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19 अगस्त 2011

ओबीसी छात्रों को दस फीसदी कम अंकों पर मिलेगा प्रवेश,लाखों ओबीसी छात्रों को होगा फायदा


सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ओबीसी छात्रों को सामान्य वर्ग के लिए निर्धारित न्यूनतम पात्रता अंकों से अधिकतम दस फीसदी अंकों की ही छूट मिलेगी। यह फैसला सभी केंद्रीय विवि में लागू होगा। फैसले से साफ हो गया कि ओबीसी छात्रों को प्रवेश सामान्य वर्ग के अंतिम छात्र के कट आफ अंक से दस फीसदी कम अंक पर नहीं, बल्कि सामान्य वर्ग के लिए तय न्यूनतम पात्रता अंक से दस फीसदी कम अंकों पर दिया जाएगा। विवाद यही था कि ओबीसी को प्रवेश में दी जाने वाली दस फीसदी अंकों की छूट सामान्य वर्ग के अंतिम कट आफ अंक से मानी जाए या न्यूनतम पात्रता अंक से? पीठ ने साफ किया कि संविधानपीठ के फैसले में प्रयोग कट आफ मा‌र्क्स शब्द का मतलब सामान्य वर्ग के लिए तय न्यूनतम पात्रता अंकों से है। कोर्ट ने उदाहरण दिया कि अगर सामान्य वर्ग के लिए प्रवेश के न्यूनतम पात्रता अंक 50 हैं तो ओबीसी के लिए यह मानक 45 अंक हो सकता है। संस्थान 50 से 45 के बीच कोई भी अंक तय कर सकते हैं। इस फैसले का असर 2011-2012 सत्र के उन मामलों में नहीं पड़ेगा जहां सामान्य वर्ग के अंतिम छात्र के कट आफ अंक से दस फीसदी कम पर ओबीसी छात्रो को प्रवेश दिया जा चुका है और इस वर्ग की बाकी बची सीटें सामान्य वर्ग को आवंटित हो चुकी हैं, लेकिन जहां अभी ओबीसी की सीटें बची हैं उन पर ओबीसी को ही प्रवेश दिया जाएगा(दैनिक जागरण,दिल्ली,19.8.11)।

नई दुनिया में भाषा सिंह की रिपोर्टः
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से देशभर में ओबीसी छात्रों को राहत मिलेगी। इस फैसले का तत्काल असर दिल्ली विश्वविद्यालय पर पड़ सकता है, जहां अभी दाखिले की प्रक्रिया बंद नहीं हुई है। दिल्ली विश्वविद्यालय में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का सीधा असर ओबीसी कोटे की रिक्त पड़ी करीब २५ फीसदी सीटों यानी अनुमान के मुताबिक करीब ४००० सीटों पर सीधा असर पड़ेगा और उन पर दाखिला न्यूनतम योग्यता के तय पैमाने पर होगा।

कटऑफ और न्यूनतम योग्यता के सवाल पर भ्रम की स्थिति होने से पिछले कई सालों से ओबीसी कोटे की हजारों सीटें रिक्त रह जा रही थीं। बाद में इन सीटों को सामान्य छात्रों के लिए खोल दिया जा रहा था। पिछले साल दिल्ली विश्वविद्यालय की करीब ५००० ओबीसी कोटे की सीटें खाली रह गई थीं। बाद में इन्हें सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए खोल दिया गया था। यही हाल जेएनयू में हुआ था। दो सालों में वहां करीब ओबीसी कोटे की ५०० सीटें खाली रहीं और उनमें सामान्य वर्ग के छात्रों को दाखिला दिया गया। चूंकि सामान्य वर्ग के छात्रों का कट-ऑफ बहुत ऊंचा जाता है, इसलिए ओबीसी सीटें खाली रह जाती थी। इस धांधली के खिलाफ सबसे पहले आवाज जेएनयू से उठी थी। संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स यूनियन (आइसा) ने इसे मुद्दा बनाया था। आइसा इसे एक बड़ी जीत के रूप में देख रहा है। उसका मानना है कि इसे हजारों ओबीसी छात्रों को अगले शैक्षणिक सत्र में दाखिला मिल पाएगा। इस मुद्दे पर आइसा को दिल्ली हाईकोर्ट का पिछले साल सितंबर में बिल्कुल यही फैसला मिल चुका था और हाईकोर्ट के इस फैसले पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी। अब यह फैसला देश भर में लागू हो जाएगा। कोर्ट ने कहा है कि जहां दाखिले हो चुके हैं वहां अगले शैक्षणिक सत्र से और जहां चल रहे हैं वहां इसी सत्र से यह आदेश लागू किया जाएगा। आइसा नेता संदीप सिंह ने बताया कि इस फैसले से देश भर में ओबीसी आरक्षण के नाम पर चल रही धांधली रुक सकेगी। सीटें ओबीसी आरक्षण के नाम पर बढ़ी थीं, पैसा उस मद में आ रहा है और लाभ उन छात्रों को मिल ही नहीं पा रहा था। कोर्ट ने कहा है कि दाखिले के समय ओबीसी छात्रों को सामान्य छात्रों के लिए निर्धारित न्यूनतम पात्रता अंक पर १० फीसदी की छूट मिलेगी, कट ऑफ अंकों की तुलना में नहीं।

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