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10 जुलाई 2011

उच्च शिक्षा में दाखिले के लिए होगी साझा परीक्षा

डीयू के एक कॉलेज में सौ फीसदी कट-ऑफ ने उच्च शिक्षा में दाखिले पर फिर से बहस छेड़ दी है। ऐसा लगता है राज्यों के सेकेंडरी बोर्डो में नंबर बांटने में आपस में होड़ लगी है। तमिलनाडु में तो इस बार 6450 छात्रों ने बारहवीं के कई विषयों में सौ फीसदी नंबर हासिल किए। सीबीएसई का तीन साल का आंकड़ा होड़ की स्याह तस्वीर पेश करता है। नब्बे फीसदी से ज्यादा नंबर हासिल करने वालों की संख्या दस, बीस नहीं बल्कि 162 फीसदी से ज्यादा बढ़ी है। इस साल 21665 छात्र इस मुकाम पर पहुंचे। यह नंबरगेम कहां खत्म होगा? रास्ता क्या है? खुद मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल इससे खफा हैं। उनका मानना है कि राज्यों की मूल्यांकन पद्धति भी अलग-अलग है। यही नहीं संस्थानों की आपसी होड़ भी एक वजह है। दाखिला की गंभीर चुनौती से निपटने के लिए शिक्षा मंत्री से पंकज कुमार पाण्डेय ने सीधे सवाल किए। चुनिंदा सवाल-जवाब के मुख्य अंश।

सौ फीसदी कटऑफ का जमाना आ गया? डीयू के एक कॉलेज में 100 प्रतिशत कटऑफ पहुंच गया। क्या वजह है, सिस्टम में कमी या फिर मनमानी?

सौ फीसदी कटऑफ डीयू के एक कॉलेज में चु¨नदा सब्जेक्ट कॉम्बीनेशन के लिए था। यह निश्चित रूप से अस्वीकार्य, समझ से परे और बेतुका है। मैंने सार्वजनिक रूप से कॉलेज के इस कटऑफ पर नाखुशी जताई थी। हालांकि छात्रों में अच्छे संस्थान में शिक्षा पाने की होड़ है। लेकिन, इसे बड़ी संख्या में अच्छे संस्थानों की उपलब्धता से ही पूरा किया जा सकता है। कुछ ऐसे संस्थान हैं जहां ज्यादातर छात्र दाखिला पाना चाहते हैं।

छात्रों को दाखिले के दबाव से निजात दिलाने के लिए क्या उपाय मंत्रालय कर रहा है?

सरकार ने एजूकेशन सिस्टम को रीस्ट्रक्चर करने के लिए कई सुधारात्मक कदम उठाए हैं। एकेडमिक क्वालिटी के लिए सभी संस्थाओं का मैंडेटरी एक्रिडिएशन किया जाना है। कई नए गुणवत्तायुक्त संस्थानों और विश्वविद्यालयों की स्थापना पब्लिक फंडिंग के जरिए की जानी है। उच्च शिक्षा का दायरा बढ़ाने और शैक्षणिक सुधारों को बढ़ावा देने के लिए नियामक संस्थानों का ढांचा फिर से तैयार किया जा रहा है। सरकार एक्सेस, इक्विटी और क्वालिटी(पहुंच-समानता-गुणवत्ता) के त्रिसूत्रीय फामरूले पर काम कर रही है। उम्मीद है कि इसका फायदा छात्रों को दाखिले में ही नहीं, पूरी शिक्षा हासिल करने में होगा।

दिल्ली विवि के श्रीराम कॉलेज ऑफ कामर्स में तमिलनाडु एजुकेशन बोर्ड के छात्रों ने एक तिहाई सीटों पर दाखिला पा लिया। क्या नंबर देने में लचीले रुख के चलते ऐसा हुआ?

कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को अकादमिक मामलों में स्वायत्तता हासिल है। इस स्वायत्तता में उनका दाखिला और स्टडी प्रोग्राम भी शामिल है। केंद्रीय विवि सभी नागरिकों के लिए हैं और क्षेत्रीय महत्व की बात दाखिलों में नहीं की जा सकती है। एक कॉलेज की प्रवेश प्रक्रिया के आधार पर कोई नतीजा नहीं निकाला जा सकता है। अलग अलग राज्यों में छात्रों के परफॉर्मेस में भी अंतर होता है। यह राज्य की शिक्षा में गुणवत्ता और एजूकेशन बोर्ड के मूल्यांकन पर निर्भर करता है। दक्षिणी राज्यों के छात्रों ने आईआईटी - जेईई और अन्य अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षाओं में भी बेहतर प्रदर्शन किया है।


सभी 41 एजूकेशन बोर्ड में एक जैसे मानक या किसी कॉमन सिस्टम पर विचार हो रहा है?

काउंसिल ऑफ बोर्ड फार सेकंेडरी एजूकेशन (कोब्से) के जरिए सांइस, गणित और कामर्स का पूरे देश में एक जैसा पाठ्यक्रम तैयार किया गया है। इसके अलावा नेशनल टेस्टिंग स्कीम लागू करने का प्रयास किया जा रहा है। साझा परीक्षा के माध्यम से देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिला देने की योजना बनाई जा रही है। डॉ. रामास्वामी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई है। यह सितंबर तक अपनी रिपोर्ट दे देगी(पंकज कुमार पांडेय,दैनिक भास्कर,दिल्ली,10.7.11)।

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