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14 जुलाई 2011

उत्तराखंडः बीएड फॉर्म जमा करने की अंतिम तिथि बढ़ाने की मांग

लापरवाही की हद है। परीक्षा के लिए फॉर्म पहुंचने में देरी हो या काउंसिलिंग के लिए स्कोर कार्ड न मिले-जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं। न डाक विभाग और न यूनिवर्सिटी। अभ्यर्थी इनके बीच पिस रहे हैं। टीईटी, यूपीएमटी काउंसिलिंग आदि में इस लापरवाही के चलते अभ्यर्थियों का भविष्य दांव पर देख बीएड अभ्यर्थियों की हालत भी खस्ता है। विभागीय देरी के आलम के चलते उन्होंने बीएड फॉर्म जमा करने की तिथि एक सप्ताह बढ़ाए जाने की मांग की है।


अभी तक यूनिवर्सिटी फॉर्म पहुंचने की आखिरी तिथि 20 जुलाई नियत की गई है। फॉर्म भेजने के लिए जीपीओ पहुंचे सनी राणा का कहना था कि अभी फॉर्म जमा करने की तिथि में एक सप्ताह बाकी है, लेकिन वह अभी से फॉर्म भेज रहे हैं, क्योंकि डाक विभाग के हाल-बेहाल हैं। उनकी मांग है कि फॉर्म जमा करने की तिथि एक सप्ताह और बढ़ाई जाए ताकि फॉर्म यूनिवर्सिटी तक पहुंच जाए। उनकी मानें तो स्पीड पोस्ट की खास तौर पर स्पीडलेस हो गया है। कुछ ऐसा ही बयान अंकिता रावत का भी था। अंकिता के अनुसार उनके फ्रेंड्स के टीईटी फॉर्म्स में देरी का कारण डाक विभाग की हीला-हवाली रही। ऐसे में रिस्क कौन ले। 

हालिया केस :
टीईटी अभ्यर्थियों के फॉर्म समय से नहीं पहुंचे। तिथि बढ़ाई गई।
यूपीएमटी अभ्यर्थियों के स्कोर कार्ड नहीं पहुंच पाए। काउंसिलिंग से वंचित।

वैकल्पिक व्यवस्था फिर क्यों देरी 
डाक विभाग के पास वैकल्पिक व्यवस्था भी है, ऐसे में डाक पहुंचने में देरी का कारण समझ से बाहर है। विभाग के एक अधिकारी के अनुसार मार्ग खराब हो तो वैकल्पिक रूटों का सहारा लिया जाता है। जहां वाहन का बिल्कुल आवागमन संभव नहीं, वहां कुली की मदद ली जाती है। ऐसे में 72 घंटे का दावा करने वाली स्पीड पोस्ट एक सप्ताह कैसे लेती है, यह समझ से परे है।

उपभोक्ता फोरम में जा सकते हैं
अगर डाक विभाग की लापरवाही के चलते छात्र-छात्राएं यूपीएमटी काउंसिलिंग में बैठने से वंचित रहे हैं तो वह जिला उपभोक्ता फोरम में वाद योजित कर सकते हैं। वहीं नाबालिग अपने अभिभावकों के माध्यम से जिला उपभोक्ता फोरम में वाद योजित कर सकते हैं। इसमें किसी भी प्रकार की कोई कानूनी अड़चन नहीं है। 
राजीव आचार्य, एडीजीसी (राजस्व)

यूनिवर्सिटी दे तिथियों में मार्जिन 
दिक्कत इसलिए हो रही है, क्योंकि फॉर्म बिक्री और जमा करने की तिथि एक ही रखी गई है। इसमें डाक विभाग का कोई रोल नहीं। अगर यूनिवर्सिटी की ओर से इसमें सप्ताह भर का मार्जिन रखा जाए तो फार्म के देरी से पहुंचने की समस्या दूर हो जाएगी। एक और भी समस्या है। ज्यादातर छात्र-छात्राएं पहले तो समय यूं ही बर्बाद करते हैं, जब दो-तीन दिन बचते हैं तब उन्हें फॉर्म भेजने की याद आती है। भौगोलिक परिस्थितियां यूं भी अनुकूल नहीं। ऐसे में देरी होने पर डाक विभाग का क्या दोष?-के मलियान, सहायक निदेशक, डाक(अमर उजाला,देहरादून,14.7.11)

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