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18 जुलाई 2011

डीयूःस्पोर्ट्स कोटे को लेकर वीसी दरबार तक पहुंची स्टूडेंट्स की गुहार

डीयू में इस बार स्पोर्ट्स कोटे के एडमिशन में ट्रायल कंडक्ट करने से लेकर फाइनल लिस्ट बनाने तक की पूरी जिम्मेदारी कॉलेजों को सौंपी गई थी लेकिन स्टूडेंट्स की परेशानियां कम नहीं हो पाई हैं। खास बात यह है कि यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के पास स्पोर्ट्स कोटे के एडमिशन में गड़बडि़यों की काफी शिकायतें पहुंची हैं।

शिकायत करने वालों में स्टूडेंट्स के साथ-साथ कई दूसरे विभागों के सीनियर अधिकारी भी शामिल हैं। अब यूनिवर्सिटी एक बार फिर से अपनी स्पोर्ट्स पॉलिसी में बदलाव करने की बात कह रही है ताकि इन गड़बडि़यों पर काबू पाया जा सके।

डीयू के वाइस चांसलर प्रो. दिनेश सिंह ने बताया कि अगले सेशन में यूनिवर्सिटी स्पोर्ट्स कोटे के एडमिशन की नई पॉलिसी लेकर आएगी और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि एडमिशन यूनिवसिर्टी की देखरेख में ही हों। सेंट्रलाइज्ड ट्रायल के फॉर्म्युले को वापस लाने के सवाल पर वीसी ने कहा कि इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन यह जरूर देखा जाएगा कि स्पोर्ट्स के ट्रायल भी यूनिवर्सिटी अधिकारियों की देखरेख में ही हों।

प्रो. सिंह ने कहा कि किसी भी यूनिवर्सिटी व कॉलेज में स्पोर्ट्स का रोल काफी अहम होता है और हर यूनिवर्सिटी का यह दायित्व है कि योग्य खिलाडि़यों को एडमिशन मिले। अभी ऐसी शिकायतें भी आई हैं, जिसमें आरोप लगाया गया है कि नैशनल लेवल के प्लेयर्स को एडमिशन नहीं दिया गया। यूनिवर्सिटी इन शिकायतों के बारे में पड़ताल कर रही है और अगले साल के लिए स्पोर्ट्स की ठोस नीति लागू की जाएगी।


यूनिवर्सिटी का हस्तक्षेप जरूर होगा ताकि एडमिशन में कोई मनमानी न कर पाए। कॉलेजों में स्पोर्ट्स और ईसीए कोटे की कुल पांच पर्सेंट सीटें रिजर्व होती हैं। पिछले साल यूनिवर्सिटी ने स्पोर्ट्स के सेंट्रलाइज्ड ट्रायल कंडक्ट किए थे। इस बार कॉलेजों को ही ट्रायल करने की जिम्मेदारी दी गई थी लेकिन अगले साल इस प्रोसेस में फिर से बदलाव होना तय है। वाइस चांसलर भी स्पोर्ट्स कोटे के एडमिशन की शिकायतों को लेकर काफी गंभीर हैं। 
इसके अलावा ट्रायल और सर्टिफिकेट के मार्क्स में भी बदलाव करने पर विचार किया जा रहा है। इस समय ट्रायल के 25 पर्सेंट और सर्टिफिकेट के 75 पर्सेंट मार्क्स हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि ट्रायल और सर्टिफिकेट के मार्क्स में इतना अधिक अंतर नहीं होना चाहिए। दोनों की वेटेज 50-50 पर्सेंट रखना सही होगा। 

गौरतलब है कि इस बार डीयू में कुछ ऐसे स्टूडेंट्स को एडमिशन नहीं मिल पाया है जो नैशनल लेवल के टूर्नामेंट खेल चुके हैं, जबकि स्कूल लेवल के टूर्नामेंट खेलने वाले स्टूडेंट्स को एडमिशन मिल रहा है। यूनिवर्सिटी के नियमों के मुताबिक नैशनल लेवल के टूर्नामेंट में अगर कोई टीम फर्स्ट आती है तो उस स्टूडेंट को 60 मार्क्स और सेकंड आने पर 48 मार्क्स दिए जाते हैं। वहीं अगर टीम पहली तीन पॉजिशन पर नहीं आती तो उस टीम के स्टूडेंट्स को टूर्नामेंट में भागीदारी पर केवल 12 मार्क्स मिल रहे हैं। 

जबकि स्कूल लेवल पर इंटर जोनल में फर्स्ट आने पर 30 मार्क्स, सेकंड आने पर 24 मार्क्स मिल रहे हैं। एक्सपर्ट का मानना है कि अगर किसी स्टूडेंट ने नैशनल इवेंट में भाग लिया है तो भी उसे इंटर जोनल लेवल पर टॉप करने वाले स्टूडेंट्स से ज्यादा मार्क्स मिलने चाहिए, क्योंकि नैशनल इवेंट की अहमियत इंटर जोनल लेवल से अधिक होती है(भूपेंद्र,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,18.7.11)।

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