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13 अगस्त 2011

आंध्रप्रदेश में उपेक्षित है शिक्षा

केंद्र सरकार के बार-बार मना करने के बावजूद पंजाब में किसानों और गरीब मजदूरों को बिजली मुफ्त दी जा रही है। इस पर कोई बहस इसलिए भी नहीं की जा सकती है क्योंकि यह पंजाब की अपनी नीति है और सरकार यह मानती है कि कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने तथा किसानों के घाटे को कम करने के लिए ऐसा करना आवश्यक है। दूसरी ओर प्रदेश में पांच सौ से अधिक ऐसे स्कूल हैं जिनके बिजली के कनेक्शन बिल का भुगतान न होने के कारण काटे जा चुके हैं। कुछ स्थानों पर तो गर्मी से बचने के लिए शिक्षकों ने अपने पास से बिजली के बिल का भुगतान किया है और बहुत से स्थानों पर पावरकाम की लाइन से अवैध रूप से बिजली लेकर स्कूलों का काम चलाया जा रहा है। जाहिर है कि शिक्षा क्षेत्र सरकार की प्राथमिकता में शामिल नहीं है। वर्तमान में जब स्कूलों में कंप्यूटर की शिक्षा की बात हो रही है तो सरकारी स्कूलों में बिजली न होना निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे पठन-पाठन में तो व्यवधान उत्पन्न होता ही है साथ ही सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों में भी हीन भावना पैदा होती है जिसका कुप्रभाव उनके व्यक्तित्व के विकास पर पड़ता है। सर्वाधिक घातक स्थिति उन स्कूलों की है जहां चोरी की बिजली उपयोग में लाई जा रही है। ऐसे स्कूलों में बच्चे क्या नैतिक शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे जहां अध्यापक और प्राध्यापक चोरी की बिजली का इस्तेमाल कर रहे हों? सर्वाधिक दुखद बात तो यह है कि जिन स्कूलों के बिजली कनेक्शन बिल के भुगतान के अभाव में काट दिए गए हैं उनमें शिक्षा मंत्री के गृह जिले के भी सौ से अधिक स्कूल शामिल हैं। स्पष्ट है कि शिक्षा मंत्री को भी इस बात का भान है कि सरकार की दृष्टि में कृषि क्षेत्र अधिक महत्वपूर्ण है और शिक्षा क्षेत्र कम। हैरानीजनक बात तो यह है कि सरकार के नीति नियंता यह मामूली बात भी नहीं समझ पाते हैं कि शिक्षा के अभाव में कृषि का विकास भी संभव नहीं है(संपादकीय,दैनिक जागरण,दिल्ली,13.8.11)।

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