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28 अगस्त 2011

गोरखपुर का बीआरडी मेडिकल कालेजः19 महीने से वेतन नहीं फिर भी जमे


इस भीषण महंगाई में जब ईमानदारों का वेतन में गुजारा मुश्किल हो चला है, बीआरडी मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य डा. आर. के. सिंह 19 माह से यहां बिना वेतन डटे हैं। शासन के तबादला आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती देकर स्थगनादेश के साथ लौटे डा. सिंह ने वेतन पाने के लिए न तो न्यायालय की शरण ली और न ही शासन पर दबाब बनाया। 19 माह के कार्यकाल में अपनी कार्यपण्राली को लेकर चर्चित डा. सिंह पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। शासन ने उनका तबादला पहले जालौन मेडिकल कालेज और फिर इनकी मांग पर कन्नौज मेडिकल कालेज किया है। लेकिन अब वे जालौन जाने को भी तैयार नही हैं। बीआरडी मेडिकल कालेज में न तो उन्हें वेतन मिल रहा है और न ही वे प्रधानाचार्य आवास में रहते है। वे कालेज में बने गेस्ट हाउस में रहते हैं और उन पर सिर्फ बिधुत बिल का ही लगभग 65 हजार रुपये बकाया है। नियमत: कोई भी इतने लंबे समय तक गेस्ट हाउस में नहीं रह सकता। 08 फरवरी 2010 को कानपुर से गोरखपुर तबादले पर आये डा. आर. के. सिंह का विवादों से पुराना नाता है। कानपुर में उन्हे जो सरकारी आवास मिला था उसे उन्होंने अब तक नहीं छोड़ा। कालेज से लेकर शासन तक उन्हें आवास खाली करने का कई बा र निर्देश दे चुका है। पर न तो उन्होंने मेडिकल कालेज की सुनी और न शासन की। कानपुर मेडिकल कालेज से न तो उन्हें नो डय़ूज मिला और न हीं एलपीसी ( लास्ट पेमेन्ट सर्टिफिकेट)। तबादले पर जाने के बाद नये तैनातीस्थल पर वेतन पाने के लिए एलपीसी का आना जरूरी है। इस बारे में पूछने पर डा. सिंह का कहना है कि यह सच है कि उन्हे पिछले 19 महीने से वेतन नहीं मिल रहा है। पर इसके लिए शासन स्तर पर मेरी वार्ता चल रही है, उम्मीद है कि जल्द ही वेतन मिल जाये। यह पूछने पर कि बिना वेतन कैसे गुजारा होता है, उन्होंने कहा जैसे- तैसे चलता है। यह पूछने पर कि एक तरफ आप यहां बने रहना चाहतेहैं और दूसरी तरफ अपनी अन्य व्यस्तताओं के चलते आप एक वर्ष यानी 365 दिन में कुल 156 दिन गोरखपुर से बाहर रहे हैं, ऐसे में पहले से ही ससमस्याओं से जूझ रहे गोरखपुर मेडिकल कालेज की समस्याओं का समाधान कैसे संभव है? उन्होंने कहा गोरखपुर से मेरे बाहर रहने के बारे में आप जो आंकड़ा बता रहे हैं, वह सही नहीं है। रही समस्याओं की बात तो उसके समाधान के लिए सतत प्रयत्नशील हूं। जबकि मेडिकल कालेज सूत्रों के मुताबिक पिछले एक साल के दौरान डा. सिंह किसी भी शनिवार और रविवार को गोरखपुर नहीं रहे हैं। यानी साल के लगभग 110 दिन। शेष 46 दिन कभी मीटिंग तो कभी आवश्यक कार्य बता कर वे बाहर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक डा. सिंह ने अपने कार्यकाल में यहां अजीबोगरीब कार्यशैली विकसित की। नियमों को दरकिनार कर लगभग एक करोड़ रुपये का सामान बिना वित्तीय स्वीकृति के खरीदा। कुछ विभागों में बिना जरूरत है सामान उपलब्ध करा दिये जिन सामानों की अन्य विभागों में सख्त जरूरत है और बिना सामान वहां कार्य प्रभावित हो रहा है। डा. सिंह का दावा है उन्होंने अपने प्रयासों से यहां दवा तथा सुविधाओं की उपलब्धता के लिए काफी काम किया है जबकि कड़वी हकीकत यह है कि पूर्वाचल में इंसेफेलाइटिस का प्रकोप शुरु होने के बाद से पिछले साल तक जो मृत्यु दर रही है, उससे कहीं अधिक इस बार दिख रही है। उनका कहना है कि इंसेफेलाइटिस से मरने वालों की संख्या बढ़ने का कारण मरीजों की संख्या में इजाफा है जबकि आंकड़े बताते है कि बाल रोग के नियोनेटल वार्ड में ही पिछले सालों के मुकाबले मृत्युदर दूनी हो गयी है। कालेज में 23 वेटिलेटर मशीने खराब पड़ी हैं। इस बाबत पिछले दिनों एक बैठक भी हुई जिसमे फर्म का कहना था कि यहां पेमेंट का काफी लफड़ा है। प्रकारान्तर से उसने यही कहा कि कमीशनबाजी अधिक होने के कारण यहां काम करना मुश्किल हो गया है(दीप्त भानु डे,राष्ट्रीय सहारा,गोरखपुर,27.8.11)।

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