिया के बाद सरकार किसी नतीजे पर नहीं पंहुची है। फिलहाल सूत्रों के अनुसार ५० हजार रुपए से कम की राशि फीस के रूप में मान्य हुई है जिसकी घोषणा जुलाई मध्य में कर दी जाएगी लेकिन तीन-चार महीने की और कवायद के बाद जो फीस निर्धारित की जाएगी उससे निश्चित रूप से छात्रों को कोई लाभ नहीं मिलेगा। अभी फीस की राशि ५० हजार रुपए से कम इसलिए रखी गई है ताकि बैंक में फीस जमा करने के लिए पैन नंबर की अनिवार्यता से मुक्ति मिल सके। लेकिन कुछ महीने बाद छात्रों पर गाज गिरेगी और जमा फीस के अतिरिक्त कुछ हजार रुपए प्रबंधकों के खाते में जमा करने होंगे। फीस में यह अंतर कालेज के स्तर को देखकर तय किया जाएगा। 

सूत्रों के अनुसार कालेज का स्तर कम होने पर फीस की राशि कम भी हो सकती है। ऐसी स्थिति में प्रबंधकों को फीस वापस भी करनी प़ड़ेगी । अगर फीस ब़ढ़ानी ही थी तो कालेजों पर नकेल कसने का ढोंग क्यों रचा गया ? फीस पहले भी ज्यादा थी लेकिन तब उसे प्रबंधकों की मनमानी कहा जाता था और अब उस पर सरकारी कवर च़ढ़ा दिया गया है(स्नेह मधुर,नई दुनिया,दिल्ली,11.7.11) ।

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