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04 अगस्त 2011

इंदौर में खाली पड़े हैं 20 फीसदी पद

नौकरी डॉटकॉम द्वारा मंगलवार को जारी एक सर्वे में कहा गया है कि देश में नौकरियों की कमी नहीं है लेकिन उनके लिए योग्य उम्मीदवार नहीं मिल पा रहे हैं। सिटी भास्कर ने शहर प्रमुख एम्प्लायर्स से बात की तो यही चीज सामने आई। ज्यादातर कंपनियों में वैकेंसी है लेकिन सूटेबल केंडिडेट नहीं मिल पा रहे हैं।

कम्युनिकेशन स्किल, कॉन्फिडेंस व बेसिक नॉलेज की कमी शहर के फ्रेशर्स को जॉब से दूर कर रहे हैं। पेनासोनिक के फैक्टरी मैनेजर आर.एस. अय्यर कहते हैं पिछले साल हमारे यहां सात लोगों की जरूरत थी। तीन इंस्टिट्यूट में जाने के बाद सिर्फ तीन स्टूडेंट ही सूटेबल लगे।


सिस्कॉन इन्फॉर्मेशन सिस्टम के डायरेक्टर गौतम शर्मा बताते हैं पिछले साल कंपनी को 15 कर्मचारियों की जरूरत थी। इंस्टिट्यूट्स में डेढ़-दो सौ के टेस्ट लिए लेकिन सिर्फ दो ही सूटेबल लगे। इम्पेटस के वाइस प्रेसीडेंट इंजीनियरिंग मैनेजमेंट राजीव गुप्ता कहते हैं हमारे रिक्रूटमेंट तकनीकी ज्ञान, सीखने की क्षमता, जिज्ञासा और समस्या हल करने की एप्रोच के आधार पर होते हैं। कैम्पस सिलेक्शन के दौरान ज्यादातर स्टूडेंट्स में प्रोग्रामिंग स्किल देखने को नहीं मिलती। लैंग्वेज की भी पर्याप्त जानकारी नहीं होती। 

एक फीसदी भी इंदौर के नहीं
पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष गौतम कोठारी कहते हैं सिलेबस इंडस्ट्रीज की जरूरत के मुताबिक नहीं है। पीथमपुर की विभिन्न कंपनियों की मैनेजरियल पोजिशन पर एक फीसदी कर्मचारी भी शहर के नहीं हैं। प्रतिभा सिंटेक्स में सीनियर क्वालिटी मैनेजर दिलीप रावत कहते हैं टेक्निकल लाइन में बाहर के लोग अधिक हैं। हम हर जगह रिक्रूट करते हैं लेकिन लोकल बच्चे ज्यादा समय नहीं टिकते। महिंद्रा टू व्हीलर्स के ट्रेनिंग हैड रजनीश सैनी कहते हैं नए कॉलेजों में दिक्कत ज्यादा है, क्योंकि वहां आमतौर पर एक्सपीरियंस फैकल्टी का अभाव रहता है(दैनिक भास्कर,इऩ्दौर,4.8.11)।

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