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09 अगस्त 2011

गढ़वाली भाषा के लिए लिपि की बात बेबुनियाद


राष्ट्रीय सामाजिक महिला संगठन की राष्ट्रीय महामंत्री डा. जया शुक्ल एवं प्रदेश महामंत्री श्रीमती किरण बडोनी ने गढ़वाली भाषा की लिपि का निर्माण करने के सवाल पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इस कदम से गढ़वाली भाषा, साहित्य, लेखन व पठन-पाठन प्रभावित होगा। जोकि भाषा के विकास को ही अवरुद्ध कर देगा। एक बयान में संगठन की राष्ट्रीय महामंत्री डा. जया शुक्ल एवं श्रीमती किरण बडोनी ने संयुक्त वक्तव्य में कहा कि गढ़वाली भाषा के लिए किसी लिपि के निर्माण की आवश्यकता ही नहीं है। उन्होंने कहा कि भाषा व लिपि दो अलग-अलग विषय हैं। भाषा के अस्तित्व के लिए लिपि का निर्माण किया जाना न सिर्फ अतार्किक लगता है, बल्कि यह ऐसे मस्तिष्क की उपज जान पड़ती है। जिन्हें गढ़वाली भाषा का ज्ञान ही नहीं है। उन्होंने कहा कि सन् 60 के दशक में गुजरात में आचार्य विनोबा भावे की संस्था ने भी एक ऐसा ही प्रयास किया था, जिसे लोक व्यवहार में स्वीकृति ही नहीं मिल पायी। उन्होंने गढ़वाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की पुरजोर वकालत की(राष्ट्रीय सहारा,ऋषिकेश,0.8.11)।

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