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13 जुलाई 2011

छत्तीसगढ़ी में नहीं मिलेगी मास्टर डिग्री

छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग और पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के बीच आपसी समन्वय नहीं होने की वजह से छत्तीसगढ़ी में एमए का कोर्स आज तक शुरू नहीं हो पाया। इसके साथ ही करीब तीन साल पुराने इस प्रस्ताव ने दम तोड़ दिया। छत्तीसगढ़ी को विकसित करने का उद्देश्य धूमिल हो गया।

अब इसमें डिप्लोमा कोर्स शुरू किया गया है, वह भी कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में।

छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा मिलने के बाद उसे विकसित करने के उद्देश्य से रविवि के माध्यम से इसके लिए पीजी पाठ्यक्रम शुरू करने का प्रस्ताव छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष पं. श्यामलाल चतुर्वेदी और कार्यवाहक अध्यक्ष डॉ. रमेंद्रनाथ मिश्र ने किया था। इसे तत्कालीन कुलपति डॉ. लक्ष्मण चतुर्वेदी ने स्वीकृत भी किया था।

इसके लिए पाठ्यक्रम तैयार करने का जिम्मा छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग को दिया गया।


छत्तीसगढ़ी शब्दकोश, व्याकरण, साहित्य को इसमें शामिल किया जाना था। इसी बीच आयोग और रविवि के बीच समन्वय बिगड़ने लगा। आयोग की ओर से पाठ्यक्रम तैयार करने में सुस्ती बरती गई वहीं रविवि ने पाठ्यक्रम शुरू करने का समय तय नहीं किया और न ही प्राध्यापकों की नियुक्ति हो पाई। 

इससे यह मामला दिन ब दिन टलता गया। कार्यवाहक अध्यक्ष डॉ. रमेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि राज्य की सांस्कृतिक विरासत और साहित्य से परिचित कराने के लिए आयोग की ओर से रविवि के सामने छत्तीसगढ़ी में एमए और डिप्लोमा का प्रस्ताव रखा गया था। उसी समय छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा मिला था इसे और विकसित करने व नई पीढ़ी को इससे परिचित कराने में यह पाठ्यक्रम सहयोगी साबित होता। 

रविवि के भाषा विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. व्यास नारायण दुबे ने बताया कि आयोग ने पाठ्यक्रम बनाने में देरी तो की ही, हमारे यहां स्टाफ की भी कमी है। इसकी वजह से नए पाठ्यक्रम शुरू करने में दिक्कत हो रही है। संसाधन जुटाने के बाद फिर से पहल की जा सकती है। 

पत्रकारिता विवि ने लिया श्रेय

राजभाषा आयोग व रविवि के बीच बिगड़ते समन्वय को देखते हुए आयोग ने कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता व जनसंचार विवि में इसके डिप्लोमा का प्रस्ताव रखा। उसे पत्रकारिता विवि ने स्वीकार कर लिया। वहां इन दिनों पीजी डिप्लोमा इन फंक्शनल छत्तीसगढ़ी कोर्स शुरू किया गया है। आयोग के सचिव डॉ. सुरेंद्र दुबे ने बताया कि डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरू करने के पीछे लोगों को व्यावहारिक छत्तीसगढ़ी से परिचित कराना है। साथ ही छत्तीसगढ़ी व्याकरण और शब्दकोश की भी जानकारी देना है(दैनिक भास्कर,रायपुर,13.7.11)।

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