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18 जुलाई 2011

कर्नाटक के स्कूलों में गीता की पढ़ाई पर बखेड़ा

कर्नाटक की भारतीय जनता पार्टी सरकार राज्य के स्कूलों में हिंदूओं के पवित्र ग्रंथ भागवत गीता की पढ़ाई कराने को लेकर विवादों में फंस गई है। विवाद ने तब एक नया मोड़ ले लिया जब 14 जुलाई को राज्य के प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री विश्वनाथ हेगड़े कगरी ने कहा कि जो लोग गीता की शिक्षा के विरोध में हैं उन्हें भारत छोड़ देना चाहिए। कगरी ने कहा कि विद्यार्थियों में नैतिक मूल्यों को जगाने के लिए पवित्र गीता की पढ़ाई जरूरी है। कगरी ने यह बयान बेंगलूर से लगभग 65 किमी दूर कोलार में एक कार्यक्रम में दिया था। मालूम हो कि उन्होंने 8 जुलाई को बेंगलूर में घोषणा की थी कि सरकार स्कूलों में भागवत गीता की पढ़ाई को अनिवार्य करने जा रही है लेकिन उच्च शिक्षा मंत्री वीएस आचार्य ने कहा था कि इस कार्यक्रम को धार्मिक शिक्षा से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। भागवत गीता की पढ़ाई और धर्म के बीच कोई संबंध नहीं है। गीता मानव मूल्यों के बहुत करीब है। आचार्य ने कहा था कि हर व्यक्ति को राजी नहीं किया जा सकता है। बहुत से लोग इसे सांप्रदायिक शिक्षा के रूप में लेंगे और इस आधार पर विरोध करेंगे कि यह योजना असंवैधानिक है और सरकार को इसको वापस लेना चाहिए। यह मामला 14 जुलाई को उच्च न्यायालय में पहुंचा। कर्नाटक राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों प्रबंधनों के फेडरेशन ने एक याचिका दायर कर कार्यक्रम के लिए सरकारी समर्थन को चुनौती दी है। अदालत ने याचिका पर राज्य और केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया मांगी है। कगरी का कहना है कि इस प्रोग्राम में उपस्थित रहने की कोई मजबूरी नहीं है। यह स्वैच्छिक है और गीता की शिक्षा सिर्फ स्कूल की पढ़ाई के बाद दी जाएगी। सरकार सिर्फ इस योजना का सिर्फ समर्थन कर रही है। वह यह प्रोग्राम न तो आयोजित कर रही है और न ही इसके लिए कोई वित्तीय समर्थन दे रही है। यह योजना उत्तरा कन्नड़ा जिले में सिरिसी के सोंडा स्वर्णावल्ली मठ के श्री गंगाधरेंद्र सरस्वती स्वामी द्वारा संचालित की जा रही है(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,18.7.11 में बेंगलुरू की रिपोर्ट)।

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