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09 अगस्त 2011

छत्तीसगढ़ः‘अनुकंपा’ के लिए कितना इंतजार!

तीन महीने पहले भिलाई में अपने हक की नौकरी के लिए सालों से चप्पल घिस रहे एक परिवार ने सिस्टम से हारकर खुदकुशी कर ली थी। इसके बाद काफी हल्ला मचा। अफसरों-नेताओं ने कहा कि सिस्टम सुधारा जाएगा। अब ऐसा नहीं होगा।

दो दिन पहले तिफरा में एक और महिला ने अनुकंपा नियुक्ति नहीं मिलने पर अपनी जान दे दी। वह सात महीने से इसकी आस में थी। हालांकि ऐसे कदम को सही नहीं ठहराया जा सकता, पर सवाल यह है कि यह सिस्टम आखिर कब तक लोगों को ऐसे तिल-तिलकर मारता रहेगा! जिले में अब भी अनुकंपा नियुक्ति के दो दर्जन से ज्यादा मामले पेंडिंग हैं।

सरकारी मुलाजिमों की मौत पर उनके बेसहारा परिवार को आसरा देने के लिए अनुकंपा नियुक्ति दी जाती है, पर सरकारी रिकार्ड बताते हैं कि यह अनुकंपा सिर्फ ‘खास’ लोगों पर ही हो पाती है। लो प्रोफाइल, मिडिल क्लास कर्मचारी के परिजन आमतौर पर दफ्तरों के चक्रव्यूह में उलझकर इसकी आस ही छोड़ देते हैं। जिले में भी ऐसे दर्जनों मामले हैं, जिनमें दसियों साल से सिर्फ प्रक्रिया ही चल रही है।


कुछ महीनों पहले कलेक्टोरेट से ऐसे ही 17 पेंडिंग मामले फार्म अधूरा बताकर लौटा दिए गए। इनमें 7 आवेदन सिंचाई विभाग, 7 वन विभाग और 3 जनपद पंचायत के थे। आवेदक यह नहीं समझ पा रहे कि सालों पहले जब उन्होंने अर्जी दी थी, तब फार्म की कमियां क्यों नहीं देखी गईं? कई आवेदक तो ऐसे हैं, जिनकी आज तक कोई सुध ही नहीं ली गई। दर्द सबका एक जैसा है और जवाब भी एक ही। 

‘सब सिस्टम से चल रहा है।’ यह सिस्टम सुधरेगा कब, इसका जवाब किसी अफसर के पास नहीं है। नौकरी की आस में कई परिवारों ने एक दशक से ज्यादा गुजार दिए हैं। हैडमास्टर से लेकर सीएम तक को अर्जी देने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकल पा रहा।

नौकरी नहीं मिली तो खुद को जलाया

तिफरा, कालिकानगर में रहने वाली अनिता नाग (25) के पति कपिल पथरिया ब्लॉक में पटवारी थे। 2 जनवरी 2011 को उनकी मौत हो गई। अनिता ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए अर्जी दी, लेकिन सात महीनों में उसकी हिम्मत ने जवाब दे दिया। 29 जुलाई को उसने खुद पर केरोसिन उड़ेलकर आग लगा ली और अस्पताल में उसकी मौत हो गई। मरने से पहले पुलिस को दिए बयान में उसने अनुकंपा नियुक्ति नहीं मिलने के कारण खुदकुशी करने की जानकारी दी।

17 साल बाद चुना मौत का रास्ता

भिलाई के सेक्टर-4 में रहने वाले सुनील गुप्ता ने 12 अप्रैल को अपनी मां मोहिनी देवी, बहनों शीला, शोभा और रेखा के साथ जहर खा लिया। उसने 8 अप्रैल से घर में खुद को कैद कर रखा था। घटना के दिन ही चारों महिलाओं की मौत हो गई। सुनील ने बताया कि 17 साल से उनका परिवार बीएसपी प्रबंधन से अनुकंपा नियुक्ति के लिए लड़ता रहा। औद्योगिक प्रबंधन विभाग में उप प्रबंधक रहे उसके पिता एलएल शाह की 1994 में मौत के बाद उन्हें अब तक नौकरी नहीं मिली, इस वजह से ऐसा कदम उठाना पड़ा।

टीएल में कलेक्टर ने लगाई फटकार

सोमवार को कलेक्टर ठाकुर राम सिंह ने कलेक्टोरेट के अफसरों की टीएल मीटिंग ली। इसमें उन्होंने अनुकंपा नियुक्ति की आस में खुदकुशी करने वाली महिला के प्रकरण के बारे में जानकारी ली। बताया गया उसकी प्रक्रिया चल ही रही थी। अभी फाइल विकासखंड से कलेक्टोरेट तक नहीं पहुंची थी। फिर कलेक्टर ने अनुकंपा नियुक्ति के बाकी मामलों की जानकारी मांगी। 

अफसर तुरंत उन्हें इस बारे में नहीं बता पाए। कलेक्टर ने नाराजगी जाहिर करते हुए अफसरों को जमकर फटकार लगाई। उन्होंने कहा कि कम से कम ऐसे मामलों में तो उन्हें संवेदनशीलता दिखानी चाहिए। उन्होंने अनुकंपा नियुक्ति के मामलों में तत्परता से कार्रवाई करने और संबंधितों को प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी समय पर देने के निर्देश दिए।

आवेदन के लिए तीन साल

अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन कर्मचारी की मौत से छह महीने के अंदर देना होता था। हाल ही में सरकार ने इसकी प्रक्रिया में फेरबदल करते हुए समय सीमा 3 साल कर दी है। नियमानुसार कर्मचारी के परिजन को सहायक ग्रेड-3, पटवारी, वनरक्षक, वार्डबॉय, चौकीदार और शिक्षाकर्मी के पद पर नियुक्ति दी जा सकती है। अगर परिवार की आय सालाना 60 हजार रुपए से अधिक है, तो उन्हें अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा सकती।

आवेदन की यह प्रक्रिया

अनुकंपा नियुक्ति के लिए पहली प्राथमिकता कर्मचारी की पत्नी या पति को दी जाती है। इसके बाद उनके पुत्र या अविवाहित पुत्री को अनुकंपा नियुक्ति दी जा सकती है। अगर बेटा इकलौता है, तो वह सीधे आवेदन कर सकता है। पर यदि कई भाई-बहन हैं, तो आवेदन के साथ सभी भाई-बहनों की एनओसी भी लगानी होती है। साथ ही कर्मचारी का मृत्यु प्रमाण पत्र, अपना जन्म प्रमाण पत्र, शैक्षणिक योग्यता, जाति, निवास और आय से संबंधित सर्टिफिकेट भी जमा करने होते हैं। विभाग से ये आवेदन कलेक्टर के पास और वहां से विभागीय मुख्यालय भेज दिए जाते हैं।

यह भी वजह

अफसरों का कहना है कि अनुकंपा नियुक्ति में देर की एक वजह यह भी है कि कर्मचारियों के परिजन पदों को लेकर जिद पर अड़ जाते हैं। नियमों के मुताबिक किसी भी दफ्तर में कुल पदों की संख्या के अधिकतम 10 फीसदी पर ही अनुकंपा नियुक्ति दी जा सकती है। उदाहरण के लिए कलेक्टोरेट में लगभग 120 का स्टाफ है। ऐसे में अनुकंपा नियुक्ति से सिर्फ 12 पद ही भरे जा सकते हैं। 

पहले से ही इतने कर्मचारी अनुकंपा पर नौकरी कर रहे हैं, इसलिए अगर पद खाली भी हुए, तो अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा सकती। चपरासी के पदों को इस नियम से छूट दी गई है, पर लोग इस पद पर ज्वाइन नहीं करना चाहते। यही वजह है कि पदों की कमी के कारण कई आवेदन अटके रह जाते हैं(दैनिक भास्कर,बिलासपुर,9.8.11)।

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