बच्चों को इंजीनियर बनाने के लिए अभिभावकों की रुचि कम हो गई। इसके पीछे एक कारण इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद आसानी से नौकरी नहीं मिलना है जबकि इंजीनियरिंग के बाद एमबीए भी लगभग जरूरी हो गया है। इसके कारण अभिभावक बच्चों को मेडिकल या दूसरे प्रोफेशनल कोर्सेस की तरजीह दे रहे हैं।
जम्मू के सरकारी इंजीनियरिंग कालेज में दाखिले के पहले दौर में 160 में से 123 बच्चों ने दाखिला नहीं लिया जबकि राज्य के चार इंजीनियरिंग कालेजों की क्षमता 858 सीटें होने के बावजूद पहले दौर में 278 सीटें खाली रही। अब इन सीटों को भरने के लिए एक बार फिर काउंसलिंग की जाएगी। इसके अलावा राज्य के पालिटेक्निक कालेजों का भी यही हाल है। राज्य के कुल 14 पालिटेक्निक कालेजों में 2995 सीटें है। इनमें भी पहले दौर में 759 सीटे खाली रही।
बच्चों को इंजीनियर बनाने के लिए अभिभावकों की रुचि कम हो गई। इसके पीछे एक कारण इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद आसानी से नौकरी नहीं मिलना है जबकि इंजीनियरिंग के बाद एमबीए भी लगभग जरूरी हो गया है। इसके कारण अभिभावक बच्चों को मेडिकल या दूसरे प्रोफेशनल कोर्सेस की तरजीह दे रहे हैं।
जम्मू के सरकारी इंजीनियरिंग कालेज में दाखिले के पहले दौर में 160 में से 123 बच्चों ने दाखिला नहीं लिया जबकि राज्य के चार इंजीनियरिंग कालेजों की क्षमता 858 सीटें होने के बावजूद पहले दौर में 278 सीटें खाली रही। अब इन सीटों को भरने के लिए एक बार फिर काउंसलिंग की जाएगी। इसके अलावा राज्य के पालिटेक्निक कालेजों का भी यही हाल है। राज्य के कुल 14 पालिटेक्निक कालेजों में 2995 सीटें है। इनमें भी पहले दौर में 759 सीटे खाली रहीं।
सेंटर फॉर लाइफ लांग स्टडीज की असिस्टेंट डायरेक्टर कविता सूरी कहती हैं कि अभिभावकों का पहला रुझान मेडिकल में ज्यादा रहता है। हाई मेरिट वाले छात्र मेडिकल कालेजों में चले जाते हैं। इसके चलते इंजीनियरिंग कालेजों में सीटें खाली रहती हैं। काउंसलिंग प्रवेश परीक्षा के बाद होने की बजाय बारहवीं कक्षा में होनी चाहिए। इससे बच्चों को पहले से ही मन बनाना आसान हो जाता है।
हर साल पूरी भरी जाती हैं सीटें
हमारे यहां हर साल सीटें पूरी भरी जाती है। काउंसलिंग के बाद कितनी भरी गई, यह मायने नहीं रखता।""
भूपिंद्र सिंह, प्रिंसिपल, जीसीइटी जम्मू(पवित्र गुप्ता,दैनिक भास्कर,जम्मू,25.8.11)
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