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14 जुलाई 2011

डीयूःफोन, ईमेल, फेसबुक पर भी फ्रेशर्स रहेंगे सेफ

रैगिंग के खिलाफ पिछले कुछ सालों से यूजीसी व यूनिवर्सिटीज ने जोरदार मुहिम चलाई है और इसका असर भी हो रहा है। अब कोई भी यूनिवर्सिटी व कॉलेज रैगिंग के आरोपी को माफ नहीं कर सकता। राघवन कमिटी ने रैगिंग के दायरे को भी परिभाषित किया है। साइकॉलजिकल व इकनॉमिक पहलू भी रैगिंग के दायरे में आ चुके हैं।

फ्रेशर के साथ मारपीट करना तो अपराध है ही इसके अलावा साइबर रैगिंग भी बड़ा अपराध है और इसके लिए भी कम सजा नहीं मिलती। फ्रेशर्स के साथ गाली- गलौच करना भी रैगिंग के दायरे में आता है। साइकलॉजिकल रैगिंग से भी सख्ती से निपटने की तैयारी की गई है। कमिटी ने रैगिंग के सभी पहलुओं को भी परिभाषित किया है।

यूजीसी ने भी यूनिवर्सिटी व कॉलेजों को चेतावनी दी है कि अगर रैगिंग के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाए गए तो उस कॉलेज के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। डीयू ने भी कॉलेजों को गाइड लाइंस जारी कर दी हैं और कहा है कि हर कॉलेज में एंटी रैगिंग कमिटी बनाई जाए। जरूरत पड़ने पर स्टूडेंट 100 नंबर पर कॉल भी कर सकते हैं।

रैगिंग को लेकर कॉलेजों को अपने नोटिस बोर्ड, वेबसाइट पर हर संभव जानकारी देनी होगी और पोस्टरों के जरिए भी रैगिंग के खतरों के बारे में बताना होगा। एंटी रैगिंग कमिटी कॉलेजों में पूरी तरह से एक्टिव रहेगी और औचक निरीक्षण भी करेगी। एंटी रैगिंग कमिटी में टीचर्स के अलावा नॉन टीचिंग स्टाफ, काउंसलर और सीनियर स्टूडेंट्स को भी शामिल किया जाएगा।


फिजिकल रैगिंग : स्कूल से कॉलेज में आने वाले स्टूडेंट्स को सपोर्ट की जरूरत होती है ताकि वे खुद को सेफ महसूस कर सकें। हालांकि स्कूलों में बुलिंग की शिकायतें मिलती रहती हैं लेकिन कॉलेजों में कई बार रैगिंग मजाक तक ही सीमित नहीं रह जाती। नए आने वाले स्टूडेंट्स के साथ मारपीट तक के केस सामने आते हैं। इस तरह की रैगिंग सबसे कॉमन है। रैगिंग के खिलाफ कड़े दिशा- निर्देश जारी करने वाली राघवन कमिटी के मेंबर डॉ. राजेंद प्रसाद का कहना है कि कॉलेज में आने वाले नये स्टूडेंट्स को कोई परेशानी न हो, इसके पूरे उपाय किए गए हैं। फ्रेशर को परेशान करने वालों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। 
फोन रैगिंग : मोबाइल फोन हर किसी की जरूरत बन गया है। कई सीनियर्स एसएमएस या फोन करके भी नए स्टूडेंट्स को परेशान करते हैं। कमिटी का मानना है कि फ्रेशर को मानसिक तौर पर परेशान किए जान से उसका आत्मविश्वास डगमगा जाता है और कई मामलों में देखा गया है कि डर के मारे वह कॉलेज आना ही नहीं चाहता। इसी को ध्यान में रखते हुए राघवन कमिटी ने रैगिंग के अलग- अलग पहलुओं को बताया है ताकि फ्रेशर को न तो शारीरिक तौर पर परेशान किया जा सके और न ही उसे मानसिक तौर पर कोई चोट पहुंचाई जा सके। 

साइबर रैगिंग : ईमेल या सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए कमेंट कर परेशान करने को भी रैगिंग माना जाएगा। डॉ. प्रसाद का कहना है कि अगर किसी फ्रेशर को साइबर रैगिंग के जरिए परेशान किया जा रहा है तो इसके बारे में तुरंत प्रिंसिपल या एंटी रैगिंग टीम के सदस्यों को बताना चाहिए। एसएमएस या ईमेल को डिलीट नहीं करना चाहिए क्योंकि यह आरोपी के खिलाफ बड़ा सबूत है और आरोपी को जल्द से जल्द सजा दिलवाने में मदद करेगा। साइबर रैगिंग के आरोपी को भी यूनिवसिर्टी व कॉलेज से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है और हेवी फाइन भी लगाया जा सकता है। 

इकनॉमिक रैगिंग : ऐसी शिकायतें भी आती हैं कि कॉलेज में आने वाले नये स्टूडेंट्स से सीनियर पार्टी मांगते हैं और उनसे काफी खर्चा करवाते हैं। फ्रेशर मना करता है तो उसे परेशान किया जाता है। राघवन कमिटी का साफ कहना है कि कार्रवाई के लिए जरूरी है कि फ्रेशर कॉलेज के पास अपनी शिकायत लेकर जाए और अपनी बात रखें। कॉलेज को इस तरह की शिकायत पर भी एक्शन लेना होगा। अगर कोई फ्रेशर यह कंप्लेंट करेगा कि उससे जबरन पैसे लिए गए हैं या फिर उसे किसी रेस्टोरेंट या माकेर्ट में ले जाकर खर्च करवाया गया है तो इसे रैगिंग मानकर कार्रवाई की जाएगी(भूपेंद्र,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,14.7.11)।

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