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11 जुलाई 2011

डीयूःबिना निर्देश के ही कॉलेजों ने भरवाए रैगिंगरोधी शपथ-पत्र

दिल्ली विश्वविद्यालय के बिना दिशा-निर्देशों के ही कॉलेजों ने रैंगिंग नहीं करने के लिए शपथ पत्र भरवाए गए हैं। शपथ पत्र नॉन ज्यूडिशियल स्टॉम्प पर भरवाए गए। इससे स्टॉम्प की जमकर कालाबाजारी हुई है। डीयू के दिशा-निर्देशों के मुताबिक भी शपथ पत्र भरवाने के लिए दस रूपए के स्टॉम्प पेपर की जरूरत नहीं हैं। इसके बाद भी कई कॉलेजों ने छात्रों व अभिभावकों से भी यह पत्र भरवाए हैं।

कॉलेजों में दाखिला प्रक्रिया के साथ ही रैगिंग नहीं होने के लिए दस ヒपए के नन ज्यूडिशियल शपथ पत्र भरवाए हैं। शपथ पत्र के मामले में कॉलेजों ने अपने स्तर पर फैसला लिया। छात्रों के साथ ही अभिभावकों से भी शपथ पत्र भरवाए गए हैं। जबकि कॉलेजों ने दिशा-निर्देशों के मुताबिक रैगिंग की रोकथाम के लिए अन्य उपायों को कम ही अपनाया है। स्टॉम्प पेपर के कारण कॉलेजों के आसपास स्टॉम्प पेपर की कालाबाजारी जमकर हुई है। हालांकि कॉलेजों का दावा है कि रैगिंग रोकने के लिए तैयारी की जा रही है। डीयू ने कॉलेजों को २००९ दिशा-निर्देशों में रैगिंग की रोकथाम के लिए कई तरह के सुझाव दिए थे। मीडिया स्टडीज ग्रुप ने दाखिलों के दौरान डीयू में एक सर्वे कराया। इसमें पाया गया कि कॉलेजों के आस-पास बड़ी संख्या में नन ज्यूडिशियल स्टॉम्प पेपर की बिक्री हुई है।


ग्रुप के संयोजक ने बताया कि यह स्टॉम्प पेपर छात्रों और अभिभावकों को करीब सौ ヒपए तक पड़ा। यही नहीं हर दूसरे विद्यार्थी ने अपने अभिभावकों के जाली हस्ताक्षर कर नोटरी से अभिप्रमाणित कराया। रैगिंग की रोकथाम के लिए कॉलेजों ने दस ヒपए के नन ज्यूडिशियल स्टॉम्प पेपर शपथ पत्र तो भरवाए लेकिन रैगिंग की रोकथाम के लिए कोई अन्य उपाए कॉलेजों में नजर नहीं आए। उन्होंने बताया कि इस शपथ पत्र लेने का चलन शुरू करने के बाद दाखिले की पूरी व्यवस्था में वैध और अवैध कमाई का एक नया ढांचा जुड़ गया है। कॉलेज शपथ पत्र के अलावा भी कई तरीकों से रैगिंग रोक सकता है। सुप्रीम कोर्ट ले विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, सरकार को अपने स्तर पर रैगिंग रोकथाम के लिए उपाय करने का आदेश दिया था। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने शपथ पत्र लेने का सुझाव तो दिया था लेकिन उसमें नन ज्यूडिशियल स्टॉम्प पर ही शपथ पत्र लेने का निर्देश नहीं दिया गया था(नई दुनिया,दिल्ली,11.7.11)।

दैनिक भास्कर लिखता है कि रैगिंग शपथपत्र से छात्रों पर अनुचित आर्थिक बोझ पड़ा हैः
दिल्ली विश्वविद्यालय में 21 जुलाई से नए सत्र की शुरुआत होने जा रही है। रैगिंग कंट्रोल के मोर्चे पर इस बार भी डीयू के हर तीसरे कॉलेज ने छात्रों और अभिभावकों से स्टाम्प पेपर पर लिखित में रैगिंग न करने का भरोसा लिया है। हालांकि ऐसे कॉलेजों की भी कमी नहीं, जिन्होंने बगैर स्टाम्प पेपर शपथपत्र लिया है।

नतीजतन इस बार कानूनी शपथपत्र के चक्कर में कॉलेजों ने बेवजह छात्रों पर अनुचित आर्थिक बोझ डाला। चूंकि ग्रेजुएशन में 54 हजार सीटें उपलब्ध हैं, सो इस बार कुल खर्च कई लाख रहा। कुछ कॉलेज इसे अनिवार्य करार दे रहे हैं तो कुछ इसे गैर जरूरी बता रहे हैं। 

मीडिया स्टडीज ग्रुप ने इस बात की पड़ताल की तो पता चला कि रैङ्क्षगग कंट्रोल के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से 17 जून, 2009 को जारी दिशा-निर्देशों में से केवल शपथपत्र को अहमियत दी जा रही है। लेकिन दिशा-निर्देशों में जागरूकता को भी रैगिंग से निपटने में अहम बताया गया है। 

ग्रुप के संयोजक अनिल चमड़िया ने बताया कि कॉलेजों को यूजीसी की ओर से निर्देश दिया गया है कि वह रैगिंग कंट्रोल के लिए कॉलेजों में आठ अगल-अलग तरह की कमेटियां बनाए लेकिन ऐसा शायद ही डीयू के किसी कॉलेज में किया गया। अनिल चमड़िया ने बताया कि यूजीसी के निर्देश में कहीं नहीं कहा गया है कि शपथपत्र स्टाम्प पेपर पर होना चाहिए लेकिन फिर भी ऐसा करके कॉलेज छात्रों को परेशान करते हैं।

रैगिंग कंट्रोल के लिए सर्वोच्च न्यायालय की ओर से गठित राघवन कमेटी के सदस्य व रामजस कॉलेज प्रिंसिपल डॉ.राजेन्द्र प्रसाद का कहना है कि यूजीसी की ओर से स्पष्ट है कि शपथपत्र स्टाम्प पेपर पर लिया जा सकता है और इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमने छात्र व अभिभावक दोनों से शपथपत्र लिए हैं। 

इसमें किसी अभिभावक ने अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ने की शिकायत नहीं की है। हालांकि दूसरी ओर किरोड़ीमल कॉलेज में ऐसा शपथपत्र अनिवार्य नहीं है। दाखिले के दौरान कॉलेज ने छात्र व अभिभावकों से लिखित आश्वासन लिया है कि रैगिंग से छात्र दूर रहेगा और यदि ऐसी किसी घटना में संलिप्त पाया गया तो उसके खिलाफ नियमों के तहत कार्रवाई की जाए।

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